what is a knowledge base | What is knowledge

What is knowledge | what is a knowledge base

:- what is a knowledge base | What is knowledge या ज्ञान क्या है ? इससे सम्बन्धित बहुत सारे question आते हैं जिसके ये एक तरह का ये भी question है की ज्ञान क्या है ? इसकी विशेषताओं का वर्णन करें।

 Q. ज्ञान क्या है ? इसकी विशेषताओं का वर्णन करें। (What is knowledge ? Describe its Characteristics.)

Ans. आजकल ज्ञान का महत्त्व बहुत ज्यादा है जिसका ज्ञान (जानकारी) जितना ज्यादा और नवीनतम है वह उतना ही ज्यादा दूसरों को प्रभावित करता है। वह जहाँ भी होता है, या जहाँ भी जाता है वहीं उसे पहचान मिलती है। शिक्षा व्यक्ति को पर्याप्त ज्ञान देती है, उसे नवीनतम करती है तथा ज्ञान की दृष्टि से गंभीर बनाती है।

इसलिए क्या हम मान लें कि शिक्षा का ज्ञान- लक्ष्य ही सर्वाधिक महत्त्वशाली है ? इस प्रश्न का उत्तर हमें बड़ी सावधानी से खोजना होगा, क्योंकि जीवन में केवल ज्ञान ही तो अकेले महत्त्वपूर्ण नहीं है। ज्ञान के अतिरिक्त भी तो व्यक्तित्व के अनेक आयोग है जो किसी भी दृष्टि से दूसरों से कम नहीं हैं, हाँ, सही है कि जीवन के सामाजिक, सांस्कृतिक नैतिक पक्षों का ज्ञान भी तभी हो सकता है जब व्यक्ति ने वह ज्ञान अर्जित किया हो। इस रूप में, शिक्षा के ज्ञान- लक्ष्य को हम एक आधार लक्ष्य मान सकते हैं। सुकरात ने कहा, “जो सच्चा ज्ञान प्राप्त कर लेता है वह सर्वगुण सम्पन्न हो जाता है ”

Sophists, 400B.C के युग से ही ज्ञान को शिक्षा के एक लक्ष्य के रूप में स्वीकार किया गया है। बौद्धिक सन्तुष्टि के लिए ज्ञान एक सशक्त एजेंट है। वर्तमान सभ्यता में शिक्षा के माध्यम से ज्ञान का प्रसार होता है।

लॉक के अनुसार, दर्शन वस्तुओं का सत्य ज्ञान है जिसमें वस्तुओं की प्रकृति भी सम्मिलित है, जिसे मनुष्य को एक तर्कपूर्ण ऐच्छिक एजेण्ट के रूप में प्राप्त करना चाहिए। ऐसे ज्ञान को प्राप्त करने के तथा संप्रेषण के अनेक ढंग तथा विधियाँ हैं (तर्क) ।

हमारा संपूर्ण ज्ञान अनुभवों से प्राप्त तथा अनुभवों पर ही आधारित हैं। विचार प्राप्त करने के मुख्य रूप साधन हैं इन्द्रियानुभव जिसमें इन्द्रियों की सहायता से मन ज्ञान से भरपूर होता है उसका प्रतिबिम्व या आन्तरिक इन्द्रियानुभव वह है, जो स्वयं की क्रियाओं से विचारों को मस्तिष्क तक पहुंचाता है, जैस-ग्रहण करना, विचार करना संदेह करना, विश्वास करना, तर्क करना, जानना, इच्छा करना ।

समस्त ज्ञान याद करने के अतिरिक्त कुछ नहीं है अपितु तुलानात्मक ज्ञान है तथा जिसमें गलती होने की सम्भावना बनी रहती है। प्रत्येक व्यक्ति जानने की इच्छा रखता है, परन्तु उसमें से पहले आधा वह रूचि के लिए तथा दूसरा आधा दिखाने के लिए जानना चाहता है। यदि एक व्यक्ति अपने अनुभवों तथा प्रेक्षण के आधार पर विश्व को नहीं जानता तो उसका जान अधूरा है और वह अपने समूह में स्वीकृत नहीं होता। वह बहुत अच्छी वस्तुओं के बारे में कुछ कह सकता है, परन्तु वे शायद इतने समय के अनुकूल नहीं होगी, सही स्थान पर नहीं कही जाएँगी तथा इतने अनुचित ढंग से कही जाएँगी कि इससे अच्छा होगा कि वह अपनी जुबान पर नियन्त्रण रखें,

अर्थात् विश्व में लोगों को तीन वर्गों में बाँटा गया है पहले वे जो अपने अनुभवों के आधार पर सीखते हैं वे बुद्धिमान होते हैं, दूसरे वे जो दूसरों के अनुभवों के आधार पर सीखते हैं वे खुशहाल होते हैं, तीसरे वे जो न तो अपने अनुभवों से ही और न ही दूसरों के अनुभवों से सीखते हैं वे ही मूर्ख होते हैं।

