तथ्यात्मक अधिगम | तथ्यात्मक अधिगम क्या है?

तथ्यात्मक अधिगम क्या है?

तथ्यात्मक अधिगम :-

लिखित ज्ञान तत्वों से परिपूर्ण होता है अतः इसे तथ्यात्मक ज्ञान या तथ्यात्मक अधिगम के रूप में जाना जाता है। तथ्यात्मक ज्ञान ज्ञान श्रृंखला का तृतीय प्रकार है इस ज्ञान के अंतर्गत किसी व्यक्ति या वस्तु के संदर्भ में कोई दवा या तथ्य निश्चित किया जाता है अर्थात किसी वाक्य के मूल्य में जो तथ्य छिपा होता है वह इस ज्ञान का प्रमुख अंग होता है इसलिए इस प्रकार के ज्ञान को तथ्यात्मक अधिगम कहते हैं। जैसे पृथ्वी सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाती है। इस बात में एक शर्तिया दाबा निश्चित है कि या छिपा हुआ है कि पृथ्वी के द्वारा सूर्य की परिक्रमा होती है। यह दावा ही इस ज्ञान को  तथ्यात्मक की श्रेणी में रखता है।

तथ्यात्मक ज्ञान के संदर्भ में कुछ और उदाहरण दिए जा सकते हैं जैसे पदार्थ के तीन रूप होते हैं। दो और दो को जोड़ते हैं तो 4 प्राप्त होता है। सोमवार के बाद मंगलवार आता है। इत्यादि।

इन वाक्यों में एक तथ्य छिपा रहता है जिसे ज्ञाता जानता है यह तथ्य पदार्थ के तीन रूप होते हैं दो और दो जोड़ने पर 4 प्राप्त होना सोमवार के बाद मंगलवार आना इत्यादि

तथ्यात्मक अधिगम

तथ्यात्मक अधिगम की विशेषताएं

1. तथ्यों से संबंध

:- तथ्यात्मक अधिगम के अंतर्गत प्रत्येक वाक्य में एक तथ्य छुपा होता है। इस तथ्य के आधार पर ही इसको तथ्यात्मक अधिगम कहा जाता है। इस तथ्य को अनेक प्रयोग एवं मान्यताओं के आधार पर प्रतिपादित किया जाता है। इस तथ्य की जांच भी संभव होती है। जैसे हाइड्रोजन गैस हवा हवा से हल्की होती है। इस वाक्य में हल्का होना एक तथ्य है जिसको प्रयोग के आधार पर प्रतिपादित किया गया है। इस प्रकार तथ्यात्मक अधिगम का संबंध अनेक महत्वपूर्ण तथ्य एवं दावों से होता है।

2. तथ्यात्मक ज्ञान में सत्य सत्य की संभावना

:- तथ्यात्मक अधिगम के प्रमुख विशेषता यह है कि यह ज्ञान सत्य भी हो सकता है और असत्य भी अनेक प्रकार के सिद्धांत एवं नियमों का प्रतिपादन विद्वानों द्वारा अपने प्रयोग के आधार पर किया जाता है। प्रथम स्थिति में इन सिद्धांतों को सरल माना जा सकता है। यदि किसी कारणवश या ज्ञान असत्य सिद्ध हो जाता है तो नवीन सिद्धांत जिसकी खोज अन्य विद्वानों द्वारा किया जाता है सत्य माना जा सकता है। इस प्रकार तथ्यात्मक ज्ञान सत्य भी हो सकता है और असत्य भी। अतः तथ्यात्मक अधिगम को विविध प्रकार से जांच किया जा सकता है।

3. भाषा के माध्यम से वर्णन

:- तथ्यात्मक अधिगम के प्रमुख विशेषता यह है कि भाषा के द्वारा इसका वर्णन किया जाता है। इस ज्ञान के भाषाई वर्णन के कारण इसका स्वरूप अधिक व्यापक है। उदाहरण स्वरूप पाइथागोरस का प्रमेय का अनेक भाषाओं में अनुवाद किया गया है तथा अनेक उदाहरणों के माध्यम से यह सिद्ध किया जाता है कि कर्ण का वर्ग दो भुजाओं के वर्गों के योग के बराबर होता है इस प्रकार अन्य विषयों के तथ्यात्मक अधिगम का भी भाषाई वर्णन किया जाता है।

