अभिप्रेरणा के सिद्धांत | Theory of Motivation

Theory of Motivation:– मनुष्य में अभिप्रेरणा की उत्पत्ति कैसे होती है इस संबंध में मनोवैज्ञानिकों के अपने-अपने मत हैं जिन्हें अभिप्रेरणा के सिद्धांत / Theory of Motivation के रूप में मान्यता प्राप्त है उसमें से कुछ मुख्य सिद्धांत निम्न है।

अभिप्रेरणा के सिद्धांत

अभिप्रेरणा के सिद्धांत | Theory of Motivation

 

1. मूल प्रवृत्ति का सिद्धांत

:- इस सिद्धांत के प्रतिपादन मनोवैज्ञानिक विलियम मैक्डूगल ने किया है। इस सिद्धांत के अनुसार मनुष्य प्रत्येक व्यवहार उसकी मूल प्रवृत्तियों द्वारा संचालित होता है उसके मूल प्रवृत्तियों के पीछे छिपे हुए संवेग ही अभिप्रेरणा का कार्य करते हैं। इस सिद्धांत के संदर्भ में पहली बात तो यह है कि मनोवैज्ञानिकों मूल प्रवृत्तियों की संख्या के संबंध में एकमत नहीं है और दूसरी बात यह है कि यह सिद्धांत अपनी कसौटी पर खरा नहीं उतरता। मूल प्रवृत्तियों सभी मनुष्यों में समान होती है तब उसका व्यवहार भी समान होना चाहिए पर ऐसा होता नहीं है।

TO ALSO READ :- CTET 6th February 2023 Question Paper HINDI

2. मनोविश्लेषणात्मक सिद्धांत

:- इस सिद्धांत का प्रतिपादन मनोवैज्ञानिक सिग्मंड फ्रायड ने किया है। इस सिद्धांत के अनुसार मनुष्य के व्यवहार को प्रभावित करने वाले भी प्रेरणा के दो मूल्य कारक होते हैं। एक मूल प्रवृत्ति और दूसरा अचेतन मन। फ्लाइट के अनुसार मनुष्य के मूल रूप से दो ही मूल प्रवृत्तियां होती है। एक जीवन मूल प्रवृत्ति और दूसरी मृत्यु मूल प्रवृत्ति जो उसे क्रमश: संरचनात्मक एवं विध्वंसात्मक की ओर बढ़ाती है। साथियों उसका अचेतन मन उसके व्यवहार को अनजाने में प्रभावित करता है। इस सिद्धांत के संबंध में पहली बात तो यह है कि फ्राइड का मूल प्रवृत्ति संबंधी विचार मनोवैज्ञानिकों को मान्य नहीं है और दूसरी बात यह है कि मनुष्य का व्यवहार केबल उसके अचेतन मन से नहीं अपितु अर्द्धचेतन एवं चेतन मन से भी संचालित होती है।

3. अंतरनोद सिद्धांत

:- इस सिद्धांत का प्रतिपादन मनोवैज्ञानिक हल ने किया है। इस सिद्धांत के अनुसार मनुष्य के शारीरिक आवश्यकताएं मनुष्य में कम तनाव पैदा करती है जिसे मनोवैज्ञानिक भाषा में अंतरनोंद कहते हैं। यह अंतरनोंद ही मनुष्य को विशेष प्रकार के कार्य करने के लिए अभीप्रेरित करते हैं। यद्यपि आगे चलकर मनोवैज्ञानिकों ने इसमें शारीरिक आवश्यकताओं के साथ मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं को भी जोड़ दिया लेकिन फिर भी यह सिद्धांत अपने आप में अपूर्ण ही है क्योंकि यह मानव के उच्च ज्ञानात्मक व्यवहार की व्याख्या नहीं करता।

4. प्रोत्साहन सिद्धांत

:- इस सिद्धांत का प्रतिपादन बोल्स तथा कॉफमैन ने किया है। इस सिद्धांत के अनुसार मनुष्य अपने पर्यावरण में स्थित वस्तु स्थिति अथवा क्रिया से प्रभावित होकर क्रिया करता है। पर्यावरण के इन सभी तथ्यों कोई रोने प्रोत्साहन माना है। इसके अनुसार प्रोत्साहन दो प्रकार के होते हैं।

धनात्मक प्रोत्साहन

ऋणात्मक प्रोत्साहन

:- धनात्मक प्रोत्साहन जैसे भोजन एवं पानी आदि मनुष्य को लक्ष्य की ओर बढ़ने के लिए बल देता है जबकि ऋणात्मक प्रोत्साहन जैसे दंड एवं बिजली का झटका आदि मनुष्य को लक्ष्य की ओर बढ़ने से रोकते हैं। यह सिद्धांत मनुष्य के केवल बाल कारकों पर ही बल देते हैं इसलिए यह अपने आप में अपूर्ण है।

5. शारीरिक क्रिया सिद्धांत

:- इस सिद्धांत का प्रतिपादन मनोवैज्ञानिक मार्गर ने किया है। इसके अनुसार मनुष्य में अभिप्रेरणा किसी बाह्य  उदीपन के द्वारा  उत्पन्न नहीं होता अपितु उसके शरीर के अंदर तंत्रों में होने वाले परिवर्तनों के कारण उत्पन्न होते हैं। इस सिद्धांत में मनुष्य के पर्यावरणीय कारकों की अवहेलना की गई है। इसके लिए यह भी अपने आप में अपूर्ण है।

6. मांग का सिद्धांत

:- इस सिद्धांत का प्रतिपादन मेस्लो ने किया है। इस सिद्धांत के अनुसार मनुष्य का व्यवहार उसके आवश्यकताओं से प्रेरित होता है। मेस्लो आवश्यकताओं को एक विशेष क्रम नीम से उच्च की ओर प्रस्तुत किया है। मेस्लो के अनुसार मनुष्य जब तक एक स्तर की आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर लेता है तब तक दूसरे स्तर की आवश्यकताओं की पूर्ति की ओर नहीं बढ़ता। मौज लो यह बात तो सही है किंतु मनुष्य अपनी आवश्यकताओं से अभीप्रेरित होते हैं पर उसकी या बात सही नहीं है कि मनुष्य अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति किसी क्रम विशेष में करते हैं। अतः यह सिद्धांत भी अपने में अपूर्ण है।

ये भी पढ़े 

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *