TRANSFER OF LEARNING | अधिगम का स्थानांतरण

TRANSFER OF LEARNING | अधिगम का स्थानांतरण

TRANSFER OF LEARNING / अधिगम का स्थानांतरण का अर्थ :- एक विषय अथवा परिस्थिति से प्राप्त ज्ञान का अन्य विषयों अथवा परिस्थितियों में उपयोगी सिद्ध होना यह सीखने का स्थानांतरण कहलाता है। व्यक्ति स्थानांतरण के द्वारा उसी सीमा तक सीखता है जिस सीमा तक एक परिस्थिति से अर्जित योग्यताएं दूसरी परिस्थिति में सहायता देती है। तो उसे अधिगम का स्थानांतरण कहते हैं

TRANSFER OF LEARNING

 

अधिगम का स्थानांतरण की परिभाषा

“अधिगम स्थानांतरण” का अर्थ है किसी व्यक्ति या समूह द्वारा प्राप्त ज्ञान या जानकारी को एक स्थान से दूसरे स्थान में स्थानांतरित करना। इसमें व्यक्ति या समूह के द्वारा प्राप्त ज्ञान को दूसरों के साथ साझा किया जाता है, जिससे उनका ज्ञान बढ़ता है और समृद्धि होती है। इस प्रक्रिया में आमतौर पर विभिन्न विधाओं का उपयोग किया जाता है, जैसे कि व्यक्तिगत वार्ता, लेखन, प्रस्तुतियाँ, अध्ययन, या इंटरनेट के माध्यम से। अधिगम स्थानांतरण के माध्यम से ज्ञान की व्यापकता बढ़ती है और लोगों के बीच साझा किया जाता है।

  • क्रो एंड क्रो के अनुसार

:- “अधिगम क्षेत्र में प्राप्त चिंतन की आदतें अनुभव अथवा ज्ञान की कार्यक्षमता या कौशल का क्षेत्रों में प्रयोग कर सकना ही अधिगम स्थानांतरण कहलाता है।”

  • बी. जे. अंडरवुड के अनुसार

:- “वर्तमान क्रियाएं पर पूर्व अनुभवों के प्रभाव को प्रशिक्षण का स्थानांतरण कहते हैं।”

  • हिल गार्ड एटकिंसन के अनुसार

“एक कार्य को सीखने का आगामी कार्यों को सीखने अथवा करने पर पड़ने वाले प्रभाव को प्रशिक्षण के अंतरण कहते हैं।”

  • सोरेनसन के अनुसार

“स्थानांतरण एक परिस्थिति में अर्जित ज्ञान तथा तो का दूसरी परिस्थिति मैं अंतरण होना है।”

अधिगम स्थानांतरण के प्रकार / Types of  TRANSFER OF LEARNING

सामान्यता अधिगम स्थानांतरण  तीन प्रकार का होता है।

1. धनात्मक अथवा सकारात्मक अधिगम स्थानांतरण

:- इस प्रकार के अधिगम स्थानांतरण में एक परिस्थिति में प्राप्त अधिगम अन्य नवीन परिस्थितियों में सीखने में सहायता करता है। अथवा अनुकूल प्रभाव डालता है। जैसे किसी कक्षा में हिंदी विषय में सीखा हुआ व्याकरण उसी कक्षा के संस्कृत भाषा के व्याकरण को सीखने में सकारात्मक रूप में प्रभाव डालता है जिसे हम धनात्मक अथवा सकारात्मक अधिगम स्थानांतरण कहते हैं।

 धनात्मक अधिगम स्थानांतरण चार प्रकार का होता है।
1. क्षैतिज स्थानांतरण

:- जब किसी एक ही स्तर की कक्षा में किसी एक क्षेत्र में सीखा हुआ ज्ञान अथवा कौशल उसी कक्षा में किसी दूसरे क्षेत्र में लिखे जाने वाले ज्ञान अथवा कौशल के सीखने में सहायक होता है तो उसे क्षैतिज स्थानांतरण कहते हैं। जैसे कक्षा 9 में सीखे हुए गणित के ज्ञान एवं कौशल का उसी कक्षा के विज्ञान में संख्यात्मक समस्याओं को हल करने में सहायक होना।

2. ऊर्धव स्थानांतरण

:- स्थिति में अर्जित ज्ञान अनुभव अथवा प्रशिक्षण अन्य उच्च परिस्थितियों में लाभ पहुंचाएं। जैसे स्कूटर चलाने का लाभ मोटर बोट का पानी का जहाज चलाने में।

3. एकपक्षीय स्थानांतरण

:- जब शरीर के किसी एक अंग द्वारा सीखा हुआ कोई एक कौशल उसी अंग के द्वारा किसी दूसरे कौशल को सीखने में सहायक होता है तो इसे एकपक्षीय स्थानांतरण कहेंगे। जैसे बाएं हाथ से लिखने का कौशल का बाएं हाथ से पेंटिंग करने में सहायक होना।

4. द्विपक्षीय स्थानांतरण

:- जब शरीर के एक अंग द्वारा शिखा हुआ कोई कौशल शरीर के दूसरे अंग द्वारा उसी कौशल को सीखने में सहायक होता है तो इसे द्विपक्षीय स्थानांतरण कहेंगे। जैसे कुछ बालक दोनों हाथों से एक समान लिखते हैं या काम करते हैं। कभी तो वह शौक से करते हैं और कभी अचेतन रूप से दाएं हाथ के बजाय बाएं हाथ से और बाएं हाथ के बजाय दाएं हाथ से काम करने लगते हैं।  

2. ऋणात्मक अथवा नकारात्मक अधिगम स्थानांतरण

:- इस प्रकार के अधिगम स्थानांतरण के अंतर्गत एक परिस्थिति में प्राप्त अधिगम नवीन परिस्थितियों में अधिगम की क्रिया में बाधक हो या बाधा पहुंचाए। जैसे संस्कृत विषय में किया गया अधिगम भूगोल को सीखने में रुकावट डालता है। इसी प्रकार पाठशाला में किया गया अधिगम कला विषय को सीखने में नकारात्मक प्रभाव डालता है।

3. शून्य स्थानांतरण

:- जब एक परिस्थिति में सीखा हुआ ज्ञान अथवा अर्जित कौशल अथवा प्राप्त प्रशिक्षण अन्य नवीन परिस्थितियों में सीखने पर ना तो लाभ पहुंचाए और ना ही बाधा उत्पन्न करें उसे शून्य स्थानांतरण अधिगम कहते हैं

इन्हें भी देखें

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