Water Conservation | जल संरक्षण

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विश्व में जल संकट निरन्तर बढ़ता जा रहा है। 21 वीं शताब्दी के इस प्रथम दशक में विश्व को 50 प्रतिशत जनसंख्या प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से जल संकट को महसूस कर रही है, जिसके अन्तर्गत दुनिया की 40 प्रतिशत आबादी का नेतृत्व करने वाले 80 देश आते हैं जो जल संकट की भयंकर चपेट में है। जल के मुख्य स्रोत नदियाँ हैं तथा विश्व को 50 प्रतिशत जनसंख्या 250 नदी बेसिनों में निवास करती हैं। इनमें अनेक नदियाँ पूर्णरूपेण किसी एक देश में ही स्थित है लेकिन कुछ नदियाँ अन्तर्देशीय हैं जिनका जल विभिन्न अनुपात में समझौत के अन्तर्गत उपयोग में लाया जाता है।

Water Conservation

प्रादेशिक तथा विश्व स्तर पर सभी देशों को स्वच्छ जल की मात्रा को संरक्षित करने की आवश्यकता है जिसके लिए विभिन्न भौगोलिक अवस्थितियों तथा परिस्थितियों में उपयुक्त विधि अपनाकर जल को संरक्षण प्रदान करना चाहिए। समय के साथ बढ़ती माँग एवं आर्थिक गतिविधियों को विविधता के सन्दर्भ में जल का उपयोग प्रतिरूप भी परिवर्तित हुआ है जिसे यद्यपि मूल रूप में तो पुनर्स्थापित नहीं किया जा सकता वरन् समय के साथ बदलते परिवेश में संरक्षित किया जा सकता है।

जल संरक्षण की विधियाँ (Methods of Water Conservation)- जल संरक्षण की प्रमुख विधियाँ निम्नलिखित हैं

(1) जल की प्रदूषण से सुरक्षा पृथ्वी पर उपलब्ध कुछ स्वच्छ जल यदि प्रदूषण मुक्त रहे तो दुनिया का वर्तमान जनसंख्या की जलापूर्ति सम्बन्धी कार्यों के लिए पर्याप्त होगा लेकिन शुद्ध जल का बड़ा भाग बढती आर्थिक क्रियाओं तथा नगरीयकरण आदि के कारण जैव जगत के उपयोग के योग्य नहीं रहा है। महासागरीय जल सागरीय पारिस्थितिकी तंत्र के रूप में पृथ्वी की एक प्रमुख पर्यावरणीय व्यवस्था है लेकिन विगत शताब्दी में भारी मात्रा में प्रदूषण फैला है। सतही जल मुख्यतः नदियाँ व झोलों तथा भूमिगत जल भूपृष्ठ के विभिन्न गहराइयों में मिलता है जिससे प्रदूषित कर दिया गया है। नदिया के किनारे स्थित बड़े शहरों से विभिन्न अपशिष्टों झीलों तथा सागर तटों पर पर्यटन व्यवसाय ने युद्ध स्तर पर प्रदूषण फैलाया है। मानव अपनी जल सम्बन्धी आवश्यकताओं के लिए भूजल पर सर्वाधिक निर्भर रहता है लेकिन कुछ विशिष्ट औद्योगिक इकाइयों ने भूमि के सुरक्षा कवच में स्थित इस जल राशि की भी प्रदूषित कर दिया है।

(2) जल का पुनर्वितरण भूसतह पर पाया जाने वाला जल समान रूप से वितरित है। वितरण की वर्तमान प्रतिरूप भी संकट का कारण बन जाता है। अफ्रीका महाद्वीप में संसार की सर्वाधिक जल विद्युत सम्भाव्यता पायी जाती है क्योंकि भूमध्यरेखीय प्रदेशों में जल की प्राप्ति अधिक है जबकि अफ्रीका के उत्तर में स्थित संसार का सबसे बड़े मरुस्थल सहारा वर्षभर संकट से ग्रस्त रहता है। सहारा के उत्तर में स्थित ‘सहेल’ प्रदेश में आने वाले सूखे है। इसी प्रकार भारत के पूर्वोत्तर भाग में संसार की सर्वाधिक वर्षा (मोसिनयम, 1187 सेमी.) प्राप्त होती है जबकि पश्चिम में 50 सेमी वर्षा होती है परिणामस्वरूप पूर्वोत्तर भारत में ब्रह्मपुत्र तथा इसकी सहायक नदियों में प्रतिवर्ष आने वाले जल का 60 प्रतिशत से अधिक भाग विना उपयोग के ही लवणीय सागर में मिल जाता है जबकि पश्चिमी राजस्थान में नदियाँ वर्ष के अधिकांश समय में शुष्क रहती हैं। अतः कम आवश्यकता वाले क्षेत्रों से अधिक आवश्यकता वाले क्षेत्रों को जलापूर्ति करके जल संकट को कम किया जा सकता है। इसके लिए सतह जल संग्रह स्थलों का निर्माण करके अतिरिक्त जल को अभावग्रस्त क्षेत्रों में एकत्रित करके जल की आपूर्ति की जा सकती है। यह कार्य जलाशयों तथा नहरी जाल विकसित करके ही सम्पन्न हो सकता है। इस दृष्टि से भारत में चल रही नदियों को जोड़ने की योजना कारगर सिद्ध होगी।

