अधिगम की विशेषता एवं प्रकृति – Characteristics and nature of learning

अधिगम की विशेषता एवं प्रकृति / Characteristics and nature of learning:- सिखने के द्वारा हमारे  व्यव्हार में जो परिवर्तन होता| यह वयव्हार जन्मजात नहीं होता हैं वंशक्रम के देन के रूप में हमें विरासत में प्राप्त नहीं होती हैं बल्कि वातावरण में निहित कारको के प्रभाव से  प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष अनुभवो के माध्यम से हमारे द्वारा स्वयं ही अर्जित किया जाता हैं I                                                       भाषा जो हम बोलते हैं , कौशल जिन्हें हम प्रयोग में लाते हैं , रुचियाँ , आदत तथा अभिविर्तिया आदि जो हमारे व्यक्तित्व के अंग बने हुए होते हैं ये सब के सब अर्जित व्यवहारगत वयवस्था और हम सब सीखने की प्रक्रिया के परिणामस्वरुप हमारे व्यक्तित्व या जीवनचर्चा के अंग बनते हैं|

अधिगम की विशेषता एवं प्रकृति|Characteristics and nature of learning

Characteristics and nature of learning

अधिगम की विशेषता एवं प्रकृति निम्नलिखित हैं 

  1. सीखना व्यवहार में परिवतर्न है I
  2. अर्जित व्यवहार की प्रकृति अपेक्षाकृत स्थाई होता है I
  3. सीखना जीवनपर्यंत चलनेवाली एक सतत  प्रक्रिया है I
  4. सीखना एक सार्वौमिक प्रक्रिया है I
  5. सीखना उधेश्यपूर्ण एवं लक्ष्य निर्देशित होता है I
  6. सीखने का संबंध अनुभवो की नवीन व्यवस्था से होता है
  7. सीखना वातावरण एवं क्रियाशीलता की उपज है
  8. सीखने की एक  परिस्थिति से दुसरे परिस्थिति में स्थानांतरण होता है
  9. सीखने के द्वारा शिक्षण अधिगम उदेश्यों की प्राप्ति की जा सकती है
  10. सीखना उचित वृद्धि एवं विकास में सहायता करता है
  11. सीखना व्यक्तित्व के सार्वौमिक विकास में सहायक होता है
  12. सीखने के द्वारा जीवन में लक्ष्यों की प्राप्ति में सहायता मिलती है
  13. सीखना समायोजन में सहायक है
  14. सीखना और विकास एक दुसरे के प्रयाय नहीं है
  15. अधिगम में सदैव सही दिशा में विकास होना जरुरी नहीं है

1 . सीखना व्यवहार में परिवतर्न है 

:- सीखने की प्रक्रिया और इसके परिणाम का सीधा संबंध सीखने बाले के व्यवहार में परिवर्तन लाने से होता हैं I कसी भी प्रकार का सीखना क्यू न हो इसके द्वारा विद्यार्थी में परिवर्तन लाने के भूमिका सदैव निभाई जाति है I परिवर्तन अच्छा भी हो सकता है और बुरा भी I जैसे अच्छे परिवर्तन के द्वारा शब्दों के सही उच्चारण शब्दों का वाक्यों में प्रयोग कर लेना इत्यादी I और बुरे परिवर्तन जैसे – चोरी करना झूठ बोलना इत्यादि I व्यक्ति अपने और दुसरे के अनुभवो से सीखकर अपने व्यवहार , विचार , भावनाओ इत्यादि में परिवर्तन करता है I

2. अर्जित व्यवहार की प्रकृति अपेक्षाकृत स्थिति होता है 

:- सीखने के द्वारा व्यवहार में परिवर्तन लाये जाते है I वे न तो पूर्ण स्थाई होते हैं और न ही अस्थाई इनकी प्रक्रति इन दोनों के बीच की स्थिति बाली होती है I जिसे अपेक्षाकृत स्थाई का नाम दिया जा सकता है I   इसलिए सीखने के द्वारा बालक के व्यवहार में जो परिवर्तन होता है वह अपना प्रभाव छोड़ने में समर्थ होता है I परंतु उसके अवांछनी समय संगत या अनुपयोगी सिद्ध होने की दशा में पुन: अपेक्षिक परिवर्तन लाने की भूमिका भी उचित अधिगम द्वारा निभाई जा सकती है I

