Principles of Motor Development |  क्रियात्मक विकास के नियम

Principles of Motor Development | क्रियात्मक विकास के नियम

आज हमलोग Principles of Motor Development के बारे में जाने गें की क्रियात्मक विकास किया है |  क्रियात्मक विकास (motor development) बालकों के महत्त्वपूर्ण विकास में एक है क्योकि इसपर अन्य दूसरे तरह का विकास सीधे आधारित होता है। क्रियात्मक विकास से ताल बालकों में उनकी मांसपेशियो (muscles) तथा तंत्रिकाओं के समन्वित (coordinated at द्वारा अपनी शारीरिक क्रियाओं (bodily activities) पर पूर्ण नियंत्रण प्राप्त करने से होता है हरलॉक’ (Hurlock, 1978) ने क्रियात्मक विकास को परिभाषित करते हुए कहा है, “मांसपेशिय तंत्रिकाओं (nerves) तथा तंत्रिका केंद्रों (nerve centres) की समन्वित क्रियाओं द्वारा शारीरिक गति पर  नियंत्रण प्राप्त करना क्रियात्मक विकास कहलाता है।” जैसे, जिस शिशु के हाथ तथा पैर की मासपेशियाँ (muscles) तथा तंत्रिकाएँ विकसित रहती है और उन दोनों के बीच ठीक ढंग से समन्वय (coordination) होता है, उस शिशु में हाथ-पैर के सहारे चलना तथा फिर सिर्फ पैर के सहारे चलने की प्रक्रिया अधिक तेजी से होती है।

क्रियात्मक विकास के नियम (principle) से हमें यह पता चलता है कि क्रियात्मक व्यवहार (motor behaviour) के भिन्न-भिन्न प्रकार (types), जैसे घुटने के बल चलना, पैर के बल चलना, दौड़ना, उछलना आदि बालकों में कब विकसित होता है तथा एक ही उम्र के सभी बालकों में क्या एक ही क्रियात्मक व्यवहार होते हैं या भिन्न-भिन्न क्रियात्मक व्यवहार होते हैं। मनोवैज्ञानिकों ने क्रियात्मक विकास (motor development) के निम्नांकित पाँच नियम (principles) का वर्णन किया है—

Principles of Motor Development

(1) क्रियात्मक विकास मांसपेशियों तथा तंत्रिकाओं की परिपक्वता पर निर्भर करता है (Motor development depends upon neural and muscular maturation) –

जन्म के समय शिशुओं में निचली तंत्रिका केंद्र (lower nerve centre) जो मेरुदंड (spinal cord) में अवस्थित होता है, ऊपरी तंत्रिका केंद्र (upper nerve centre) जो मस्तिष्क (brain) में अवस्थित होता है की अपेक्षा अधिक विकसित होता है। मेरुदंड द्वारा मूलतः सहज क्रियाओं (reflex actions) का नियंत्रण होता है। यही कारण है कि जन्म के कुछ बाद ही एक नवजात शिशु में महत्त्वपूर्ण सहज क्रिया (reflex action) जो उन्हें जीवित रहने के लिए आवश्यक है, होती पाई जाती है। एक साल की उम्र हो जाने पर मस्तिष्क (brain) का कुछ भाग जैसे लघु मस्तिष्क (cerebellum) तथा वृहत मस्तिष्क (cerebrum) का विकास हो जाता है जिसके फलस्वरूप बालक कुछ ऐच्छिक क्रियाएँ (voluntary actions) करना प्रारंभ कर देता है। लघु मस्तिष्क जो मुख्यत शरीर में संतुलन (balance) को नियंत्रित करता है, के विकास होने से शिशु के क्रियात्मक व्यवहार जैसे चलना, पकड़ना आदि अधिक संतुलित दीख पड़ते हैं। 5 साल की अवस्था हो जाने पर लघु मस्तिष्क परिपक्व हो जाता है और बच्चों के क्रियात्मक व्यवहार पूर्णत संतुलित दीख पड़ते हैं।

क्रियात्मक विकास मांसपेशियों की परिपक्वता पर भी निर्भर करता है। मांसपेशियाँ मुख्यतः दो प्रकार की होती है— धारीदार पेशियाँ (striped muscles) तथा अधारीदार पेशियाँ (unstriped muscles)। धारीदार पेशियों का संबंध क्रियात्मक व्यवहार (motor behaviour) से सीधा है और इसके द्वारा सभी ऐच्छिक क्रियाएँ (voluntary actions) नियंत्रित होती है। ऐसी मांसपेशियों का विकास बाल्यावस्था (childhood) में धीरे-धीरे होता है, अतः बालकों में ऐच्छिक क्रियाओं का विकास भी धीरे-धीरे होता है।

(2) किसी भी क्रियात्मक निपुणता को तब तक नहीं सीखा जा सकता जब तक वालक पूर्णरूपेण उसे करने के लिए परिपक्व न हो गया हो (Learning of motor skills can’t occur until the child is maturationally ready) –

बालकों को किसी प्रकार की क्रियात्मक निपुणता (motor skill) तब तक नहीं सिखाई जा सकती है जब तक उनका परिपक्वन (maturation) पूर्ण न हो गया हो। परिपक्वन के अभाव में दिया गया प्रशिक्षण (training) या खुद बालक द्वारा किए गए प्रयास (effort) से कुछ क्षणिक लाभ (temporary advantage) भले ही हो सकता है, परंतु स्थायी लाभ नहीं हो सकता। उदाहरणस्वरूप, यदि चार साल के बालक को टाइप सीखने का प्रशिक्षण दिया जाए तो ज्यादा संभावना इस बात की है कि महीनो प्रशिक्षण के बाद भी

वह कुछ टाइप करना नहीं सीख पाएगा। इसका कारण यह है कि इस उम्र का बालक न तो मानसिक रूप से (mentally) और न ही शारीरिक रूप से (physically) ही इतना परिपक्व (mature) होता है कि वह टाइप करने के प्रशिक्षण को समझे और उसके अनुसार कार्य करे।

 (3) क्रियात्मक विकास में एक पूर्वानुमेय पैटर्न होता है (Motor development follows a predictable pattern) –

क्रियात्मक विकास एक निश्चित क्रम (sequence) के बालकों में होता है। अतः यह पूर्वानुमेय (predictable) होता है। बालकों में क्रियात्मक विकास से प्रकार के क्रम (sequence) द्वारा होते हैं— मस्तकाधोमुखी क्रम (cephalocaudal sequence) तथ निकट दूर विकासक्रम (proximodistal development sequence) |

मस्तकाधोमुखी क्रम (cephalocaudal sequence) में विकास सिर से पैर की ओर होता है। दूसरे शब्दों में, पहले विकास सिर तथा गर्दन के भाग में, फिर बाँह तथा हाथ के हिस्सों में, फिर धड़ (trunks) में और अंत में पैर तथा उनकी अँगुलियों में होता है। फलस्वरूप, बालक पहले सिर तथा गर्दन को मांसपेशियों को नियमित करना सीखता है और फिर उसके बाद हाथ, बाँह तथा पेट की मांसपेशियों पर नियंत्रण करता है और अंत में पैर की मांसपेशियों पर नियंत्रण करना सीखता है। जब बालक खिसकना (crawling) सीखता है तो पहले वह शरीर के ऊपरी भाग को आगे बढ़ाने की कोशिश करता है। उसी तरह जब वह बैठना सीखता है, तो इसके पहले उसे सिर खड़ा करना सीखना होता है और चलना सीखने के पहले उसे बैठना सीखना पड़ता है। इस तरह हम देखते हैं कि क्रियात्मक विकास (motor development) सबसे पहले शरीर के ऊपरी भाग में होता है और बाद में निचले भाग में।

निकट-दूर का विकासक्रम (proximodistal development sequence) के अनुसार भी क्रियात्मक विकास (motor development) बालकों में होता है। इस क्रम के अनुसार बालकों के शरीर के उन अंगों का विकास पहले होता है, जो शरीर के केंद्र में होते हैं और शरीर के छोर (periphery) पर आनेवाले अंगों का विकास बाद में होता है। इस विकासात्मक क्रम के अनुसार बालकों के पेट, छाती, बाँह तथा जाँघ (जो शरीर के केंद्र में हैं) में क्रियात्मक विकास पहले तथा घुटना (knee), हाथ की अंगुलियों, पैर की अंगुलियों आदि में विकास बाद में होता है।

क्रियात्मक विकास (motor development) के पूर्वानुमेय पैटर्न (predictable pattern) की जानकारी इस बात से भी होती है कि उम्र बीतने के साथ-साथ बच्चों का क्रियात्मक व्यवहार (motor behaviour) सामान्य (mass) से विशिष्ट (specific) हो जाता है। जैसे 2 महीने का शिशु किसी रंगीन वस्तु को मात्र टकटकी लगाकर देखता है तथा अपने हाथ-पाँव फेंकने की क्रिया तेज कर देता है। यह सब सामान्य क्रिया का उदाहरण है। फिर 6-7 महीना की उम्र में वह अपने हाथ को उस वस्तुविशेष की ओर ले जाता है जो एक विशिष्ट क्रिया (specific action) का उदाहरण है।

कुछ मनोवैज्ञानिकों के अनुसार क्रियात्मक विकास (motor development) के पूर्वानुमेय (predictable) होने का सबूत (evidence) यह भी है कि बालकों में चलने की क्रिया उनके कुल विकास (total development) की के अनुकूल होती है। शायद यही कारण है कि जो बालक जल्दी बैठने लगता है, वह चलना भी जल्दी प्रारंभ कर देता है।

(4) क्रियात्मक विकास के लिए मानक बनाना संभव है (It is possible to establish noms for motor development) —

चूंकि शिशु में विकासात्मक पैटर्न पूर्वानुमेय (predictable) होता है, अतः उसके भिन्न-भिन्न प्रकार के क्रियात्मक विकासों के लिए मनोवैज्ञानिकों द्वारा एक मानक (norm) तैयार किया गया है। इस मानक द्वारा यह पता चलता है कि किस उम्र के शिशु द्वारा किस तरह का क्रियात्मक व्यवहार (motor behaviour) किया जाता है। इससे माता-पिता तथा शिक्षक दोनों को ही एक प्रकार का मार्गदर्शन (guidance) होता है और ये किसी विशेष उम्र के बालक से न तो ज्यादा और नही कम उम्मीद करते हैं। मनोवैज्ञानिकों द्वारा कुछ खास-खास क्रियात्मक व्यवहार जैसे सीधा बैठना (sitting), खड़ा होना (standing), चलना (walking). किसी वस्तु की ओर हाथ बढ़ाना (reaching) तथा पकड़ना (grasping) आदि का मानक (norms) तैयार किया गया है। इसका प्रयोग बालकों की बुद्धि (intelligence) मापने में भी की गई है। शिशु विकास का बेले स्केल (Bayley Scale of Infant Development) जिसे बेले (Bayley, 1968) द्वारा निर्मित किया गया है, शिशु के भिन्न-भिन्न क्रियात्मक व्यवहारों को एक मानक (norms) द्वारा मापने का एक अच्छा उदाहरण है।

(5) क्रियात्मक विकास में वैयक्तिक भिन्नता होती है (There are individual differences in motor development)–

 

यद्यपि क्रियात्मक विकास में एक संगति (consistency) होती है अर्थात इसमें एक ऐसा पैटर्न होता है जो सभी बालकों के लिए एकसमान होता है, फिर भी इस तरह के विकास में वैयक्तिक विभिन्नता (individual difference) पाई जाती है। इसका परिणाम यह होता है कि भिन्न-भिन्न बालक भिन्न-भिन्न उम्र में क्रियात्मक विकास (motor development) के एक ही स्तर पर नहीं पहुँचते। जैसे अगर सीधा बैठने का ही उदाहरण ले लिया जाए तो कोई बालक 6 महीना में बैठता है तो कोई 10 महीना में स्वास्थ्य (health) आहार (nutrition) आदि कुछ ऐसे कारक हैं जो बालकों के क्रियात्मक विकास में अंतर कर देते हैं।

क्रियात्मक विकास के इन नियमों से शिक्षकों को अधिक फायदा होता है, क्योंकि इसके आधार पर वे बालकों का समुचित एवं वैज्ञानिक मार्गदर्शन कर पाते हैं तथा यह भी समझ लेते हैं कि क्यों कोई बालक अपनी उम्र के अन्य बालकों से कोई अमुक क्रियात्मक व्यवहार (motor behaviour) में पीछे रह जाता है या आगे चला जाता है।

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