4. उचित एवं अनुचित की संभावना

:- प्रत्येक परिस्थिति में प्रत्येक तथ्यात्मक ज्ञान्या अधिगम उचित नहीं होता है। ऐतिहासिक तथ्यों के वर्णन पर यह विशेषता पूर्ण रूप से क्रियान्वित होती है। रूस की क्रांति की दशाओं का वर्णन करते हुए आवश्यक नहीं है कि वे दशाएं अमेरिका की क्रांति के लिए भी उत्तरदाई हो एक और उदाहरण द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है पाश्चात्य संस्कृति के अनेक तथ्यों को पश्चिमी देशों में उचित माना जाता है। इस प्रकार  तथ्यात्मक अधिगम परिस्थितियों के आधार पर उचित एवं अनुचित हो सकता है।

5. क्रमबद्ध प्रस्तुतीकरण

:- तथ्यात्मक अधिगम की यह विशेषता है कि इसका प्रस्तुतीकरण क्रमबद्ध रूप से किया जाता है वर्तमान समय में छात्रों को प्रदान किए जाने वाले तथ्यात्मक अधिगम से सरल से कठिन की ओर तथा सामान्य से विशिष्ट की ओर शिक्षण सूत्रों का अनुकरण किया जाता है इसलिए भाभी अध्यापकों एवं वर्तमान शिक्षकों से यह अपेक्षा की जाती है कि छात्रों के समक्ष तथ्यात्मक ज्ञान को क्रमबद्ध रूप में प्रस्तुत करें। भाषाई ज्ञान के आधार पर यह कार्य सरलता से संपन्न किया जा सकता है

6. नियमों से संबंध

:- आत्मज्ञान का संबंध अनेक प्रकार के नियमों एवं सिद्धांतों से होता है। इस सिद्धांतों को ही छात्र के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है। समय-समय पर इन नियमों की एवं सिद्धांतों की समीक्षा की जाती है तथा अनेक परिवर्तनों के बाद इसमें नवीन तथ्य जोड़ दिए जाते हैं। इस प्रकार तथ्यात्मक ज्ञान का संबंध सिद्धांत एवं नियमों से है जिसमें अनेक अनुसंधानो एवं प्रयोग के आधार पर परिवर्तन किया जा सकता है।

7. दो तथ्यों का संबंध

:- तथ्यात्मक ज्ञान में समान रूप से दो या दो से अधिक तथ्यों का तुलनात्मक अध्ययन संभव होता है। जैसे हाइड्रोजन गैस ऑक्सीजन गैस से हल्की होती है। चीन की जनसंख्या भारत की जनसंख्या से अधिक है इत्यादि। इस प्रकार के तथ्यात्मक ज्ञान में 2 तथ्यों को तुलनात्मक अध्ययन तथा समन्वय पाया जाता है। इस प्रकार तथ्यात्मक ज्ञान या तथ्यात्मक अधिगम तुलना की दृष्टि से बहुत उपयोगी है तथा इस ज्ञान के द्वारा विभिन्न विषयों को तुलनात्मक अध्ययन भी संभव होता है।

8. विश्वास की भावना

:-तथ्यात्मक ज्ञान को समान रूप से इस कारण से भी मान्यता प्रदान की जाती है उसमें विश्वास की भावना निहित होती है दूसरे शब्दों में जन सामान्य का मानना होता है कि जो भी तथ्य इस ज्ञान के माध्यम से प्रस्तुत किए जा रहे हैं वह सत्य है। उदाहरण स्वरूप जब हम किसी शब्द का अर्थ या उसकी संरचना जानना चाहते हैं तो शब्द के आधार पर यह निर्णय लेते हैं कि इस शब्द का अर्थ क्या होगा क्योंकि शब्दकोश के प्रस्तुत ज्ञान के प्रति हमारे मन में यह भावना होती है कि यह ज्ञान सत्य एवं प्रमाणिक है। इस प्रकार तथ्यात्मक अधिगम को उसमें नीत भावना के आधार पर स्वीकार किया जाता है।

