Thoughts of Rousseau | रूसो के विचार

Thoughts of Rousseau :- (Thoughts of Rousseau )रूसो का जन्म 28 जून 1712 को Switzerland Geneva   में हुआ था। रूसो की मृत्यु 2 जुलाई 1778 को फ्रांस में हुई थी। पुरुषों के पिता का नाम इसाक रोएसा ( Isaac Rousseau)   तथा  माता का नाम सुजैन ( Suzanne Bernard Rousseau ) था। रूसो दार्शनिक होने के साथ-साथ एक बहुत बड़े मनोवैज्ञानिक , लेखक और संगीतकार भी थे। उनके राजनीतिक दर्शन में पूरे यूरोप में प्रबुद्धता की प्रगति के साथ-साथ फ्रांसीसी क्रांति के पहलुओं और आधुनिक राजनीतिक आर्थिक और शैक्षिक विचारों के विकास को प्रभावित किया।

Thoughts of Rousseau| रूसो के विचार

Thoughts of Rousseau

 

रूसो के विचार क्या थे? शिक्षा का उद्देश्य

रूसो के अनुसार बालकों की शिक्षा के लिए शिक्षा के विभिन्न उद्देश्य की चर्चा उन्होंने की है। जो निम्न प्रकार है

1. वर्तमान सुख की प्राप्ति ( Present happiness)

:- रूसो के अनुसार शिक्षा का उद्देश्य बालकों की अपनी प्रकृति अर्थात अपनी जन्मजात प्रवृत्तियों इच्छाओं और रुचियों क अनुसार कार्य करते हुए वर्तमान सुख की प्राप्ति के अवसर मिलने चाहिए। उनका मानना है कि वह शिक्षा व्यर्थ है जो भाभी जीवन के सुख के लिए वर्तमान सुख का बलिदान करते हैं।

2. स्वतंत्रता की प्राप्ति

:- रूसो को स्वतंत्रता बहुत प्रिय है। इसलिए अधिकारों को स्वतंत्र मान्यता देते हैं। उनका कहना है कि वही व्यक्ति स्वतंत्र है जो स्वतंत्रता की कामना करता है। जोवा करना चाहता है वही करता है। सुव्यवस्थित स्वतंत्रता उसके प्रारंभिक शिक्षा से ही देनी चाहिए।

3. विभिन्न अवस्थाओं में शिक्षा का उद्देश्य
1. शैशवावस्था ( शिशु का काल )

:- रूसो का विचार है क्या शिशु एक लघु प्रौढ़ समझ कर उसे प्रौढ़ के समान शिक्षा नहीं देना चाहिए। उन्होंने कहा कि दुर्लभ शरीफ बालक के दुर्लभता को प्रकाशित करता है। इसलिए आवश्यक है कि शिशु के संगठन पर विशेष बल दिया जाए। इसलिए कोमल शरीर को शिक्षा के द्वारा कठोर एवं स्वास्थ्य बनाया जा सके

2. बाल्यावस्था ( Childhood )

:- रूसो के अनुसार बाल्यावस्था में शिक्षा का मुख्य उद्देश्य बालक की ज्ञानेंद्रियों को प्रकाशित करना है। जिससे वह उचित विकास कर सके।

3. किशोरावस्था

:- रूसो 12 से 15 बस के अवस्था को किशोरावस्था कहते हैं। तथा उसे जीवन का सबसे खतरनाक समय मानते हैं। बालपन की निषेधात्मक शिक्षा के बाद बालक को निश्चित शिक्षा देना ही शिक्षा का उद्देश्य है। इस अवस्था में सिर्फ किताबी ज्ञान ही नहीं बल्कि अनुभव एवं स्वयं अर्जित कर ज्ञान देने का उद्देश्य हो जो उसके लिए उपयोगी एवं व्यवहारिक ज्ञान प्राप्त करें। इस समय शिक्षा के मुख्य उद्देश्य किशोर के व्यक्तित्व के विकास के लिए शिक्षा का निर्देशन केवल उपयोगी एवं व्यावहारिक होना चाहिए। जिससे बालक अपने जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति कर सके।

4. युवावस्था

:- रूसो का मानना है कि बालक को 15 वर्ष की अवस्था से ही धर्म की शिक्षा दी जानी चाहिए। जिससे नीति धर्म कलाएं एवं समाजिक संस्थाओं को शिक्षा का दौरा अध्ययन कर आना चाहिए जिससे उसकी ज्ञानेंद्रियों एवं बुद्धि का विकास हो

रूसो के अनुसार पाठ्यक्रम

1. शैशवावस्था /शैशवाकाल

:- यह जन्म से 5 वर्ष तक है। इस काल में रूसो ने खेलते कूदने दौड़ने एवं प्रकृति से लगाव की ओर विशेष शिक्षा व्यवस्था की बात की है इसके अनुसार पोस्ट किए ज्ञान ना देकर प्रकृति का ज्ञान दिया जाए।

2. बाल्यावस्था

:- यह 5 वर्ष से 12 वर्ष का है। इस काल में माना जाता है कि बालकों की बुद्धि का तीव्र गति से विकास कैसे किया जाए। उसके लिए आवश्यक है कि बालकों को कविता पाठ है कहानियों शाब्दिक विज्ञान गणित के सूत्र जलवायु नक्शे इत्यादि को पढ़ाना चाहिए।

3. किशोरावस्था

:- यह समय 12 से 15 वर्ष का है। रूसो का मानना है कि किशोरावस्था जिज्ञासा की अवस्था होती है। जिसमें बालकों को प्राकृतिक विज्ञानों की शिक्षा दी जानी चाहिए। व्यवसायिक शिक्षा इतिहास दर्शन गणित भूगोल हस्तकला संगीत आदि की शिक्षा दी जानी चाहिए।

4. युवावस्था

:- यह समय 15 से 25 वर्ष तक का है। इसमें बालक पूर्व मनुष्य का रूप ले लेता है। जिसमें धार्मिक शिक्षा प्राचीन कथाएं विधि भाषा शारीरिक ज्ञान शिक्षा संगीत इत्यादि।

रूसो के अनुसार शिक्षण विधियां

दूसरों के अनुसार शिक्षण विधि इस प्रकार भी होगी जो निम्न है।

प्रत्यक्ष अनुभव ,  करके सीखना ,  ज्ञानेंद्रियों द्वारा स्व चिंतन खेल विधि ,  स्वतंत्रता , ज्ञानेंद्रियों के द्वारा इत्यादि।

स्त्री शिक्षा ( Woman Education )

:- रूसो  पुरुषों के समान स्त्रियों की शिक्षा पर विशेष बल देते हैं। और कहा बालकों के बराबर ही बालिकाओं की भी शिक्षा होनी चाहिए। उनका मानना है कि नारी अपने मूल प्रवृत्ति से कोमल होती है परंतु उच्च शिक्षा प्राप्त करो वह कठोर प्रवृत्ति की होती है। इसलिए उन्हें वही शिक्षा दी जाए जो उसके लिए उपयोगी है। जैसे गृह विज्ञान संगीत कलाएं नृत्य इत्यादि।

रूसो के अनुसार शिक्षक

:- रूसो के अनुसार शिक्षा का स्थान महत्वपूर्ण होते हुए भी नगण्य है। क्योंकि व शिक्षा को एक ही मार्गदर्शक के रूप में देखते हैं जो बालक के लिए सेल्फ मोटिवेशन स्व अभी प्रेरित का कार्य करेगा जो बालक के आंतरिक शक्तियों का विकास प्राकृतिक वातावरण द्वारा शिक्षक उभारने का प्रयास करेगा जिससे बालकों में यह अभिप्रेरणा बनेगी कि वह स्वयं ही स्वयं का विकास कर सकते हैं।

रूसो के अनुसार अनुशासन

:- रूसो ऐसे अनुशासन के पक्ष में है जो स्वच्छंद स्वतंत्र एवं यथार्थ भाव भूमि पर आधारित हो उनका विश्वास है कि ईश्वर ने सबको अच्छा बनाया है। मनुष्य के संपर्क में आते ही बालक को अपनी स्व अनुभूति क्रियाओं जो प्राकृतिक वातावरण के लिए छोड़ दिया है।

का मानना है कि प्राकृतिक प्राकृतिक स्वयं एक महान शिक्षक है। यदि बालक गलती करता है तो स्वयं के उसका प्रतिफल बाला को दे देगी। इसलिए यह आवश्यक है कि बालक में स्व नियंत्रण का विकास किया जाए।

रूसो के अनुसार छात्र

:- रूसो बालक के आदर करते हुए उसके व्यक्तित्व के विकास के लिए स्वतंत्रता देने के पक्षधर थे। रूसो को स्वतंत्रता बहुत ही प्रिय है इसलिए बालक को वह सर्वोपरि रखते हैं। बालक को बालक समझा जाए ना कि पुरुष।

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