Social Development in Early Childhood | प्रारंभिक बाल्यावस्था में सामाजिक विकास

Social Development in Early Childhood में प्रारंभिक बाल्यावस्था की अवस्था 2 से 6 साल की होती है। इसे मनोवैज्ञानिकों ने प्राक्स्कूल उम्र (preschool age) या प्राक्टोली उस (Pregang age) भी कहा है। इस उम्र में बालक घर के बाहर के लोगों तथा बालकों के साथ सम्पर्क करना सीखते हैं।

Social Development in Early Childhood | प्रारंभिक बाल्यावस्था में सामाजिक विकास

इस अवस्था में वे अन्य बालकों के साथ समायोजन (adjustment) करने की कोशिश करते हैं तथा भिन्न-भिन्न प्रकार के खेल खेलकर अपना सामाजिक सम्पर्क (social contacts) बढ़ाते है। शिक्षा मनोवैज्ञानिकों ने इस अवस्था को एक महत्त्वपूर्ण अवस्था बताई है क्योंकि इसी अवस्था में बालकों में मूल सामाजिक मनोवृत्ति (social attitudes) तथा सामाजिक व्यवहार का पैटर्न विकसित होता है। वालड्रोप तथा हालभर्सन (Waldrop & Halverson, 1974) ने एक अध्ययन किया जिसमें उन्होंने छोटे बालकों में सामाजिकता के पैटर्न का अध्ययन किया। उन्होंने इस अध्ययन में पाया कि जो बालक 24 साल की अवस्था में सामाजिक रूप से अधिक सक्रिय एवं स्नेही (friendly) थे, वे 7 साल की अवस्था में अन्य बालकों की तुलना में अधिक सक्रिय एवं स्नेही पाए गए। इसका मतलब यह हुआ कि 24 साल की उम्र की सामाजिकता 7 साल की उम्र की सामाजिकता की भविष्यवाची (predictive) थी।

मनोवैज्ञानिक अध्ययनो से यह स्पष्ट हो गया कि आरंभिक बाल्यावस्था (carly childhood) में बालकों में सामाजिक सम्पर्क (social contact) से उत्पन्न अनुभूतियों के आधार पर दो तरह के व्यवहारों की उत्पत्ति होती है- सामाजिक व्यवहार (social behaviour) तथा असामाजिक व्यवहार (unsocial behaviour) । प्रमुख सामाजिक व्यवहार जो इस उम्र के बालकों में देखा गया है,

Social Development in Early Childhood निम्नांकित प्रकार के  हैं

(1) अनुकरण (Imitation)

– अनुकरण एक प्रमुख सामाजिक व्यवहार है और बालक वैसे व्यक्तियों के व्यवहारों (Behaviours) का अनुकरण अधिक करते हैं जिन्हें सामाजिक समूह (social group) द्वारा मान्यता प्राप्त होती है अर्थात जिसका व्यवहार समाज के मानदंडों (norms) के अनुसार अधिकतम होता है। इस तरह के व्यवहार से बालक अपने व्यक्तित्व में वैसे सामाजिक शीलगुणों (social traits) को विकसित कर लेते हैं जिससे उन्हें वर्ग में सामाजिक अभियोजन में काफी मदद मिलती है।

(2) प्रतिद्वंद्विता (Rivalry)

– 2 से 6 साल के बालकों में समाजीकरण (Socialisation) पर प्रतिद्वंद्विता का दो तरह से प्रभाव पड़ता है। जब एक बालक किसी दूसरे बालक को अपना प्रतिद्वंद्वी (rival) समझता है, तो वह अपने आपको उससे आगे करने के लिए सामाजिक नियमों या मानदंडों (norms) पर अधिक ध्यान देता है और इनसे अधिक-से-अधिक सीखने तथा अनुभव प्राप्त करने की कोशिश करता है। फलस्वरूप, इस तरह के बालकों का समाजीकरण तेजी से होता है। दूसरा प्रभाव यह होता है कि यह बालक दूसरे बालक को अपना प्रतिद्वंद्वी समझकर उससे लड़ाई-झगड़ा कर लेता है। इससे उसके समाजीकरण की गति कुछ धीमी पड़ जाती है। प्रतिद्वंद्विता का पहला प्रभाव अधिक होने से बालकों की शैक्षिक उपलब्धियाँ वर्ग में अधिक बढ़ जाती है।

(3) सामाजिक अनुमोदन की इच्छा (Desire for social approval)

– जब बालकों में वयस्को तथा अपने साथियों से स्वीकृति (acceptance) तथा अनुमोदन (approval) प्राप्त करने की इच्छा अधिक होती है तो वे समाज द्वारा की गई अपेक्षाओं को पूरा करने की कोशिश करते हैं तथा साथ-ही-साथ विकासात्मक पाठ (developmental task) को पूरा कर लेने की भरपूर कोशिश करते है। इस प्रवृत्ति का प्रभाव यह होता है कि उनका समाजीकरण (socialisztion) तीव्र हो जाता है।

(4) सहानुभूति (Sympathy)

– बालकों में सहानुभूति दिखाने का व्यवहार तब तक नहीं उत्पन्न होता है जब तक कि वे किसी अन्य बालक या व्यक्ति को दुःख में पड़े देखकर अन्य दूसरे व्यक्ति द्वारा सहानुभूति दिखाते हुए न देख लें। बालक दूसरे बालकों के प्रति सहानुभूति उसे मदद कर उसके आँसू पोंछकर तथा उसे जमीन पर गिरा रहने पर उठाकर आदि तरीकों से करते हैं। मनोवैज्ञानिकों का मत है कि बालक जितना ही अधिक सामाजिक सम्पर्क खेल में स्थापित कर पाते है, उनमें सहानुभूतिपूर्वक व्यवहार के उत्पन्न होने की संभावना उतनी ही अधिक होती है।

(5) परानुभूति (Empathy)

– परानुभूति से तात्पर्य दूसरों की जगह अपने आपको रखकर उस जगह होनेवाली अनुभूतियों (experiences) को प्राप्त करने से होता है। परानुभूति का व्यवहार बालकों में 54 साल की उम्र तक विकसित होता है। परानुभूति उत्पन्न होने के लिए दो बातों का होना अनिवार्य है- पहला तो यह कि बालक में दूसरों की आनन अभिव्यक्ति ( facial expression) के अर्थ को समझने की क्षमता हो तथा वह साथ-ही-साथ दूसरों के वाक् (speech) का अर्थ समझे।

(6) सहयोग (Cooperation)

– 4 साल की उम्र में बच्चे एक-दूसरे को खेल में सहयोग देना प्रारंभ कर देते हैं। ब्रायन तथा वालबेक (Bryan & Walbek, 1970) के अध्ययन के अनुसार जब बालको के सामने वयस्क सहयोगी व्यवहार का एक नमूना पेश करते हैं और बालक द्वारा सहयोगी व्यवहार दिखाने पर वयस्क यदि उसे पुनर्बलित (reinforce) करते हैं तो उसमें सहयोग की भावना और भी अधिक तीव्र हो जाती है। स्कीन्नर (Skinner, 1978) के अनुसार ऐसे बालकों में वर्ग में शिक्षकों तथा साथियों द्वारा अधिक प्रशंसा मिलने के कारण नेतृत्व संबंधी गुण (leadership quality) तेजी से विकसित हो जाते हैं।

(7) आसक्ति व्यवहार (Attachment Behaviour)

– आसक्ति व्यवहार की नींव (foundation) तो बचपनावस्था (babyhood) में ही उस समय पड़ जाती है जब बालक अपनी माँ के प्रति हार्दिक संबंध (warm relationship) स्थापित कर लेते हैं। इस प्रारंभिक बाल्यावस्था (early childhood) में बालकों में पहले स्थापित आसक्ति व्यवहार का स्थानांतरण (transfer) होता है और अब वे घर के बाहर के लोगों के साथ भी इस तरह का हार्दिक संबंध कायम कर आसक्ति व्यवहार (attachment behaviour) दिखाते हैं।

(8) मित्रता (Friendliness)

– 2 से 6 साल के बालकों में मित्रता की भावना बहुत तेजी से विकसित होती है। वे दूसरे बालकों के साथ मिलकर कुछ काम करते हैं या खेलते हैं या कभी-कभी सिर्फ दूसरे बालकों के लिए ही मदद के रूप में कुछ काम कर देते हैं। इन दोनों ही परिस्थितियों में उनमें मित्रता का व्यवहार काफी अधिक विकसित होता है।

2 से 6 साल की उम्र में अर्थात प्रारंभिक बाल्यावस्था (early childhood) में बालकों में सिर्फ सामाजिक व्यवहार ही नहीं बल्कि कुछ असामाजिक व्यवहार भी विकसित हो जाता है जिनपर शिक्षकों तथा माता-पिता को ध्यान देना अनिवार्य है। ऐसे व्यवहारों पर उचित ध्यान देकर बालकों को सामाजिक अभियोजन (social adjustment) करने की दिशा में प्रेरित किया जा सकता है।

Social Development in Early Childhood के ऐसे प्रमुख असामाजिक व्यवहार (unsocial behaviour) अग्रांकित है—

(1) निषेधवृत्ति (Negativism)

– जब बालक बड़ों द्वारा बताए गए व्यवहार को नहीं करते या करने में काफी अवरोध (resistance) दिखाते हैं तब इस तरह की प्रवृत्ति को निषेधवृत्ति कहा जाता है। • निषेधवृत्ति 2 साल की उम्र से ही प्रारंभ हो जाती है और तीसरे से छठे साल में यह उच्चतम शिखर पर पहुंच जाती है। ऐसी अवस्था में बालक बड़ों की आज्ञा का तो उल्लंघन करते ही हैं, साथ-ही-साथ उनमें क्रोध का भी विस्फोट हो जाता है।

