Experimental Method | प्रयोगात्मक विधि | प्रयोगात्मक विधि का अर्थ स्पष्ट कीजिए

प्रयोगात्मक विधि (Experimental Method)

शिक्षा मनोविज्ञान में प्रयोगात्मक विधि ( Experimental Method ) सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण विधि मानी गई है। प्रयोगात्मक विधि में शिक्षक या प्रयोगकर्ता छात्रों के व्यवहारों का अध्ययन एक नियंत्रित परिस्थिति (controlled situation) में करते हैं। नियंत्रित परिस्थिति से तात्पर्य एक ऐसी परिस्थिति से होता है जिसमें स्वतंत्र चर’ (independent variable) में खुलकर जोड़-तोड़ (manipulation) करना संभव हो तथा साथ ही साथ अन्य सभी दूसरे तरह के घर जिनका प्रभाव आश्रित चर (dependent (variable) पर पड़ सकता है, नियंत्रित हो। नियंत्रित अवस्था किसी प्रयोगशाला में भी उत्पन्न की जा सकती है या वास्तविक परिस्थिति (real situation) में भी जब प्रयोग की नियंत्रित अवस्था किसी प्रयोगशाला में उत्पन्न की जाती है, तब इस तरह के प्रयोग को प्रयोगशाला प्रयोग (laboratory experiment) तथा जब प्रयोग की नियंत्रित अवस्था वास्तविक परिस्थिति या क्षेत्र (field) में उत्पन्न की जाती है, तब इस तरह के प्रयोग को क्षेत्र प्रयोग (field experiment) कहा जाता है। शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र में शिक्षक प्रयोगशाला प्रयोग तथा क्षेत्र प्रयोग, दोनों ही करते हैं।

Experimental Method

मनोवैज्ञानिक प्रयोग (psychological experiment) का आधार प्रयोगात्मक डिजाइन (experimental design) होता है। प्रयोगात्मक डिजाइन से तात्पर्य प्रयोग के लिए बनी हुई एक ऐसी परियोजना (plan) तथा संरचना (structure) से होता है जिसके आधार पर प्रयोग की समस्या का

1. स्वतंत्र चर (independent variable) वैसे चर को कहा जाता है जिसमें प्रयोगकर्ता द्वारा जोड़-तोड़ किया जाता है तथा जसके प्रभाव से आश्रित चर (dependent variable) प्रभावित होता है।

2. आश्रित चर वैसे चर को कहा जाता है जिसके बारे में प्रयोगकर्ता प्रयोग करके कुछ पूर्ववाचन (prediction) करना चाहता है।

उत्तर ढूँढ़ा जाता है। प्रयोगात्मक डिजाइन के प्रयोग में सम्मिलित किए गए स्वतंत्र र (independent variables), आश्रित चर (dependent variables) तथा नियंत्रित चर (controlice variables) आदि का उल्लेख होता है तथा स्वतंत्र चर में जोड़-तोड़ (manipulation) करने का ढंग तथा नियंत्रित चर के प्रभाव को रोकने का ढंग आदि का उल्लेख करके प्रयोगकर्ता अपने प्रयोग को अधिक वैज्ञानिक बनाता है। शिक्षा मनोविज्ञान के प्रयोगों में कई तरह के प्रयोगात्मक डिजाइन का उपयोग किया जाता है जिनमें निम्नांकित प्रमुख हैं

(क) एकसमूह डिजाइन (One Group Design)

इस तरह के डिजाइन में छात्रों के मात्र एक समूह का उपयोग किया जाता है। इस डिजाइन के भीतर निम्नांकित दो डिजाइन आते हैं

