अधिगम स्थानांतरण के सिद्धांत | Theory of Transfer Of Learning

अधिगम स्थानांतरण के सिद्धांत / Theory of Transfer Of Learning :- सीखने की स्थानांतरण की सिद्धांत के बारे में चर्चा करने से पहले हमें इस महत्वपूर्ण प्रश्न का सामना करना होगा – क्या विद्यार्थी जो किसी विषय को एक संदर्भ से सीखता है, उसे अन्य संदर्भों में भी उस ज्ञान का उपयोग करने की क्षमता होती है? यह प्रश्न सीखने की स्थानांतरण की सिद्धांत का मूल विषय है।

Theory of Transfer Of Learning

सीखने की स्थानांतरण की सिद्धांत का अर्थ होता है कि जब हम किसी नए या पहले सीखे गए ज्ञान का उपयोग करके कोई नया कार्य करने का प्रयास करते हैं, तो हमारी पहले से ही प्राप्त की गई ज्ञान की जानकारी हमें उस कार्य में सहायता करती है। इसका मतलब है कि विद्यार्थी जब वे एक संदर्भ से ज्ञान प्राप्त करते हैं, तो वह ज्ञान उनकी सोच, समस्या हल करने की क्षमता, और नए कार्य को समझने की क्षमता को प्रभावित करता है।

Theory of Transfer Of Learning

 

1. मानसिक शक्ति का सिद्धांत

:- मानसिक शक्ति का सिद्धांत अत्यंत प्राचीन सिद्धांत है। इस सिद्धांत के अनुसार हमारे मस्तिष्क के अनेक मानसिक शक्तियो स्मृति अवधान प्रायझीकरण कल्पना इच्छा शक्ति तर्कशक्ति आदि विद्यमान रहते हैं। जो परस्पर स्वतंत्र शक्तियां है तथा प्रत्येक सुनिश्चित इकाई के रूप में है। अधिगम स्थानांतरण इन विभिन्न स्वतंत्र शक्तियों के मध्य पाया जाने वाला ससंबंध है। जैसे: – यदि व्यक्ति तर्क करने में कुशलता प्राप्त कर लेता है तो वह उसका प्रत्येक क्षेत्र में उपयोग कर सकेगा अन्य शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि अभ्यास के माध्यम से इन विभिन्न मानसिक शक्तियों का विकास किया जा सकता है। जब यह मानसिक शक्तियां विकसित हो जाती है तो हम विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न कार्यों को कुशलतापूर्वक करने में सक्षम हो जाते हैं।

2. समरूप तथ्यों का सिद्धांत

:- इस सिद्धांत के मुख्य प्रतिपादक थार्नडाइक हैं। इस सिद्धांत के अनुसार किसी एक परिस्थिति में अधिगम या प्रशिक्षण का स्थानांतरण उस सीमा तक हो सकता है जहां तक दोनों सामान्य या समरूप तत्व उपस्थित रहते हैं। जितने अधिक तत्व दोनों परिस्थितियों में समरूप होंगे उतना ही अधिक स्थानांतरण भी होगा। जैसे -गणित के क्षेत्र में किए जाने वाले अधिगम की भौतिक शास्त्र में स्थानांतरण होने की संभावनाएं उतनी ही अधिक होगी जितनी कि दोनों विषयों में चिन्ह सूत्र समीकरण और गणनाओं में एक रूप समान तत्व उपस्थित होंगे। इसी प्रकार टाइपिंग सीखने की कौशल का हारमोनियम बजाने में स्थानांतरण संभव हो सकता है क्योंकि दोनों कार्यों में दृष्टि और अंगुलियों के संचालन में पूरा तालमेल रहता है।

