Observation Method | Objective Observation Method | वस्तुनिष्ठ निरीक्षण या प्रेक्षण विधि | observation method in psychology

वस्तुनिष्ठ निरीक्षण या प्रेक्षण विधि (Objective Observation Method)

वस्तुनिष्ठ निरीक्षण या प्रेक्षण विधि ( Objective Observation Method )  का प्रतिपादन व्यवहारवादियों (behaviourists) द्वारा किया गया। इस विधि के प्रतिपादन से अंतर्निरीक्षण विधि पर जोरदार धक्का पहुँचा और एक तरह से यदि यह कहा जाए कि अंतर्निरीक्षण विधि बहुत हद तक वस्तुनिष्ठ प्रेक्षण विधि द्वारा प्रतिस्थापित हो गई तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।

वस्तुनिष्ठ प्रेक्षण विधि वह विधि है जिसमें व्यवहार (behaviour) या घटना को देखकर उसका क्रमबद्ध रूप से (systematically) अध्ययन किया जाता है। इस विधि का उपयोग शिक्षा मनोविज्ञान (educational psychology) में काफी किया जाता है। प्रायः शिक्षार्थियों (learners) के व्यवहारों का निरीक्षण या प्रेक्षण (observation) करके उनकी अभिरुचि (interest), अभिक्षमता (aptitude) तथा क्तित्व के कुछ खास शीलगुणों का पता लगाया जाता है। शिक्षा मनोविज्ञान में वस्तुनिष्ठ प्रेक्षण की विधि का दो तरह से प्रयोग किया जाता है—

(1) शिक्षार्थियों (leamers) को एक खास समय तक प्रेक्षक (observer) के सामने रखा जाता है। तथा उसे उस खास अवधि में कुछ क्रियाएँ करने को कहा जाता है। इन क्रियाओं को प्रेक्षक क्रमबद्ध रूप से लिखता जाता है और बाद में उसका विश्लेषण करके शिक्षार्थी के बारे में एक निश्चित निष्कर्ष पर पहुंचता है।

(ii) वस्तुनिष्ठ प्रेक्षण विधि का उपयोग शिक्षार्थियों की अभिरुचि, अभिक्षमता (aptitude) तथा मानसिक क्षमताओं (mental abilities) का तुलनात्मक अध्ययन करने के लिए भी किया जाता है। प्रेक्षक शिक्षार्थियों के दो समूह की अभिक्षमता, जैसे यांत्रिक अभिक्षमता (mechanical aptitude) का प्रेक्षण कर इन दोनों समूह का एक तुलनात्मक अध्ययन करके इस निष्कर्ष पर पहुँच सकता है कि कौन-सा समूह अभिक्षमता में अधिक श्रेष्ठ (superior) है।

यूँ तो वस्तुनिष्ठ प्रेक्षण के कई प्रकार है, परंतु इनमें निम्नांकित दो तरह के प्रेक्षण का उपयोग शिक्षा मनोविज्ञान में काफी अधिक होता है

(क) स्वाभाविक प्रेक्षण (Natural Observation )

 

इस तरह के प्रेक्षण में प्रेक्षक शिक्षार्थियों (learners) का प्रेक्षण एक स्वाभाविक परिस्थिति, जैसे खेल का मैदान, कक्षा की परिस्थिति आदि में करता है। सामान्यतः इस तरह के प्रेक्षण में शिक्षार्थियों को यह पता नहीं होता है कि उनके व्यवहारों का निरीक्षण किसी प्रेक्षक द्वारा किया जा रहा है। फलतः वे अपने व्यवहारों में स्वाभाविकता बनाए रखते हैं और प्रेक्षक उन व्यवहारों का प्रेक्षण चुपचाप करते जाता है। अतः वह इन सभी व्यवहारों का विश्लेषण करके एक निश्चित निष्कर्ष पर पहुंचता है। जैसे प्रेक्षक दूर से ही बैठे-बैठे बच्चों के समूह द्वारा खेल के मैदान में किए गए व्यवहारों का प्रेक्षण कर इस निष्कर्ष पर पहुँच सकता है कि अमुक शिक्षार्थी अधिक आक्रामक (aggressive) स्वभाव का है तथा अमुक शिक्षार्थी दब्बू प्रकृति का है।

(ख) सहभागी प्रेक्षण (Participative Observation)

 

इस तरह के प्रेक्षण का भी प्रयोग शिक्षा मनोविज्ञान में काफी होता है। क्रौनबैक (Cronbach, 1990) ने सहभागी प्रेक्षण की विधि का प्रयोग शिक्षार्थियों की अभिक्षमता (aptitude) तथा अभिरुचि (interest) का पता लगाने में सफलतापूर्वक किया है। इस विधि में प्रेक्षक शिक्षार्थियों को क्रियाओं में स्वयं हाथ बॅटाता है और उसके व्यवहारों का प्रेक्षण भी करता जाता है। सचाई यह है कि यहाँ प्रेक्षक का उद्देश्य व्यवहारों का ठीक ढंग से वस्तुनिष्ठ प्रेक्षण करना होता है और उसी उद्देश्य से वह शिक्षार्थी के समूह की क्रियाओं में हाथ बँटाता है। प्रायः प्रेक्षक शिक्षार्थियों के व्यवहार के हर पहलू के बारे में अपना विस्तृत रिकार्ड (record) तैयार करता है और बाद में उसका विश्लेषण कर एक निश्चित निष्कर्ष पर पहुँचता है।

प्रेक्षण का चाहे जो भी प्रकार (types) हो, यह आवश्यक है कि प्रेक्षक अपने कार्य में निपुण तथा प्रशिक्षित (trained) हो, अन्यथा प्रेक्षण अर्थपूर्ण नहीं हो सकेगा।

प्रेक्षण विधि के कुछ गुण (merits) तथा सीमाएँ (limitations) है। इसके प्रमुख गुण निम्नांकित है –

(i) वस्तुनिष्ठ प्रेक्षण विधि का सबसे प्रमुख गुण यह है कि यह वस्तुनिष्ठ तथा अवैयक्तिक होता है। इस विधि द्वारा वस्तुनिष्ठ रूप से शिक्षार्थियों (learners) की मनोवृत्ति, अभिक्षमता, मानसिक योग्यता का प्रेक्षण कर एक बैच (valid) तथा विश्वसनीय (reliable) निष्कर्ष पर पहुँचा जा सकता है, जो अंतर्निरीक्षण विधि द्वारा संभव नहीं।

(ii) वस्तुनिष्ठ प्रेक्षण विधि में अंतप्रेक्षक विश्वसनीयता (interobserver reliability) अधिक होती है। अगर कई प्रेक्षक एकसाथ मिलकर शिक्षार्थी की किसी अभिक्षमता (aptitude) प्रदर्शित करनेवाले व्यवहारों का प्रेक्षण करते हैं, तो उनमें अकसर काफी सहमति पाई जाती है जिससे इस विधि के परिणाम की वैधता (validity) तथा विश्वसनीयता (reliability) अधिक बढ़ जाती है। (ii) इस विधि से समय तथा श्रम दोनों की काफी बचत होती है, क्योंकि एकसाथ ही प्रेक्षक कई शिक्षार्थियों की क्षमताओं, अभिरुचियों तथा मानसिक क्षमताओं का अध्ययन कर लेते हैं।

(iv) इस विधि द्वारा सामान्य बच्चों की मानसिक क्षमता, व्यक्तित्व, अभिरुचि, चिंतन आदि का तो अध्ययन किया हो जाता है. साथ ही साथ असाधारण बालको (exceptional children) जैसे प्रतिभाशाली बालक (gifted children), मंदबुद्धि बालक (mentally retarded children), शारीरिक रूप से विकलांग बालक (physically handicapped children) तथा अन्य दूसरे तरह के बालक जैसे पिछड़े बालक (backward children), समस्या बालक (problem children) तथा अपराधी बालक (delinquent children) का भी अध्ययन सरलतापूर्वक संभव हो पाता है।

(v) इस विधि का एक अन्य गुण यह बताया गया है कि इसके द्वारा एक ही उम्र के बालको या बालिकाओं का तुलनात्मक अध्ययन (comparative study) आसानी से किया जा सकता है। प्रेक्षक बालको या बालिकाओं की मानसिक क्षमता, शारीरिक क्षमता, सामाजिक कौशल (social skills) आदि का तुलनात्मक प्रेक्षण कर आसानी से एक निश्चित निष्कर्ष पर पहुँच सकते है।

इन गुणों के बावजूद इस विधि की कुछ सीमाएँ है जो निम्नांकित है।

(i) वस्तुनिष्ठ प्रेक्षण विधि (objective observation method) की सफलता के लिए अन्य बातों के अलावा एक प्रशिक्षित (trained) तथा कुशल प्रेक्षक का होना अनिवार्य है। प्रायः देखा गया है कि प्रेक्षक इस उच्च सीमा तक प्रशिक्षित नहीं होते हैं और वे अपने प्रेक्षण में तरह-तरह की भूले (errors) कर बैठते हैं। इससे प्रेक्षण विधि को विश्वसनीयता समाप्त हो जाती है।

(ii) वस्तुनिष्ठ प्रेक्षण विधि में प्रायः प्रेक्षण का कार्य एक अनियंत्रित परिस्थिति (uncontrolled situation) में किया जाता है। परिस्थिति अनियंत्रित होने के कारण प्रेक्षक द्वारा निरीक्षण किए जानेवाले व्यवहार कई कारकों या चरों (variables) द्वारा प्रभावित होते रहते हैं। ऐसी परिस्थिति में प्रेक्षक के लिए यह निश्चित करना संभव नहीं हो पाता कि बालकों या वयस्को के व्यवहार में होनेवाला अमुक परिवर्तन का कारण कौन-सा है। फलतः वे निश्चित होकर किसी निष्कर्ष पर पहुँचने में असमर्थ रहते हैं।

(iii) वस्तुनिष्ठ प्रेक्षण की विधि में प्रेक्षक के निजी पूर्वाग्रह (prejudice). पक्षपात (bias) आदि का प्रभाव प्रेक्षण पर पड़ता है, जिससे उसका प्रेक्षण दोषपूर्ण होता है। उदाहरणस्वरूप, जब कोई शिक्षक किसी शिक्षार्थी (learner) या छात्र से वर्ग में अधिक खुश रहते हैं तथा उसको कई कारणों से अधिक दुलार प्यार देते हैं, तो उस छात्र के बुरे व्यवहार को भी उस शिक्षक द्वारा अच्छा कहा जाता है। और किसी-न-किसी ढंग से उसकी प्रशंसा की जाती हैं। दूसरी तरफ, यदि शिक्षक अमुक शिक्षार्थी या छात्र से वर्ग में नाखुश रहते हैं, तो उस छात्र के अनुशासित रहने पर भी शिक्षक उसके व्यवहार में में दोष निकाल ही लेते हैं और उसे सजा देने को तैयार हो जाते हैं। स्पष्ट है कि प्रेक्षण विधि में प्रेक्षक मानसिक योग्यता का प्रेक्षण कर एक बैच (valid) तथा विश्वसनीय (reliable) निष्कर्ष पर पहुँचा जा सकता है, जो अंतर्निरीक्षण विधि द्वारा संभव नहीं।

(ii) वस्तुनिष्ठ प्रेक्षण विधि में अंतप्रेक्षक विश्वसनीयता (interobserver reliability) अधिक होती है। अगर कई प्रेक्षक एकसाथ मिलकर शिक्षार्थी की किसी अभिक्षमता (aptitude) प्रदर्शित करनेवाले व्यवहारों का प्रेक्षण करते हैं, तो उनमें अकसर काफी सहमति पाई जाती है जिससे इस विधि के परिणाम की वैधता (validity) तथा विश्वसनीयता (reliability) अधिक बढ़ जाती है।

(ii) इस विधि से समय तथा श्रम दोनों की काफी बचत होती है, क्योंकि एकसाथ ही प्रेक्षक कई शिक्षार्थियों की क्षमताओं, अभिरुचियों तथा मानसिक क्षमताओं का अध्ययन कर लेते हैं।

(iv) इस विधि द्वारा सामान्य बच्चों की मानसिक क्षमता, व्यक्तित्व, अभिरुचि, चिंतन आदि का तो अध्ययन किया हो जाता है. साथ ही साथ असाधारण बालको (exceptional children) जैसे प्रतिभाशाली बालक (gifted children), मंदबुद्धि बालक (mentally retarded children), शारीरिक रूप से विकलांग बालक (physically handicapped children) तथा अन्य दूसरे तरह के बालक जैसे पिछड़े बालक (backward children), समस्या बालक (problem children) तथा अपराधी बालक (delinquent children) का भी अध्ययन सरलतापूर्वक संभव हो पाता है।

(v) इस विधि का एक अन्य गुण यह बताया गया है कि इसके द्वारा एक ही उम्र के बालको या बालिकाओं का तुलनात्मक अध्ययन (comparative study) आसानी से किया जा सकता है। प्रेक्षक बालको या बालिकाओं की मानसिक क्षमता, शारीरिक क्षमता, सामाजिक कौशल (social skills) आदि का तुलनात्मक प्रेक्षण कर आसानी से एक निश्चित निष्कर्ष पर पहुँच सकते है।