(i) एकसमूह पोस्ट-टेस्ट डिजाइन (One group post-test design)–

यह एक सरलतम (simplest)) प्राक्-प्रयोगात्मक डिजाइन (pre-experimental design) है जिसमें एक समूह को विवेचन (treatment) देकर उसके प्रभाव का अध्ययन किया जाता है। इसमें कोई तुलना समूह (comparison group) नहीं होता है। जैसे यदि शिक्षक 10 छात्रों का एक ऐसा समूह लेते हैं जिन्हें धूम्रपान करने की आदत है और 1 महीने तक उसे धूम्रपान न करने या धूम्रपान करने से उत्पन्न समस्याओं से अवगत कराते हैं और इसके बाद यदि उसमें 6 छात्र उस 1 महीने के बाद धूमपान करना छोड़ देते हैं, तो प्रयोग का यह सरलतम डिजाइन यहाँ एकसमूह पोस्ट-टेस्ट डिजाइन का उदाहरण होगा।

(ii) एकसमूह प्रीटेस्ट-पोस्ट-टेस्ट डिजाइन (One group pretest-post-test design)-

 

प्रयोग का यह डिजाइन एकसमूह पोस्ट-टेस्ट डिजाइन से थोड़ा श्रेष्ठ (superior) होता है। इस डिजाइन में भी एक ही समूह की भागीदारी (participation) होती है, परंतु उस समूह को जाँच दो बार को जाती है— प्रथम बार विशेष विवेचन (special treatment) के पहले और दूसरी बार उस विवेचन के बाद। इसके बाद प्रयोगकर्ता दूसरी जाँच (second test) तथा पहली जाँच (first test) का तुलनात्मक अध्ययन करके अपनी प्राक्कल्पना (hypothesis) की सत्यता की जाँच करता है। जैसे यदि छात्रों के एक समूह को बी० एड० कक्षा प्रारंभ होने के दिन शिक्षा मनोविज्ञान के ज्ञान की जाँच कर ली जाती है और फिर 9 महीने तक उसे शिक्षा मनोविज्ञान पढ़ाने के बाद शिक्षा मनोविज्ञान के ज्ञान की जाँच कर ली जाती है और इन दोनों जाँचों (tests) में यदि प्राप्तांक (scores) में अंतर आता है तो यह कहा जा सकता है कि अंतर का कारण विशेष विवेचन (special treatment) (अर्थात 9 महीने तक पढ़ाया जाना है। इस तरह के डिजाइन को एकसमूह प्रीटेस्ट-पोस्ट-टेस्ट डिजाइन कहा जाता है।

(ख) द्विसमूह डिजाइन (Two Group Design)

 

जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, इस प्रयोगात्मक डिजाइन में प्रयोज्यों (subjects) का कम-से-कम दो समूह होता है— प्रयोगात्मक समूह (experimental group) तथा नियंत्रित समूह (control group) | प्रयोगात्मक समूह वैसे समूह को कहा जाता है जिसमें स्वतंत्र चर (independent variable) उपस्थित किया जाता है तथा नियंत्रित समूह वैसे समूह को कहा जाता है जिसमें स्वतंत्र चर को अनुपस्थित रखा जाता है। इस तरह के डिजाइन का प्रयोग शिक्षा मनोविज्ञान में सर्वाधिक किया जाता है। इस डिजाइन के भी कई उपप्रकार (subtypes) हैं, परंतु शिक्षा मनोविज्ञान में निम्नांकित दो डिजाइनों का उपयोग सबसे अधिक किया जाता है

(1) प्रीटेस्ट-पोस्ट-टेस्ट डिजाइन (Pretest-post-test design)–

 

इस डिजाइन में दो समूह होते है- एक प्रयोगात्मक समूह (experimental group) तथा दूसरा नियंत्रित समूह (control group) 1 प्रयोगात्मक समूह तथा नियंत्रित समूह दोनों की जाँच (test), जिसे प्रीटेस्ट कहा जाता है, कर लिया जाता है। इसके बाद प्रयोगात्मक समूह को विशेष विवेचन (treatment) दिया जाता है जबकि नियंत्रित समूह को उस प्रकार के विवेचन से वंचित रखा जाता है। इसके बाद पुन दोनों समूहों की जाँच जिसे पोस्ट-टेस्ट कहा जाता है, किया जाता है। यदि दोनों समूह के पोस्ट-टेस्ट प्राप्तांक (post-test scores) में अंतर होता है, तो इसका कारण प्रयोगात्मक समूह को दिया जानेवाला विशेष विवेचन माना जाता है।