3. सामान्यीकरण का सिद्धांत

:- इस सिद्धांत को प्रकाश में लाने का श्रेय चार्ल्स जुड को है। इस सिद्धांत के अनुसार कुछ अनुभव ओके आधार पर व्यक्ति कोई सामान्य सिद्धांत पर पहुंच जाता है। दूसरी परिस्थितियों में कार्य करते हुए अथवा सीखते हुए वह अपने निकाले हुए किन्ही निष्कर्षों अथवा सिद्धांतों का प्रयोग में लाने की चेष्टा करता है। इस तरह सामान्यीकरण का स्थानांतरण से अभिप्राय पहले ही परिस्थितियों में अर्जित की हुए सिद्धांत तथा नियमों का दूसरी परिस्थितियों में ज्ञान तथा कौशल के अर्जन अथवा कार्यों को करने के समय उपयोग में लाने से है।

4.सामान्य एवं विशिष्ट अंश का सिद्धांत

:- इस सिद्धांत के प्रतिपादक मनोवैज्ञानिक स्पीयर मैन हैं। इनके मतानुसार प्रत्येक विषय कुछ सीखने के लिए बालक को सामान और विशिष्ट योगिता की आवश्यकता होती है। सामान्य योग्यता या बुद्धि का प्रयोग सामान्यत: जीवन प्रत्येक कार्य में होता है किंतु विशिष्ट बुद्धि का प्रयोग विशिष्ट परिस्थितियों में ही किया जाता है। सामान्य योगिता व्यक्तियों के प्रत्येक परिस्थितियों में सहायता देती है। इसलिए सामान्य योग्यता या तत्व का ही स्थानांतरण होता है विशेष तत्व का नहीं। इतिहास , भूगोल , साहित्य आदि विषयों का संबंध सामान्य योग्यता से होता है किंतु चित्रकला संगीत आदि विषयों का संबंध विशिष्ट योग्यता से है।

5. समग्रता या पूर्णाकार का सिद्धांत

सूझ का सिद्धांत:- इस सिद्धांत का प्रतिपादन गैस टेल मनोवैज्ञानिक ने किया है जिनमें कोल्हार मुख्य हैं। गैस्टरॉन मनोवैज्ञानिक के अनुसार मनुष्य किसी भी विषय अथवा कौशल को सीखने में उसकी  सूझ का विकास होता है उसके स्वरूप में विकास होता है और उसकी गति विकसित होती है। इन मनोवैज्ञानिकों के अनुसार किसी दूसरे विषय अथवा कौशल को सीखने में यह सूझ स्थानांतरित होती है। तथ्यों का ज्ञान अथवा कौशल विशेष की तकनीकी की नहीं। सूझ यहां  को थोड़े व्यापक रूप में प्रस्तुत किया गया है इसमें तत्वों को अर्थपूर्ण ढंग से समझने की शक्ति निहित है।

अधिगम स्थानांतरण के दशाएं

:- हर परिस्थिति में हर समय स्थानांतरण संभव नहीं होता है। स्थानांतरण के लिए अनुकूल परिस्थितियां भी आवश्यक होती है। उपलब्ध परिस्थितियां स्थानांतरण की मात्रा को प्रभावित करती है। जितनी अधिक अनुकूल परिस्थितियां होगी उतना ही अधिक स्थानांतरण होगा। स्थानांतरण के लिए दशाएं अनुकूल होते हैं

अधिगम स्थानांतरण के दशाएं

1. पाठ्यक्रम

:- जब शिक्षा के किसी भी स्तर का पाठ्यक्रम सीखने वाले की आयु परिपक्वता अभी छमता एवं अभियोग्य के अनुकूल हो उसका जीवन से संबंध हो वह सीखने वाले के लिए सार्थक व उपयोगी हो उसमें सीखने वालों के रुचि हो उसके सभी विषय और क्रियाओं आपस में संबंध हो तथा उनका अपने पूर्व स्तर पाठ्यक्रम से भी संबंध हो।

2. सीखने वाले की इच्छा 

:- स्थानांतरण काफी हद तक सीखने वाले की इच्छा पर निर्भर करता है। जब सीखने वाला निश्चय कर लेता है तंवर स्थानांतरण स्थान लेता है।

3. सीखने वाले की बुद्धि पर

:- जब सीखने वाले की सामान्य बुद्धि अधिक होती है उसमें उतनी ही अधिक समान्य योग्यता का विकास होता है और इस प्रकार उतना ही अधिक सीखने का स्थानांतरण होता है।