9. चिंतन की संभावना

:- किसी भी तथ्यात्मक ज्ञान पर पूर्ण रूप से विचार करने की संभावना होती है। उदाहरण स्वरूप मुझे बहुत देर सिर दर्द हो रहा है। राम 3 घंटे से अध्ययन कर रहा है। मोहन रोज 2 घंटे लेट विद्यालय आता है। इन सभी वाक्यों पर मानसिक रूप से विचार करने के पश्चात ही तथा त्मक ज्ञान को एक निष्कर्ष के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। इस प्रकार तथ्यात्मक के संदर्भ में मानसिक चिंतन एवं विश्वास की पूर्ण संभावना रहती है।

10. अनुमान

:- तथ्यात्मक अधिगम में अनुमान का भी प्रभाव होता है। अनुमान के आधार पर ही अनेक तथ्य प्रस्तुत किए जाते हैं। भूगोल अर्थशास्त्र एवं मौसम संबंधी जानकारी में हनुमान का ही प्रयोग होता है। विभिन्न प्रकार की परिस्थितियों को देखकर विद्वानों द्वारा यह अनुमान लगाया जाता है कि कौन सी घटना घट सकती है। इस आधार पर ही व अन्य तथ्यों की घोषणा कर देते हैं उदाहरण स्वरूप आज बारिश होने की संभावना है। शरीर का अधिक गर्म होना बुखार का संकेत देता है। जिसमें शरीर के गर्म होने पर बुखार का अनुमान लगाया जाता है। इस प्रकार तथ्यात्मक अधिगम अनुमान के आधार पर भी चलता है।

11. पाठ्यपुस्तकों में समाहित

:-तथ्यात्मक विशेष रूप से पाठ्य पुस्तकों में समाहित होता है । जैसे इतिहास गणित विज्ञान आदि विषयों में जो पुस्तक होते हैं उसकी पृथक रूप से प्रस्तुति की जाती है। इसका प्रमुख कारण यही है कि तथ्यात्मक ज्ञान को क्रमबद्ध एवं सुख संगठित ढंग से प्रस्तुत करने के लिए अलग-अलग पुस्तकों में अलग-अलग विषयों के तथ्यात्मक ज्ञान को समाहित किया जाता है। अतः पाठ्य पुस्तकें तथ्यात्मक अधिगम का सर्वोत्तम साधन माना जाता है।

12. निष्कर्षों से संबंध

:- तथ्यात्मक ज्ञान का संबंध सदैव प्रयोग एवं अनुसंधान ओं के निष्कर्ष से होता है। उन तथ्यों को अधिक प्रभावित एवं उचित माना जाता है जो की कसौटी पर परीक्षण के पश्चात प्रस्तुत किए जाते हैं। इन सिद्धांतों का व्यवहारिक जीवन में भी व्यक्तियों द्वारा सामान्यत: परीक्षण किया जाता है। इसलिए तथ्यात्मक अधिगम का संबंध विभिन्न प्रकार के शैक्षणिक एवं अशैक्षणिक अनुसंधान एवं प्रयोग के निष्कर्ष को सार रूप में प्राप्त होता है।

#. तथ्यात्मक अधिगम का शिक्षा में क्या उपयोगिता है

  1. तथ्यों का क्रमबद्ध प्रस्तुतीकरण
  2. उचित शिक्षण विधियों का ज्ञान
  3. ज्ञान का एकत्रीकरण
  4. ज्ञान का आदान-प्दान
  5. अनुसंधान का सार्वभौमिक उपयोग
  6. विद्यालय व्यवस्था में उपयोगी
  7. पाठ्यक्रम एवं शिक्षा क्रम के निर्माण में सहायक
  8. शैक्षिक उद्देश्यों का निर्धारण
  9. सामाजिक गुणों के विकास में उपयोगी
  10. नैतिक गुणों का विकास

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