उदाहरण– यदि शिक्षक छात्रों के दो समूह को अंकगणितीय परीक्षण (arithmetical test) पर जाँच करके एक समूह को अंकगणित (arithmetic) में 2 महीने का विशेष प्रशिक्षण देते है और दूसरे समूह को उस प्रशिक्षण से वंचित रखते हैं और प्रशिक्षण के बाद दोनों समूहों की अंकगणितीय क्षमता की जाँच अंकगणित परीक्षण द्वारा पुनः करके करते हैं, तो यह एक प्रोटेस्ट पोस्ट-टेस्ट डिजाइन का उदाहरण होगा। यदि शिक्षक पहले समूह यानी प्रयोगात्मक समूह (experimental group) के प्राप्तांक (score) दूसरे समूह अर्थात नियंत्रित समूह के प्राप्तांक से अधिक पाते हैं, तो वे निश्चय होकर यह कह सकते हैं कि इसका कारण प्रयोगात्मक समूह को दिया जानेवाला दो महीने का विशेष प्रशिक्षण ही है।

(ii) समामेलित द्विसमूह डिज़ाइन (Matched two group design)

– इस डिजाइन में प्रयोगकर्ता प्रयोज्यों को पहले उस चर (variable) पर समामेलित (matched) कर लेता है जिसके कारण आश्रित चर (dependent variable) में अंतर हो सकता है। इसके बाद फिर समामेलित युग्मों (matched pairs) में प्रत्येक व्यक्ति का आवंटन (assignment) यादृच्छिक ढंग से (randomly) दो समूह में कर दिया जाता है और फिर उनमें कोई एक प्रयोगात्मक समूह (experimental group) तथा दूसरा नियंत्रित समूह (control group) के रूप में कार्य करता है। प्रयोगात्मक समूह को विशेष विवेचन (special treatment) दिया जाता है तथा नियंत्रित समूह को इस प्रकार के विवेचन से मुक्त रखा जाता है। बाद में इन दोनों समूहों का प्राप्तांक (score) आश्रित चर पर प्राप्त किया जाता है। यदि प्रयोगात्मक समूह के प्राप्तांक के माध्य तथा नियंत्रित समूह के प्राप्तांक के माध्य में अंतर आता है, तो इसका कारण प्रयोगात्मक समूह को दिया जानेवाला विशेष विवेचन समझा जाता है। उदाहरणतः, यदि शिक्षक यह देखना चाहते हैं कि छात्रों द्वारा एक कविता सीखने की प्रक्रिया पर पुरस्कार का क्या प्रभाव पड़ता है। इस प्रयोग में सीखने की प्रक्रिया आश्रित चर (dependent variable) है तथा पुरस्कार स्वतंत्र पर (independent variable) है। शिक्षक यह समझते हैं कि छात्रों की बुद्धि में अंतर होने से सीखने की प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है। अतः वे इन छात्रों को (मान लिया जाए कि कुल 12 छात्र है) बुद्धिलब्धि पर समामेलित (matched) कर लेंगे। इसका मतलब यह हुआ कि प्रत्येक छात्र की बुद्धिलब्धि के बराबर कम-से-कम एक छात्र समूह में और होगा। इस तरह से मिलान natch कर लेने के बाद 12 छात्र के 6 युग्म (pair) बन जाएँगे और फिर प्रत्येक युग्म के प्रत्येक छात्र को यादृच्छिक ढंग से दो समूह में बाँट देगे जिसमें से एक प्रयोगात्मक समूह होगा तथा दूसरा नियंत्रित समूह होगा। प्रयोगात्मक समूह में सीखने के लिए पुरस्कार दिया जाएगा तथा नियंत्रित समूह को सीखने के लिए पुरस्कार नहीं दिया जाएगा। अंत में इस बात का विश्लेषण किया
जाएगा कि प्रयोगात्मक समूह ने कविता सीखने में कितनी त्रुटियों की तथा कितना समय लिया और इसी तरह से नियंत्रित समूह द्वारा लिए गए समय तथा की गई त्रुटियों की गणना की जाएगी। यदि प्रयोगात्मक समूह द्वारा कम समय लिए जाते हैं तथा कम त्रुटि की जाती है, तो इसका कारण पुरस्कार का दिया जाना बताते हुए शिक्षक इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि पुरस्कार देने से सीखने की प्रक्रिया में तीव्रता आती है।