4. सीखने वाले की शैक्षिक उपलब्धि

:- जो विद्यार्थी किसी प्रकरण को रखने के बजाय सोच समझकर सीखते हैं वह उस प्रकरण से प्राप्त सिक्का उपयोग करने में सफल होते हैं।

5. सीखने वाले की योग्यता

:- जब हम किसी बात को अच्छी तरह से सीख लेते हैं तभी हम उसे स्थानांतरित कर सकते हैं सीखने की मात्रा सीखने वाले की योगिता पर निर्भर करती है। अतः सीखने वाले में यह योग्यता जितनी अधिक होगी उतनी ही अधिक मात्रा में स्थानांतरण संभव है।

6. सीखने वाले की अभिवृत्ति

:- जब सीखने वाले में सीखे हुए ज्ञान एवं कौशल की अभिवृत्ति होती है यह देखा गया है कि सीखने वालों  में सीखे हुए ज्ञान और कौशल के प्रयोग के जितनी तीव्र अभिवृत्ति होती है वह सीखे हुए ज्ञान एवं कौशल का उतना ही अधिक प्रयोग कर नए ज्ञान एवं कौशल को सीखते हैं।

7. विषय वस्तु की समानता

:- यदि दो विषय वस्तु पूर्ण रूप से सामान है तो सत प्रतिशत स्थानांतरण हो सकता है। यदि विषय वस्तु बिल्कुल भिन्न है तो थोड़ा भी स्थानांतरण संभव नहीं है।

Transfer Of Learning / अधिगम स्थानांतरण के शैक्षिक महत्व

शैक्षिक दृष्टिकोण से अधिगम स्थानांतरण का अत्याधिक महत्व है। अधिगम स्थानांतरण के फलस्वरूप बालकों में अधिगम के क्षेत्र में तीव्रता होगी तथा विषयों को सीखने में आसानी होगी अतः शैक्षिक परिस्थितियों में अधिगम स्थानांतरण के सिद्धांत का अनुप्रयोग निम्न परिस्थिति में करना चाहिए।

1. पाठ्यक्रम निर्माण

:- किसी विषय से संबंधित पाठ्यक्रम बनाते समय अधिक अधिगम स्थानांतरण के सिद्धांत का अनुपालन करना चाहिए। तथा पाठ्यक्रम विषय वस्तुओं का संयोजन इस प्रकार हो कि उनमें परस्पर  ससंबंधता भी हो तथा सरल से विशिष्ट की ओर हो। पाठ्यक्रम की रचना में दो प्रकार की अधिगम स्थानांतरण को समाहित करना चाहिए प्रथम क्षैतिज तथा द्वितीय ऊर्ध्वाधर।

2. समय तालिका

:- विविध कक्षाओं के संदर्भ में समय तालिका का निर्माण करते समय अधिगम स्थानांतरण के सिद्धांतों का अनुपालन करना चाहिए। जिन विषयों के अध्ययन अध्यापन में सामान्यता अधिक है वह क्रमागत कक्षा पीरियड में समायोजित करने चाहिए। जिन विषयों के अधिगम के स्थानांतरण की संभावना कम हो उन्हें बाद में रखना चाहिए और पृथक रूप में समायोजित करने चाहिए।

3. शिक्षण विधि

:- कक्षा शिक्षण कार्य करते समय विषय वस्तु की प्रस्तुति इस रूप में करनी चाहिए कि विद्यार्थी पूर्व में सीखे हुए ज्ञान का उपयोग वर्तमान में सीखे जाने वाले ज्ञान के संदर्भ में करें।

4.अध्यापन के जाने वाले विषय को सामान्य जीवन से संबंधित करना

:- कक्षा में अध्यापन करते समय संबंधित विषय को सामान्य जीवन से संबंधित करते हुए पढ़ाना चाहिए जिससे कि विद्यार्थी सीखे हुए ज्ञान का उपयोग अपने जीवन के क्षेत्र में अधिकता से कर सके तथा उसका प्रयोग दैनिक जीवन में आए विभिन्न समस्याओं के समाधान हेतु कर सके।

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