इन गुणों के बावजूद इस विधि की कुछ सीमाएँ है जो निम्नांकित है

(i) वस्तुनिष्ठ प्रेक्षण विधि (objective observation method) की सफलता के लिए अन्य बातों के अलावा एक प्रशिक्षित (trained) तथा कुशल प्रेक्षक का होना अनिवार्य है। प्रायः देखा गया है कि प्रेक्षक इस उच्च सीमा तक प्रशिक्षित नहीं होते हैं और वे अपने प्रेक्षण में तरह-तरह की भूले (errors) कर बैठते हैं। इससे प्रेक्षण विधि को विश्वसनीयता समाप्त हो जाती है।

(ii) वस्तुनिष्ठ प्रेक्षण विधि में प्रायः प्रेक्षण का कार्य एक अनियंत्रित परिस्थिति (uncontrolled situation) में किया जाता है। परिस्थिति अनियंत्रित होने के कारण प्रेक्षक द्वारा निरीक्षण किए जानेवाले व्यवहार कई कारकों या चरों (variables) द्वारा प्रभावित होते रहते हैं। ऐसी परिस्थिति में प्रेक्षक के लिए यह निश्चित करना संभव नहीं हो पाता कि बालकों या वयस्को के व्यवहार में होनेवाला अमुक परिवर्तन का कारण कौन-सा है। फलतः वे निश्चित होकर किसी निष्कर्ष पर पहुँचने में असमर्थ रहते हैं।

(iii) वस्तुनिष्ठ प्रेक्षण की विधि में प्रेक्षक के निजी पूर्वाग्रह (prejudice). पक्षपात (bias) आदि का प्रभाव प्रेक्षण पर पड़ता है, जिससे उसका प्रेक्षण दोषपूर्ण होता है। उदाहरणस्वरूप, जब कोई शिक्षक किसी शिक्षार्थी (learner) या छात्र से वर्ग में अधिक खुश रहते हैं तथा उसको कई कारणों से अधिक दुलार प्यार देते हैं, तो उस छात्र के बुरे व्यवहार को भी उस शिक्षक द्वारा अच्छा कहा जाता है। और किसी-न-किसी ढंग से उसकी प्रशंसा की जाती हैं। दूसरी तरफ, यदि शिक्षक अमुक शिक्षार्थी या छात्र से वर्ग में नाखुश रहते हैं, तो उस छात्र के अनुशासित रहने पर भी शिक्षक उसके व्यवहार में में दोष निकाल ही लेते हैं और उसे सजा देने को तैयार हो जाते हैं। स्पष्ट है कि प्रेक्षण विधि में प्रेक्षक
की अपनी पूर्वधारणा या पक्षपात का प्रभाव प्रेक्षण पर काफी पड़ता है, जिससे प्रेक्षण दोषपूर्ण हो सकता है।

(iv) वस्तुनिष्ठ प्रेक्षण विधि का उपयोग केवल बादा व्यवहारों (overt behaviours) के अध्ययन में किया जाता है और इसी बाजा व्यवहार के प्रेक्षण के आधार पर व्यक्ति की आंतरिक मानसिक प्रक्रियाओं के बारे में सही-सही अंदाज लगाया जाता है। परंतु, ऐसा करना हमेशा यथार्थ सिद्ध नहीं होता। जैसे शिक्षक किसी छात्र की अच्छी भाषा-शैली एवं लिखने का ढंग देखकर यदि यह अंदाज लगा लेते हैं कि यह तीव्र बुद्धि का छात्र है, तो उनका इस निष्कर्ष पर पहुँचना सही ही होगा, इसकी कोई गारंटी नहीं। कहने का तात्पर्य यह है कि वस्तुनिष्ठ प्रेक्षण विधि के आधार पर अतिरिक मानसिक प्रक्रियाओं का यथार्थ ढंग से अध्ययन करना संभव नहीं है।

इस तरह स्पष्ट है कि वस्तुनिष्ठ प्रेक्षण विधि की कुछ सीमाएँ भी है। इन सीमाओं के बावजूद यह विधि शिक्षा मनोविज्ञान (educational psychology) के लिए काफी महत्वपूर्ण बताई गई है। इस विधि का उपयोग प्रायः शिक्षा मनोवैज्ञानिकों द्वारा शिक्षार्थियों (learners) की समस्याओं का, विशेषकर कक्षा (classroom) तथा खेल के मैदानों में उत्पन्न होनेवाली समस्याओं का अध्ययन करने में किया जाता है।

METHODS OF EDUCATIONAL PSYCHOLOGY | शिक्षा मनोविज्ञान की विधियाँ

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