(ग) बहुसमूह डिजाइन (Multigroup Design)

शिक्षा मनोविज्ञान में बहुसमूह डिजाइन का भी उपयोग कर कई प्रयोग किए गए है। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, इसमें दो से अधिक समूह प्रयोग में भाग लेते हैं। जब कई समूहों की तुलना मात्र एक स्वतंत्र चर (independent variable) के विभिन्न स्तरों पर की जाती है, तो इसमें विशेष सांख्यिकीय परीक्षण (statistical test) अर्थात साधारण ANOVA (Analysis of variance) ज्ञात कर एक निष्कर्ष पर पहुँचा जाता है। परंतु, जब कई समूहों की तुलना दो या दो से अधिक स्वतंत्र चरो के विभिन्न स्तरों पर की जाती है तो इसमें एक दूसरे तरह की सांख्यिकीय परीक्षण को जटिल ANOVA (Complex ANOVA या Two-way ANOVA) कहा जाता है तथा इस डिजाइन को कारकगुणित डिजाइन (factorial design) कहा जाता है। जैसे, यदि शिक्षक मात्र यह देखना चाहते हैं कि छात्रों को पढ़ाने (teaching) में पढ़ाने की विधि का क्या प्रभाव पड़ता है, तो वे आसानी से छात्रों का दो समामेलित समूह (matched group) या यादृच्छित समूह (randomised group) तैयार कर एक समूह को लेक्चर विधि से तथा दूसरे समूह को परिचर्या विधि (discussion method) से पढ़ाकर तथा परिणाम की व्याख्या साधारण ANOVA से करके एक निष्कर्ष पर पहुँच सकते हैं। परंतु, यदि वे यह भी जानना चाहते हैं कि पढ़ाने की विधि के साथ-ही-साथ पढ़ाने की भाषा (language of teaching) का क्या प्रभाव पड़ता है, तो यहाँ उसे परिणाम की व्याख्या जटिल ANOVA से करनी होगी और प्रयोग का यह डिजाइन कारकगुणित डिजाइन (factorial design) कहलाएगा।

प्रयोगात्मक विधि के कुछ गुण (merits) तथा सीमाएँ (limitations) हैं। इस विधि के प्रमुख गुण निम्नांकित है

(i) प्रयोगात्मक विधि का सबसे प्रमुख गुण यह बताया गया है कि इसके द्वारा बालकों या शिक्षार्थियों ( learners) के व्यवहारों का अध्ययन एक नियंत्रित परिस्थिति (controlled situation) में किया जाता है। इसका मतलब यह हुआ कि प्रयोगात्मक विधि द्वारा हम शिक्षार्थी के व्यवहार का अध्ययन एक ऐसी परिस्थिति में करते हैं जहाँ सिर्फ एक चर (variable), जिसके प्रभाव का अध्ययन करना होता है, को छोड़कर बाकी सभी चरों के प्रभाव को नियंत्रित कर दिया जाता है। इससे प्राप्त परिणाम अधिक विश्वसनीय हो जाते हैं और प्रयोग की आंतरिक वैधता (internal validity) काफी बढ़ जाती है।