ली का यह मानना है कि “ज्ञान सामान्य बुद्धि के बिना अज्ञानता है, विधि के बिना यह व्यर्थ है, दयालुता के बिना यह अनुपयोगी है धर्म के बिना यह मृत्यु है। परन्तु सामान ज्ञान के साथ यह बुद्धिमता है, विधि से यह शक्ति है, दया से यह लाभकारी (उपयोगी) है, धर्म से यह गुण, जीवन तथा शक्ति है।”

स्पेंसर का यह विश्वास है कि ज्ञान विचारों की एकीकृत पूर्ण प्रणाली है। सामान्य व्यक्ति का ज्ञान एकीकृत नहीं होता, असम्बन्धित तथा सुसंगत नहीं होता जिसका अभिप्राय यह है कि विभिन्न भाग एक-दूसरे के साथ जुड़े हुए नहीं होते। विज्ञान हमें एकीकृत ज्ञान का कुछ ही भाग प्रदान करता है। दर्शनशास्त्र स्वयं में एक सम्पूर्ण, एकीकृत ज्ञान है, एक संगठित प्रणाली है, इसका कार्य उच्च सत्य की खोज करना है जिसके परिणामस्वरूप यान्त्रिकी, भौतिक विज्ञान, जीव विज्ञान तथा नीतिशास्त्र के सिद्धान्तों की खोज की जाती है।

शिक्षा को ज्ञान के लिए ज्ञान का लक्ष्य नहीं रखना चाहिए। शिक्षा के एकमात्र लक्ष्य के रूप में ज्ञान संकीर्ण है और मानव की समस्त अभिलाषाओं के योग्य नहीं है। प्रो. व्हाइटहेड ने उचित ही कहा है, “मात्र एक अच्छी जानकारी रखने वाला व्यक्ति ईश्वर की इस धरती पर एक अत्यन्त बेकार उबाने वाला व्यक्ति होता है।” गाँधीजी ने भी कहा है, “व्यक्ति न तो मात्र बुद्धि होता है न ही कुल पशु का शरीर, न ही दिमाग और न हो केवल आत्मा होता है। एक सम्पूर्ण व्यक्ति बनाने के लिए तीनों के उपयुक्त और सामंजस्यपूर्ण योगदान की आवश्यकता होती है जो शिक्षा के वास्तविक अर्थशास्त्र को बनाती है। ” ज्ञान के अर्थ को स्पष्ट करते हुए मनोवैज्ञानिकों ने लिखा है

According to Sternberg

“Knowledge is defined as the application of intelligence, creativity as medicated by values toward the achievement of common good through a balance among intrapersonal, interpersonal and extrapersonal interests in order to achieve a balance among adaptation to existing environments shaping of existing environments and selection of new environments.”

ज्ञान की  विशेषताएँ (Characteristics Knowledge) – ज्ञान की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित है।

(1) ज्ञान धन की तरह है, जितना एक मनुष्य प्राप्त होता है, वह उतना ही ज्यादा पाने की इच्छा

(2) ज्ञान सत्य तक पहुँचने का साधन है। जानने लिए अनुभव चाहिए।

(4) ज्ञान प्रेम तथा मानव स्वतंत्रता सिद्धान्तों ही आधार है। प्रदान करता है।

(5) एक बार प्राप्त किया गया ज्ञान अपनी सीमाओं से परे रोशनी

(6) तथ्य और मूल्य ज्ञान के ढाँचे आधार हैं।

(7) तथ्य कदम से कदम चलता उछलता है।

(8) ज्ञान की भी भी समाप्त नहीं होता।

(9) सूचना ज्ञान का स्रोत है।

(10) ज्ञान शक्ति है।

(11) ज्ञान दूसरों को प्रदान करने लिए विद्यमान है।

(12) ज्ञान समय का परिणाम है।

(13) ज्ञान की कोई सीमा नहीं है।

(14) ज्ञान तीन वस्तुओं की ओर संकेत करता सत्य, सिद्ध और ईश्वर

(15) ज्ञान शिक्षा का बहुत उत्तम साधन है ।

(16) यह व्यक्ति जीवन समायोजन करना सिखाता है।

(17) यह नैतिकता को संतुष्ट करता है। इसका मूलमंत्र ‘स्वयं को जानो।

(18) यह व्यक्ति विचारशील बनाता है।

(19) अधिक ज्ञान तो अच्छा लेकिन आत्मा नहीं।

(20) ज्ञान एक मानसिक आधार एक निहित शक्ति है।

(21) यह मानव को प्रसन्नता का साधन है।

(22) ज्ञान में मानव कल्याण की भावना निहित होती है।

अतः ज्ञान की इच्छा, अमीरों की प्यास के समान है जो प्राप्त करने के साथ-साथ बढ़ती जाती है। इस जीवन में स्वास्थ्य तथ्य गुणों के पश्चात् सबसे आवश्यक ज्ञान है। ज्ञान बीजों को एकान्तवास में रोपित किया जा सकता है, परन्तु इसकी उन्नति सार्वजनिक रूप से ही होनी चाहिए।

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