3. सीखना जीवनपर्यंत चलनेवाली एक सतत  प्रक्रिया है 

:- सीखना यधपि वंशक्रम की धरोहर नहीं है I परन्तु इसकी शुरुआत बालक के जन्म से पहने माँ के गर्भ में ही हो जाती है I अभिमन्यु ने चक्रव्यूह भेदने की प्रक्रिया अपनी माँ के गर्भ में उसी समय सीख लिया जब उसके पिता अर्जुन उसकी माता सुभद्रा को इसके बारे में बता रहे थे I जन्म के बाद वातावरण में प्राप्त अनुभवो के द्वारा इस कार्य में पर्याप्त जैसी आजादी और औपचरिक तथा अनौपचारिक , प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष इन सभी अनुभवो के माध्यम से हम जब तक मृत्यु को प्राप्त नहीं होते है कुछ – न – कुछ सीखते ही रहते हैं I 

4. सीखना एक सार्वौमिक प्रक्रिया है 

:- सीखना किसी व्यक्ति व्यक्ति विशेष , जाति – प्रजाति तथा देश-प्रदेश की बपौती नहीं हैं I इस संसार में जितने भी जीवधारी हैं वे अपने – अपने तरीके से अनुभवों के माध्यम से कुछ न कुछ सीखते रहते हैं I यह सोचना या दावा करना कि किसी जाति विशेष जैसे ब्राह्मण या स्वर्ण हिन्दू परिवार में जन्मा बालक अन्य वर्णों के बालकों की तुलना में अच्छी तरह सीखता है या लढ़के या लढ़कियो की अपेछा अथवा गोरा यूरोपियन या अफ्रीकन के अपेछा जल्दी या अच्छा सीखते हैं ये बिलकुल निराधार और रंगमुलक है I सबी लोग या प्राणी सिखने की पूरी क्षमता रखते हैं और जो भी अंतर इस बारे में देखने को मिलता है उनमे प्राप्त अनुभवो तथा अवसरों का ही विशेस योगदान पाया जाता है

5 .सीखना उधेश्यपूर्ण एवं लक्ष्य निर्देशित होता है 

:- जब भी हम कुछ सिखने का प्रयास करते हैं या दुसरे शब्दों में अपने वयवहार में परिवर्तन लाना चाहते हैं तो उसका कोई न कोई निश्चित उदेश्य या प्रयोजन होता है I हमारे सीखने की प्रक्रिया किसी उदेश्य या लक्ष्य की प्राप्ति की दिशा में आगे बढ़ती है I जैसे – जैसे हमें इस लक्ष्य प्राप्ति में सहायता मिलती है हम अधिक उत्साह से सीखने के कार्य में जुड़े रहते हैं I 

6 .सीखने का संबंध अनुभवो की नवीन व्यवस्था से होता है 

:- सीखने की प्रक्रिया में प्राप्त अनुभवो के नवीन समायोज तथा पुर्नगठन का कार्य चलता ही रहता है जो कुछ पूर्व अनुभवो के आधार पर सीखा हुआ होता है उसमें नवीन अनुभवो के आधार पर परिवर्तन लाना जरुरी हो जाता है I इस तरह अनुभवो की नवीन व्यवस्था या समायोजन का कार्य चलते रहना ही सीखने के मार्ग पर आगे बढ़ते की विशेष आवश्यकता और विशेषता बन जाती है I

7 .सीखना वातावरण एवं क्रियाशीलता की उपज है 

:- वातावरण के साथ सक्रिय अनुक्रिया करना सीखने की एक आवश्यक शब्द है जो बालक जितनी अच्छी तरह से पूर्ण सक्रिय होकर वातावरण के साथ आपेक्षित अनुक्रिया करेगा वह उतना ही सीखने के मार्ग पर आगे बढ़ सकेगा वातावरण में उदिपनो की उपस्थिति चाहे कैसी भी समझ कियों न हो सिखने वाले  के द्वारा अगर सक्रिय होकर अनुक्रिया नहीं की जाएगी तो सीखने का कार्य आगे कैसे बढ़ेगा I इस तरह सीखने की प्रक्रीया में यह विशेषता होती है की सीखने वाले से वातावरण के साथ पर्याप्त क्रियाशीलता होनी चाहिए ताकि अनुभव के माध्यम से उचित अधिगम हो सके

