अनुशासन के सिद्धान्त | Principles of Discipline

 Q.  अच्छे अनुशासन के सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए। (Discuss the principles of good Discipline.)

Ans.

अनुशासन के सिद्धान्त (Principles of Discipline)

 

अनुशासन की स्थापना कुछ आधारभूत नियमों पर आधारित है। प्रश्न उठता है कि ऐसे कौन-से सिद्धान्त हैं जिनके आधार पर विद्यालय में उत्तम अनुशासन स्थापित किया जा सकता है। अतः निम्नलिखित सिद्धान्तों को ध्यान में रखकर स्कूल या  विद्यालय में अनुशासन स्थापित किया जा सकता है

1. आत्म-नियंत्रण- यदि छात्रों में आत्मनियंत्रण की भावना उत्पन्न कर दी जाये तो वे अपने आप पर नियंत्रण रखकर कोई भी अवांछनीय कार्य नहीं करेंगे और अनुशासन का हृदय से पालन करेंगे ।

2. प्रेम, विश्वास तथा सद्भावना-अनुशासन का आधार प्रेम, विश्वास तथा सद्भावना हो क्योंकि घृणा, भय आदि पर आधारित अनुशासन क्षणिक होता है। कक्षा में शिक्षक को अपने चेहरे पर भय या आतंक का भाव लेकर नहीं जाना चाहिये। जहाँ तक हो छात्रों से प्रेम एवं स्नेहपूर्वक व्यवहार करना चाहिये। सच्चे अनुशासन को स्थापना के लिये प्रधानाध्यापक, शिक्षक वर्ग तथा छात्रों के मध्य पारस्परिक प्रेम होना चाहिये। प्रेम ही विश्वास को उत्पन्न करता है।

3. आत्म-विश्वास की भावना शिक्षक को कक्षा में पूर्ण आत्म-विश्वास के साथ प्रवेश करना चाहिये। यदि शिक्षक को अपने पर विश्वास नहीं होगा तो वह कक्षा को नियंत्रित नहीं कर सकता ।

4. मानवीय गुणों के प्रति आदर-छात्र कभी-कभी अमानवीय कार्य भी कर बैठते हैं। इन अमानवीय कार्यों के प्रति घृणा उत्पन्न करके मानवीय सद्गुणों के प्रति आदर जागृत करना हो अनुशासन का मुख्य सिद्धान्त है।

5. छात्रों की समस्याओं को जानना शिक्षक को छात्रों की समस्याओं को समझने का प्रयास करना चाहिये एवं परिस्थिति के अनुसार प्रत्येक छात्र की व्यक्तिगत समस्या का समाधान करने का प्रयत्न करना चाहिये ।

6. लिखित कार्य को महत्त्व देना कक्षा में लेखन कार्य को महत्व देना चाहिये। इसके द्वारा छात्रों को सरलता से व्यस्त रखा जा सकता है। छात्रों को किसी न किसी कार्य में व्यस्त रखना अनुशासन की कुंजी है।

7. पाठ में रूचि उत्पन्न करना छात्र बिना रुचि के पाठ में अपना ध्यान केन्द्रित नहीं कर सकते। अतः शिक्षक को अपना पाठ रोचक बनाने के लिये नवीन एवं उचित शिक्षण विधियाँ तथा समुचित सहायक सामग्री का उपयोग कक्षा – कक्ष में करना चाहिये ।

8. दण्ड का बहिष्कार–दण्ड किसी बुरे कार्य को करने से रोक सकता है परन्तु कोई महत्वपूर्ण  गुण उत्पन्न नहीं कर सकता। दण्ड द्वारा हम किसी के व्यक्तित्व का निर्माण नहीं कर सकते, भयभीत अवश्य कर देते हैं। यदि दण्ड का बार-बार प्रयोग किया गया तो इसमें छात्रों के मस्तिष्क में विभिन्न प्रकार की ग्रन्थियाँ (Complexes) बनने की सम्भावना रहती है। अत: अनुशासन व्यवस्था में किसी दण्ड का आश्रय नहीं लेना चाहिये ।

9. विद्यालय का वातावरण-अनुशासन के लिये विद्यालय का वातावरण सुन्दर एवं सामंजस्यपूर्ण होना चाहिये। इसका दायित्व केवल शिक्षकों एवं अन्य अधिकारियों पर नहीं होता। इस प्रकार के वातावरण के निर्माण के लिये छात्रों, अभिभावकों तथा सम्पूर्ण समाज को भी सहयोग करना चाहिये ।

10. कक्षा में समय पर पहुँचना–यदि शिक्षक कक्षा में समय से पहुँचता है तो उसके लिये छात्रों को अपने नियंत्रण में करना सरल है। कालांश समाप्त होते ही कक्षा को छोड़ देना उचित है।

11.  पाठ  की पूर्ण तैयारी कक्षा में प्रवेश करने से पूर्व शिक्षक को अपना पाठ भली भाती प्रकार से तैयार कर लेना चाहिये बिना पाठ तैयार किये पढ़ाने से छात्रों के बिच कक्षा में अनुशासन नहीं रहता।

12. छात्रों का नाम जानना-कक्षा में अनुशासन स्थापित करने के लिये छात्रों का नाम जानना अति आवश्यक है।

13. पर्याप्त स्वतंत्रता एवं सुविधाएँ– विद्यालय में छात्र छात्रों एवं शिक्षकों को अपने-अपने कर्तव्यों को पूर्ण करने हेतु पर्याप्त स्वतंत्रता एवं सुविधाएँ प्रदान की जानी चाहिये। इससे छात्र एवं शिक्षक दोनों ही अनुशासित रहकर कार्य करते हैं।

14. अनुशासन के महत्त्व से अवगत कराना-बालकों को अनुशासन के महत्त्व से अवगत कराया जाना चाहिये। उन्हें विभिन्न महान् पुरुषों के उदाहरणों से इसके विषय में ज्ञान दिया जाये तथा स्वयं प्रधानाध्यापक और शिक्षक उनके समक्ष अपना उदाहरण प्रस्तुत करें ।

15. मधुर ध्वनि का प्रयोग शिक्षक का छात्रों के समक्ष अपनी ध्वनि सदैव मधुर रखनी चाहिये। अनुशासन जोर जोर से चिल्लाकर नहीं स्थापित किया जा सकता। शिक्षक को आवाज इतनी ऊँची भी हो कि प्रत्येक छात्र सरलता से सुन सकें।
 16. विभिन्न रचनात्मक कार्य- इससे छात्रों को उनकी रुचियों के अनुसार विभिन्न कार्यों के करने से मानसिक एवं संवेगात्मक सन्तोष मिलेगा। इससे अनुशासनहीनता की समस्या उत्पन्न होने की सम्भावना नहीं रहेगी।

17. सहयोग पर आधारित प्रधानाध्यापक एवं शिक्षकों, शिक्षकों एवं छात्रों, शिक्षकों एवं अभिभावकों, छात्र एवं छात्राओं के मध्य सहयोग होना परम आवश्यक है। इनके मध्य मधुर सम्पर्क स्थापित करना आवश्यक है। यदि इनके मध्य सहयोग नहीं होगा तो उत्तम अनुशासन स्थापित करना अत्यन्त कठिन होगा।

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