(2) आक्रामकता (Aggressiveness)

– आक्रामकता एक ऐसी क्रिया है जिसमें बालक अपना। विद्वेष (hostility) किसी दूसरे व्यक्ति या वस्तु की ओर निदेशित करते हैं। बालक अपनी आक्रामकता दूसरे बालकों पर शारीरिक रूप से (physically) हमला करके या शाब्दिक रूप से जली-कटी सुनाकर करते हैं। अकसर यह देखा गया है कि बालक अपने से छोटे एवं कमजोर बालकों के प्रति आक्रामकता अधिक दिखाते हैं।

(3) प्रभावी व्यवहार (Ascendent Behaviour)

– प्रभावी व्यवहार वैसे व्यवहार को कहा जाता है जिसमें एक बालक दूसरे बालक पर आधिपत्य (dominance) दिखाता है। ऐसे बालकों को, जिनमें प्रभावी व्यवहार अधिक होता है, ठीक ढंग से प्रशिक्षण (training) दिया जाए तो उनमें नेतृत्व (leadership) का गुण तेजी से विकसित होता है। परंतु अधिकतर बालकों को इस ढंग का प्रशिक्षण (training) नहीं दिया जाता है। फलस्वरूप, अधिक प्रभुत्व (ascendance) दिखाने के कारण उन्हें सामाजिक समूह द्वारा तिरस्कृत (reject) कर दिया जाता है।

(4) अहं भाव (Egocentrism)

– प्रारंभिक बाल्यावस्था के बालकों में भाव (egocentrism) अधिक पाया जाता है क्योंकि बालक अधिक समय अपने ही बारे में तथा अपनी सामग्रियों, जैसे खेलकूद की सामग्री, पहनने के कपड़े आदि के बारे में सोचने में व्यतीत कर देता है। लेकिन, कुछ बालकों में अहं भाव फिर बहुत जल्द कम भी होने लगता है। इसका कम होना दो बातों पर निर्भर करता है। पहला तो यह कि बालकों में कहाँ तक इस बात की समझ हो गई है कि वे अहं भाव से अलोकप्रिय (unpopular) हो जाएँगे और दूसरा यह कि वे लोकप्रिय बनने के लिए कितना अधिक चिंतित रहते हैं।

(5) पूर्वाग्रह या पूर्वधारणा (Prejudice)

– पूर्वाग्रह की नींव बालकों में 2 से 6 साल की उम्र में पड़ती है। इस समय बालकों को यह अनुभव होता है कि कुछ लोग उनसे भिन्न ढंग से व्यवहार करते हैं तथा उनका रूप-रंग (appearances) भी उनसे भिन्न है और यह भिन्नता उनमें एक हीनता का चिह्न है। ऐसा सोचने से उनमें एक पूर्वाग्रह या पूर्वधारणा उत्पन्न होती है। इस उम्र के बालक विभेद के सहारे अपने पूर्वाग्रह की अभिव्यक्ति (expression) करने के लायक नहीं होते।

(6) यौन विरोध (Sex antagonism)

– यौन विरोध (sex antagonism) से तात्पर्य अपने विपरीत लिंग के बालकों के प्रति सक्रिय वैर (hostility) दिखाने से होता है। 4 साल की उम्र तक बालक तथा बालिकाएँ एकसाथ मिलकर खेलते हैं और उनमें किसी तरह का सेक्स विरोध नहीं देखने को मिलता। परंतु, उसके बाद समाज की ओर से लड़कों को लड़कियों से अलग खेल खेलने तथा अलग अन्य कोई कार्य करने पर बल डाला जाता है जिससे उनमें धीरे-धीरे सेक्स विरोध की भावना विकसित हो जाती है। यही प्रक्रिया बालिकाओं के साथ भी होती है। स्पष्ट हुआ कि प्रारंभिक बाल्यावस्था (early childhood) में बालकों में सामाजिक व्यवहार के साथ-ही-साथ कुछ असामाजिक व्यवहार (unsocial behaviour) भी विकसित हो जाता है। शिक्षा मनोवैज्ञानिकों का मत है कि इस अवस्था में उत्पन्न सामाजिक व्यवहार तथा असामाजिक व्यवहार दोनों
ही किशोरावस्था तथा वयस्कावस्था (adulthood) में होनेवाले सामाजिक व्यवहार तथा असामाजिक व्यवहार की नीव डालते हैं। अत माता-पिता को चाहिए कि वे बालकों में सामाजिक व्यवहार (social behaviour) की नींव ठीक ढंग से डालें तथा असामाजिक व्यवहार को इस ढंग से नियंत्रित एवं परिवर्तित करके रखें कि उनका असर व्यक्तित्व के विकास पर बुरा नहीं हो।

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