वर्षा से प्राप्त वह चाल जो नदियों द्वारा बिना उपयोग के लिए हो वह जाता है, जलाशयों का निर्माण करके संगृहीत किया जाता है, जिससे कृषि, उद्योगों, नगरों आदि को जल की पूर्ति को जाती है। जलाशयों में एकत्रित जल में परिवर्तन तथा मत्स्यन की सुविधाएँ भी रहती है। नदियों में बाढ़ों के प्रकोप से बचने के उद्देश्य से भी ये जलाशय बनाये जाते हैं जिनके द्वारा बाढ़ से बचाव साथ ही उस जल का विविध रूपों में उपयोग किया जाता है।

(3) भूमिगत जल का विवेकपूर्ण उपयोग– विश्व स्तर पर भूजल कुल जल आपूर्ति का 25 प्रतिशत पूरा करता है। शेष 75 प्रतिशत आपूर्ति नदियाँ, झोलों आदि सतही जल स्रोतों से होती है। भूजल की उपलब्ध मात्र के अनुपात में इसकी माँग निरन्तर बढ़ती जा रही है, जिस कारण भूजल की मात्रा कम होती जा रही है। भूजल का दोहन एक बार होने के उपरान्त पुनः पूर्ति काफी लम्बे समय पूर्ण हो पाती है, अतः भूजल को पुनः पूर्ति के अनुपात में ही दोहन किया जाना चाहिए। भारत में भूजल का सर्वाधिक उपयोग कृषि कार्यों में किया जाता है। कृषि में जलवायु दशाओं अनुसार जल की माँग वाली फसलें बॉकर व्यापारिक महत्व की फसलों को बढ़ावा दिया जा रहा जिस कारण भूजल अतिदोहन किया गया है। 1984 राजस्थान कुल 237 विकास खण्डों 203 भूजल दोहन दृष्टि सुरक्षित वर्ग में लेकिन विगत दशकों भूजल युद्धस्तर किये गये दोहन कारण सुरक्षित विकास खण्डों संख्या घटकर वर्ष 2001 केवल 49 हजार रह गई तथा शेष खण्ड भूजल दोहन की दृष्टि अन्धकारमय वर्ग चले गये जहाँ भविष्य विविध कार्यों हेतु आवश्यक मात्रा भूजल उपलब्ध नहीं रहा है।

(4) जनसंख्या नियंत्रण- जनसंख्या तीव्र वृद्धि तथा जल संसाधन प्रादेशिक रूप मात्रात्मक एवं गुणात्मक कमी आने से जल संकट उग्र रूप लिया है। निरन्तर जल माँग बढ़ती साथ तथा जल उत्पन्न गया। अत: कृषि जलवायु दशाओं के अनुकूल जाये। जल को कम उपलब्धता वाले कृषि वानिकी तथा बागाती दी जानी

5. प्रबन्धन-विश्व के बाढ़ रूप स्वच्छ जल का बड़ा भाग उपयोग में आकर भारत के कुल क्षेत्रफल 32.8 करोड़ हैक्टेयर से करोडक्टर से 3.2 करोड़ हैक्टेयर भूमि को बाढ़ बचाया सकता है। तटबन्धों करके बाढ़ नुकसान बचाव के साथ-साथ जल बड़े सघन वृक्षारोपण भी बाढ़ को दृष्टि गंगा, यमुना, महानदी, दामोदर कोसी आदि के अपवाह अन्तर्गत लेकर कुल 144 करोड़ हैक्टेयर को कुछ तक बाद

6. जल की बचत- विश्व स्तर पर वार्षिक जल के उपयोग का 23 प्रतिशत उपयोग होता कुछ जल खपत अधिक में होती बड़े भाग को प्रदूषित कर दिया उद्योग एक टन इस्पात निर्माण में 300 जल की आवश्यकता खपत मात्रात्मक एवं गुणात्मक दोनों में होती है। विकसित देशों का अनुपात अधिक (50 प्रतिशत) होती है जिसकी 75 सतहो भूमिगत जल द्वारा होती है। उद्योगों जल को प्रदूषण से बचाने उपयोग का चक्र विकसित किया जाना चाहिए क्योंकि सामान्यतः किसी एक उपयोग में लिया गया भूसतह पर छोड़ जाता जो प्रदूषित करता उद्योगों जल हुए पुन: उपयोग किया जाना चाहिए।

7. जल का पुन: उपयोग नगरीयकरण शहरों में को माँग अनेक देशों शहरों एवं कस्बों में अपशिष्ट जल उपचार बड़ी मात्रा जल पुन: उपयोग में आने स्थान दूसरे स्रोतों यमुना किनारे स्थित दिल्ली, आगरा, मथुरा आदि शहरों में स्थित अनेक में शहर जल उपचारित करके इसका उपयोग शहर के सब्जियों फल किया जाता शहरों में उपयोग आने अपशिष्ट जल उपचार उपरान्त नगरीय कृषि उपयोग में लाने विभिन्न आवश्यकताओं पूर्ति भी सकती है। नियोजित नियमों का होना

जल संरक्षण-नगर निकायों द्वारा व्यक्तिगत वाले जत को आपूर्ति पक्षों किया जाना चाहिए। शहरों वर्षा पर एकत्रित करने की व्यवस्था नियमबद्ध लागू करना आवश्यक है।

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