अवधारणात्मक अधिगम किया है

Q – अवधारणात्मक अधिगम किया है /से अभिप्राय / तात्पर्य क्या है

अवधारणात्मक अधिगम किया है:- सीखना निरन्तर चलने वाली एक सार्वभौमिक व मानसिक प्रक्रिया है। जो जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त तक व्यक्ति के साथ चलती है। अवधारणाओं में परिवर्तन को अवधारणात्मक का अधिगम का आधार माना जाता है क्योंकि भिन्न प्रकार के संज्ञानात्मक विकास के लिए अवधारणाओं में परिवर्तन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। संज्ञानात्मक विकास की प्रक्रिया में विविध प्रकार के चित्रण या अवधारणाएं निर्गत होती है। इस अवधारणाओं में अनेक रुप से परिवर्तन होता है

अवधारणात्मक अधिगम किया है

जैसे: – जब बालक 2 वर्ष का होता है तो वह उड़ने वाली प्रत्येक वस्तु को चूड़ियां कहता है क्योंकि उसके मन में उड़ने वाले वस्तु की अवधारणा एक चिड़िया के रूप में करता है जैसे ही उसकी आयु अस्तर बढ़ता है वह बच्चा जानने लगता है की चिड़िया के अतिरिक्त उड़ने वाली अन्य वस्तुएं जैसे हवाई जहाज हेलीकॉप्टर एवं पतंग भी है। अतः जो बालक हवाई जहाज तथा पतंग को भी चिड़िया समझता था उसकी व्याख्या बड़ी चिड़िया यह रंग बिरंगी चिड़िया के रूप में करता था अब वही बालक उसकी व्याख्या हवाई जहाज एवं पतंग के रूप में करता है।

इस प्रकार बालकों की अवधारण  की प्रक्रिया निरंतर चलने वाली प्रक्रिया के रूप में होती है। अवधारणात्मक परिवर्तन की प्रक्रिया संज्ञानात्मक विकास के साथ-साथ चलती रहती है। जैसे ऐसे छात्र के आयु अस्तर मानसिक विकास एवं संज्ञानात्मक क्षेत्र में वृद्धि होती है अवधारणात्मक परिवर्तन होते रहते हैं अवधारणात्मक परिवर्तन को स्पष्ट करते हुए विद्वानों ने निम्नलिखित परिभाषाएं दी है –

#:- प्रो0 एस0 के0 दुबे के अनुसार

:- अवधारणात्मक परिवर्तन का आशय विभिन्न प्रकार के तथ्यों एवं अनुभवों की पूर्व अवधारणा में पूर्व निर्मित एवं पूर्ण गठन की प्रक्रिया से है जिसमें छात्र नवीन सूचनाओं को पूर्व सूचनाओं से से संबंधित करता है तथा अपने संज्ञान में वृद्धि करने का प्रयास करता है यह प्रक्रिया निरंतर रूप से चलती रहती है

#:- श्रीमती आर0 के0 शर्मा के अनुसार

अवधारणात्मक परिवर्तन की प्रक्रिया निरंतर चलने वाली प्रक्रिया के रूप में जानी जाती है जिसमें एक बालक अपनी अवधारणाओं में संज्ञानात्मक विकास एवं परिपक्वता के आधार पर नवीन सूचनाओं एवं तथ्यों के माध्यम से परिवर्तन करता है।    उपयुक्त विवेचना से यह विचार स्पष्ट हो जाता है कि अवधारणा त्मक परिवर्तन की प्रक्रिया अनेक प्रकार के संज्ञानात्मक परीक्षाओं का परिणाम है। छात्र अपने विविध अनुभवों में आवश्यकतानुसार परिवर्तन करता चला जाता है। यह सभी उसके द्वारा इस संसार चक्र में होने वाली गतिविधियों के आधार पर किया जाता है। अवधारणा आत्मक परिवर्तन की प्रक्रिया एक व्यापक प्रक्रिया है जिसमें समय-समय पर पुरानी अवधारणाओं में संशोधन भी होता है। यह प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है इस प्रक्रिया को उत्पन्न करने में कुछ महत्वपूर्ण अवस्थाएं एवं अपनी कारक अपनी भूमिका का निर्वाह करते हैं। अवधारणा आत्मक परिवर्तन को सतत विकसित करने वाले कारकों का वर्णन निम्नलिखित रुप में किया जा सकता है

  1. नवीन अनुभव
  2. नवीन सूचनाएं
  3. चिंतन एवं तर्क
  4. अनुसंधान
  5. निर्देशन एवं परामर्श
  6. प्रयोग
  7. संश्लेषण एवं विश्लेषण
  8. ज्ञान का विस्तार
  9. बुद्धि
  10. सर्वांगीण विकास

इन्हें भी देखें

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