(ii) प्रयोगात्मक विधि में पुनरावृत्ति (replicaction) का गुण होता है। यह विधि एक स्पष्ट डिजाइन पर आधारित होती है। फलस्वरूप जब भी चाहे, इस विधि के उस डिजाइन को अपनाकर प्रयोग को दुहराया जा सकता है तथा प्राप्त परिणाम की सत्यता की जाँच आसानी से की जा सकती है। यदि किसी शिक्षक द्वारा प्रयोग कर इस निष्कर्ष पर पहुँचा गया हो कि बच्चों को पढ़ाने में या कोई पाठ सिखाने में भाषण विधि (lecture method) से अधिक प्रभावकारी प्रदर्शन विधि (demonstration method) होती है, तो इस प्रयोग की डिजाइन के अनुसार पुनः दो बार प्रयोग करके इस निष्कर्ष की सत्यता की जाँच आसानी से कर ली जा सकती है। इस ढंग की सुविधा शिक्षा मनोविज्ञान की अन्य विधियों में उपलब्ध नहीं है।

(iii) प्रयोग विधि का एक अन्य गुण यह बताया गया है कि प्रयोग में चूँकि अंतर्निरीक्षण विधि तथा वस्तुनिष्ठ प्रेक्षण विधि (objective observation method) दोनों का एक सम्मिश्रण पाया जाता है, अतः प्रयोग के परिणाम की वैधता (validity) अन्य विधियों से अधिक होती है। शिक्षा मनोवैज्ञानिक प्रयोग करके जो आँकड़े प्राप्त करते हैं उसका आधार प्रेक्षण (observation) होता है. और साथ-ही-साथ उन वस्तुनिष्ठ आंकड़ों की जाँच प्रयोज्यों से एक अंतर्निरीक्षण (introspection) लेकर भी किया जाता है। उदाहरणार्थ, यदि शिक्षक प्रयोग के वस्तुनिष्ठ आँकड़ों के आधार पर इस निष्कर्ष पर पहुँचनेवाले हैं कि छोटे-छोटे बच्चों के वर्ग में लेक्चर विधि से पढ़ाना या सिखाना उतना श्रेष्ठकर नहीं होता है जितना कि प्रदर्शन विधि (demonstration method), तो वे अंतिम निष्कर्ष पर पहुँचने के पहले बच्चों का अंतर्निरीक्षण रिपोर्ट (introspective report) लेकर भी निष्कर्ष के समर्थन में कुछ तथ्य प्राप्त कर लेना चाहेंगे। इस तरह से प्रयोगात्मक विधि में निष्कर्षों के दोहरा सत्यापन का गुण भी मौजूद रहता है जो शिक्षा मनोविज्ञान की अन्य विधियों में नहीं है।

(iv) प्रयोगात्मक विधि में चूंकि स्वतंत्र चर (independent variable) में जोड़-तोड़ करके उसके आश्रित चर (dependent variable) पर उसके पड़नेवाले प्रभाव का अध्ययन किया जाता है, अतः इस विधि में कारण परिणाम संबंध (cause-effect relationship) की अभिव्यक्ति अधिक स्पष्ट रूप से की जाती है। यदि शिक्षक छात्रों के एक समूह में पुरस्कार देने पर उसके सीखने की गति में तीव्रता पाते हैं तथा छात्रों के दूसरे समूह में पुरस्कार नहीं देने पर सीखने की गति में मंदता पाते हैं, तो वैसी अवस्था में वे स्पष्ट रूप से पुरस्कार (कारण) तथा सीखना (परिणाम) में एक संबंध स्थापित करते हुए इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि पुरस्कार से सीखने की प्रक्रिया प्रभावित होती है।

इन गुणों के बावजूद इस विधि की कुछ सीमाएँ (limitations) हैं जो इस प्रकार हैं

(1) ऐसा कहा जाता है कि प्रयोगात्मक विधि (Experimental Method)  की जो नियंत्रित परिस्थिति (control situation) होती है, वह अवास्तविक (unreal) या कृत्रिम (artificial) परिस्थिति होती है। इस तरह की परिस्थिति का संबंध जीवन की वास्तविकताओं (realities) से नहीं होता। फलस्वरूप ऐसी परिस्थिति में शिक्षा मनोवैज्ञानिकों द्वारा शिक्षार्थियों का अध्ययन किया गया व्यवहार भी कृत्रिम, अस्वाभाविक या अवास्तविक हो जाता है और परिणाम की बाह्य वैधता (external validity) अर्थात उससे प्राप्त तथ्यों को आम बालकों के लिए सही मानना संभव नहीं हो पाता है।

(ii) शिक्षा मनोविज्ञान की कुछ समस्याएँ ऐसी हैं जिनका प्रयोगात्मक विधि द्वारा ठीक ढंग से अध्ययन नहीं किया जा सकता है। जैसे, बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य (mental health), पिछड़ापन, अपराधीकरण आदि से संबंधित समस्याओं का सही ढंग से प्रयोगात्मक विधि द्वारा यदि अध्ययन करने की कोशिश की जाए, तो समान्यत ऐसा करना एक दुष्कर कार्य होगा।

(iii) प्रयोगात्मक विधि में कुछ विशेष प्रकार के दोष स्वाभाविक रूप से सम्मिलित होते हैं। प्रयोगकर्ता पूर्वाग्रह (experiment bias) तथा प्रतिदर्श पूर्वाग्रह (sampling bias) दो ऐसे ही दोष है। प्रयोगकर्ता पूर्वाग्रह में प्रयोगकर्ता की अपनी आकांक्षाए या प्रत्याशाएँ (expectations) प्रयोग के परिणाम तथा प्रेक्षण प्रक्रिया को प्रभावित करती है तथा प्रतिदर्श पूर्वाग्रह से तात्पर्य प्रयोज्यों (subjects) का उपयुक्त प्रतिनिधि (representative) नहीं होने से होता है। अकसर ऐसा देखा गया है कि शिक्षा मनोवैज्ञानिक को जो छात्र या शिक्षार्थी सुविधानुसार मिल जाते हैं, उनको अपने प्रयोज्यो की सूची में शामिल कर लेते हैं। अकसर ऐसे प्रयोज्य उन बालकों या छात्रों का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं जिनके बारे में प्रयोग करके पूर्ववाचन (prediction) करना होता है। यह भी देखा गया है कि शिक्षक पहले से अपने शिक्षार्थियों के बारे में कुछ पूर्वाग्रह विकसित कर लेते हैं और उसे मन में रखकर प्रयोग करना प्रारंभ कर देते हैं। उसमें प्रयोग के परिणाम की विश्वसनीयता (rehability) तथा वैधता (validity) बुरी तरह प्रभावित हो जाती है।

इन सीमाओं के बावजूद प्रयोगात्मक विधि शिक्षा मनोविज्ञान की एक प्रमुख विधि है। अधिकतर शिक्षा मनोवैज्ञानिकों का मत है कि शिक्षा मनोविज्ञान में प्रयोगात्मक विधि की भूमिका उतनी ही महत्त्वपूर्ण है जितनी कि शिक्षा में शिक्षक की रिकन्नर (Skinner, 1976) ने यह बताया है कि जिस तरह शिक्षक के बिना शिक्षा का अस्तित्व संभव नहीं है, उसी प्रकार प्रयोगात्मक विधि के अभाव में शिक्षा मनोविज्ञान का वैज्ञानिक विकास संभव नहीं है।

वस्तुनिष्ठ निरीक्षण या प्रेक्षण विधि (Objective Observation Method)

 

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