अंतर्निरीक्षण विधि (Introspection Method)
अंतर्निरीक्षण विधि ( Introspection Method ) संरचनावादियों (structuralists) की विधि थी। इस विधि का उपयोग बेट (Wundt), टिचेनर (Titchener), स्टाउट (Stout), विलियम जेम्स (William Jarmes) आदि मनोवैज्ञानिकों द्वारा चेतन अनुभूति (conscious experience) के तत्त्वों का अध्ययन करने के लिए किया गया था। अंतर्निरीक्षण (introspection) का अर्थ होता है आत्म-निरीक्षण (self-observation) । इस तरह से यह कहा जा दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि अंतर्निरीक्षण विधि में व्यक्ति अपने भीतर झाँकता (looke (within) है तथा अपनी मनोदशा का स्वयं निरीक्षण या अध्ययन करता सकता है कि अंतर्निरीक्षण विधि शिक्षा मनोविज्ञान की एक ऐसी विधि है जिसमें शिक्षक या शिक्षार्थी (learner) अपनी मनोदशा का एक विधिवत अध्ययन या निरीक्षण स्वयं करता है। उदाहरणार्थ, यदि कोई शिक्षार्थी किसी कविता को पढ़ने के बाद यह कहता है कि कविता सरस एवं मधुर है, तो यह अंतर्निरीक्षण का एक उदाहरण होगा, क्योंकि यहाँ शिक्षार्थी कविता पढ़ने से उत्पन्न मनोदशा का निरीक्षण स्वयं करके यह बता रहा है कि उसे कविता सरस एवं मधुर लगी स्पष्टत किसी भी अंतर्निरीक्षण में तीन अवस्थाएँ (stages) होती है जो निम्नांकित हैं
(i) अंतर्निरीक्षण में व्यक्ति किसी बाह्य वस्तु (जैसे ऊपर के उदाहरण में कविता) पर ध्यान देत है तथा उसका सही-सही प्रत्यक्षण करता है।
(ii) बाह्य वस्तु पर ध्यान देने से व्यक्ति में एक विशेष प्रकार की मनोदशा (mental state) उत्पन्न होती है।
(iii) उत्पन्न मनोदशा का व्यक्ति स्वयं विधिवत अध्ययन या निरीक्षण करके बताता है। जैसे उपर्युक्त उदाहरण में व्यक्ति द्वारा यह कहा जाना कि कविता से उसमें सरसता एवं मधुरता का भाव उत्पन्न हो रहा है।
अंतर्निरीक्षण विधि के कुछ गुण (merits) तथा दोष (demerits) बताए गए हैं। इस विधि के प्रमुख गुण निम्नलिखित है
(i) अंतर्निरीक्षण विधि द्वारा बालकों तथा वयस्कों की मनोदशा (mental state) के बारे में सीधे सूचना प्राप्त होती है। स्कूल में स्कूली वातावरण का प्रभाव तथा शिक्षक द्वारा की गई सख्ती या दिखाई गई नम्रता का प्रभाव शिक्षार्थियों (learners) पर किस ढंग का पड़ रहा है, इसका शिक्षार्थियों द्वारा किए गए अंतर्निरीक्षण से सीधे पता चल जाता है। अतः शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र में अल्पतम समय में शिक्षार्थियों की मनोदशा का अध्ययन करने के लिए इससे कोई दूसरी अधिक उपयोगी विधि नहीं हो सकती है।
(ii) अंतर्निरीक्षण विधि एक सरल विधि है जिसका प्रयोग किसी भी समय शिक्षक तथा शिक्षार्थी अपनी मानसिक दशा (mental state) का अध्ययन करने के लिए कर सकते हैं।
(iii) अंतर्निरीक्षण विधि से प्राप्त सूचना अधिक विश्वसनीय (reliable) होती है, क्योंकि इसमें शिक्षक तथा शिक्षार्थी (learner) अपनी मनोदशा का अध्ययन स्वयं निष्पक्ष भाव से करके बताते है।
(iv) अंतर्निरीक्षण विधि का ऐतिहासिक महत्त्व (historical importance) भी है। अंतर्निरीक्षण विधि के प्रयोग से बहुत सारे ऐसे शोध (researches) किए गए हैं जिनसे और अधिक वस्तुनिष्ठ विधियों (objective methods) का जन्म शिक्षा मनोविज्ञान में हो पाया है। आज भी अंतर्निरीक्षण विधि सभी तरह के प्रयोगात्मक अध्ययनों (experimental studies) का आधार बनी हुई है।
उपर्युक्त गुणों के साथ-साथ अंतर्निरीक्षण विधि के कुछ अवगुण (demerits) भी हैं जो निम्नांकित हैं
(i) अंतर्निरीक्षण विधि में शिक्षक या शिक्षार्थी (learner) अपनी मनोदशा (mental state) का अध्ययन स्वयं करते है। आलोचकों का मत है कि व्यक्ति की मनोदशा स्थिर (constant) नहीं होती है, बल्कि एक क्षण से दूसरे क्षण परिवर्तित होती रहती है। ऐसी हालत में कोई भी शिक्षक या शिक्षार्थी अपनी मनोदशा का कहाँ तक सही-सही निरीक्षण कर पाएगा, यह तो स्पष्ट ही है। उदाहरणस्वरूप, एक क्रोधित शिक्षार्थी अपने क्रोध की अवस्था का निरीक्षण करना यदि शुरू करता है तो उसका क्रोध ही समाप्त हो जाएगा और उसकी जगह कोई दूसरी मनोदशा उत्पन्न हो जाएगी।
(ii) अंतर्निरीक्षण विधि में व्यक्ति को अपनी मनोदशा (mental state) का निरीक्षण भी करना पड़ता है तथा साथ-ही-साथ उसका संचालन भी करना पड़ता है। इस तरह से व्यक्ति का ध्यान (attention) दो भागों में बँट जाता है- एक ओर उसे मनोदशा का प्रेक्षण या निरीक्षण करना होता है तो दूसरी ओर उसी समय व्यक्ति अपनी मनोदशा को बाह्य वस्तु की ओर संचालित भी रखता है। इसका परिणाम यह होता है कि व्यक्ति द्वारा किया गया निरीक्षण दोषपूर्ण (defective) हो जाता है, क्योंकि सही अर्थों में उसके लिए यह संभव नहीं है कि वह एक ही समय अपना ध्यान मनोदशा के संचालन में भी लगाए तथा साथ-ही-साथ उसके निरीक्षण में भी लगाए।
(iii) अंतर्निरीक्षण विधि द्वारा संग्रह किए गए आँकड़ों में आत्मनिष्ठता (subjectivity) अधिक होती है। इन आँकड़ों की विश्वसनीयता की जाँच करने की कोई विधि नहीं है। उदाहरणार्थ, शिक्षक द्वारा शिक्षार्थी (learner) की उत्तरपुस्तिका का मूल्यांकन होने पर शिक्षार्थी में सचमुच खुशी हो रही है या नाखुशी, इसका अंदाजा दूसरे को कैसे हो सकता है? शिक्षार्थी जो कहेगा उसे सत्य मानकर आगे की प्रक्रिया की जाएगी। संभव है कि वह नाखुश हो, परंतु यह कहे कि उसे खुशी हो रही है। अस्पष्ट: अंतर्निरीक्षण विधि से संग्रह किए गए आँकड़ों में आत्मनिष्ठता का तत्त्व काफी अधिक होता है।
(iv) अंतर्निरीक्षण विधि का प्रयोग अत्यंत छोटे शिशुओं, मानसिक रूप से मंदित बच्चो (mentally retarded children) तथा असामान्य व्यक्तियों (abnormal people) के व्यवहारों के अध्ययन में करना संभव नहीं है, क्योंकि ऐसी श्रेणी के लोग अपनी मनोदशा का अध्ययन स्वयं करते में सर्वथा असमर्थ रहते हैं।
(v) गेस्टाल्ट मनोवैज्ञानिको (Gestalt psychologists) ने अंतर्निरीक्षण विधि की आलोचना करते हुए कहा है कि चूंकि इस विधि में व्यक्ति अपनी मनोदशा (mental state) या चेतन अनुभूति का विश्लेषण कई खंडों में, जैसे संवेदन (sensation), भाव (feeling) तथा प्रतिमा (images) आदि में बाँटकर करता है, अतः इस विधि द्वारा व्यक्ति की मनोदशा का एकात्मक स्वरूप (unitary nature) की व्याख्या नहीं हो पाती है और प्रत्येक खंड के रूप में मनोदशा का किया गया वर्णन पूरी मनोदशा के किए गए वर्णन से सर्वथा भिन्न होता है। अतः इससे भी इस विधि की विश्वसनीयता पर आँच आती है।
(vi) अंतर्निरीक्षण विधि में अंतरप्रेक्षक विश्वसनीयता (interobserver reliability) को काफी कमी होती है। अगर एक ही तरह की मनोदशा का निरीक्षण एक ही परिस्थिति में भिन्न-भिन्न अंतर्निरीक्षको (introspectionists) द्वारा किया जाता है, तो निष्कर्ष एकसमान न होकर अलग अलग हो जाता है। फलस्वरूप इस विधि द्वारा प्राप्त परिणाम अधिक विश्वसनीय नहीं रह जाता है।
इस तरह, स्पष्ट है कि अंतर्निरीक्षण विधि में कई अवगुण भी सम्मिलित हैं। यही कारण है कि शिक्षा मनोविज्ञान में इस विधि का उपयोग एक स्वतंत्र विधि के रूप में नहीं, बल्कि एक सहायक विधि के रूप में किया जाता है।
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