8 .सीखने की एक  परिस्थिति से दुसरे परिस्थिति में स्थानांतरण होता है 

:- जो कुछ भी एक परिस्थिति में सीखा जाता है उसका अर्जन किसी भी दूसरी परिस्थिति मेंसीखने के कार्य में बाधक या सहायक बनकर अवश्य ही आगे आ जाता है I इस तरह अधिगम अर्जन की एक विशेष विशेषता इसी बात को लेकर है की उसका एक से दूसरी परिस्थिति में स्थानातरण होता रहता है I

9.सीखने के द्वारा शिक्षण अधिगम उदेश्यों की प्राप्ति की जा सकती है I

:- सीखने के द्वारा विद्यार्थी निर्धारित शिक्षण अधिगम उदेश्यों की प्राप्ति के लिए उचित प्रयत्न कर सकते हैं I इस प्रकार के उदेश्यों की पूर्ति द्वारा बालकों में अपेक्षित ज्ञान, समझ सूझ – बुझ, कुशलताए , रूचि तथा दृष्टीकोण आदि का विकास किया जा सकता है I 

10 .सीखना उचित वृद्धि एवं विकास में सहायता करता है 

:-वृद्धि एवं विकास सभी आयामों शारीरिक मानसिक, समाजिक, संवेगात्मक,  सौंदर्यात्मक, नैतिक तथा भाषा के संबंधित विकास आदि में सीखने की प्रक्रिया हर कदम पर सहायता पहुँचाती है

अधिगम के प्रकार – Types Of learning

Types Of learning :- अधिगम को विभिन्न मनोवैज्ञानिक ने अपने – अपने तरीके से विभिन्न प्रकारों में बाँटा है जिस में मनोवैज्ञानिक उसुबेल 1968 ने सीखने के निम्नलिखित चार प्रमुख प्रकार बताये है जो इस प्रकार है

1. अभिग्रहण सीखना।                     

:- अभिग्रहण सीखना में शिक्षार्थी को सीखने वाली सामाग्री बोलकर या लिख कर दे दी जाती है और शिक्षार्थी उन सामग्रियों को आत्मसार्थ कर लेते हैं । दुर्भाग्यवश अधिकतर शिक्षक यही समझते हैं कि अभी ग्रहण सीखना मात्र रटकर ही सिखा जा सकता है परंतु उसूबेल ने स्पष्ट कर दिया है कि यह रटकर भी हो सकता है तथा समझकर भी हो सकता है

2.अन्वेषण सीखना

:- अन्वेषण सीखना वैसे सीखना को कहा जाता है जिसमें शिक्षार्थी को दी गई सामग्रियों में से नए संप्रत्यय या कोई नया नियम या विचार की खोज कर उसे सिखाना होता है। दुर्भाग्यवश अधिकतर शिक्षक यही समझते हैं कि अन्वेषण सीखना हमेशा अर्थ पूर्ण ही होता है परंतु उसूबेल ने यह स्पष्ट किया है कि कभी यह अर्थ पूर्ण भी हो सकता है या कभी लौटकर भी संपन्न हो सकता है जैसे –                                             यदि कोई बालक उत्तर में से खोज कर इस अधूरे बांके अर्थात भारत को _ _ _ _ _ मैं आजादी मिली। को पूरा करने की कोशिश करता है तो यह एक ऐसे अन्वेषण सीखना का उदाहरण होगा जरा हटके संपन्न माना जाएगा परंतु यदि छात्र किन्ही ज्ञात तथ्यों को पूर्ण संगठित कर या कोई प्रयोग कर इसी नए नियम की खोज करता है तो एक ऐसा अन्वेषण सीखना कहा जाएगा जो अर्थ पूर्ण प्रक्रिया द्वारा संपन्न हुआ

3. रटकर सीखना

:- वैसे  सीखने को कहा जाता है जिसमें शिक्षार्थी दिए गए सामग्रियों के साहचर्य शब्दशह तथा मनमाने ढंग से उसके आशय को बिना समझे हुए सीखते हैं। निरर्थक पदों का सीखना, शब्दों के जोड़े को सीखना, इसी श्रेणी के सीखने का उदाहरण है

4. अर्थपूर्ण सीखना

:-उसोबेल  के अनुसार इस तरह का सीखना शिक्षा के लिए विशेष महत्व रखता है। इसलिए शिक्षकों में विशेष तरह के सीखने पर अधिक बल डाला जाता है अर्थ पूर्ण सीखना ओवैसी सीखने को कहा जाता है जिसमें सीखने वाले सामग्री के सारतत्व को एक नियम के अनुसार समझ कर तो था उसका संबंध गत ज्ञान से जोड़ते हुए सिखा जाता है

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