वैज्ञानिक विधि | Scientific method | methods of teaching science

प्रश्न . वैज्ञानिक विधि (scientifc method)  को सोदाहरण प्रस्तुत करें।

उत्तर– Scientific method :- अर्थ एवं महत्त्व (Meaning and Importance) — विज्ञान की प्रकृति में इसका प्रक्रिया पक्ष महत्त्वपूर्ण है। प्रत्येक वैज्ञानिक अपने अनुसन्धान कार्य हेतु जिस किसी भी प्रक्रिया को काम में लेता है, वह एक वैज्ञानिक scientifc method प्रक्रिया है। अब प्रश्न उठता है कि क्या सभी वैज्ञानिक कोई निश्चित प्रक्रिया अपनाते हैं? क्या किसी निश्चित एवं पूर्ण निर्धारित प्रक्रिया खोजते हैं ? क्या किसी निश्चित ढाँचे में बँधकर कोई नवीन खोज या सृजनात्मक कार्य हो सकता है ? इन प्रश्नों का उत्तर जानने के लिए यदि हम विभिन्न अनुसन्धानों के इतिहास पर दृष्टिपात करें तो पायेंगे कि कई बार वैज्ञानिक अपनी समस्याओं से जूझते हुये जब निराश होने लगते हैं तो अचानक ही उन्हें अपनी समस्या का हल ” सूझ” से प्राप्त हो जाता है। उदाहरण के लिए, जब “फैराडे” ने निराश होकर चुम्बक को कुण्डली की ओर फेंका तो अचानक ही उन्हें प्रेरण का आभास हुआ एवं विश्व प्रसिद्ध “विद्युत चुम्बकीय प्रेरण” के नियमों की खोज हुई। आर्कमिडीज के सिद्धान्त की खोज, न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण नियम की खोज, बेंजीन के अणु सूत्र की खोज, एक्स किरण की खोज आदि कुछ खोजों को भी इसी प्रकार की अचानक सूझ का ही परिणाम कहा जा सकता है। क्या वैज्ञानिक अपनी समस्याओं के हल के लिए अचानक उत्पन्न होने वाली इस अन्तर्दृष्टि की ही प्रतीक्षा करते रहते हैं? क्या वे उस अवस्था का हाथ पर हाथ रखकर इंतजार करते हैं कि कब उन्हें अपनी समस्या के हल सम्बन्धी सूझ उत्पन्न हों ? यदि हम वैज्ञानिकों की कार्य प्रणाली का बारीकी से अवलोकन करें तो पायेंगे कि अधिकतर वैज्ञानिकों द्वारा किये जाने वाले अनुसन्धानों की प्रक्रिया को वैज्ञानिक विधि scientifc method कहा जाता है।

कुछ लोगों का मानना है कि कोई एक निश्चित विधि वैज्ञानिक विधि नहीं हो सकती । उनका तर्क यह है कि कोई भी वैज्ञानिक इस विधि के चरणों में जकड़ा नहीं रहता और न ही इस बात की गारण्टी है कि इस विधि का उपयोग करने से किसी समस्या का समाधान मिल हो जायेगा। कभी-कभी तो वैज्ञानिक कार्य किसी एक समस्या पर कर रहे होते हैं एवं उन्हें हल किसी अन्य समस्या का प्राप्त हो जाता है। इन लोगों का मानना है कि ये सभी प्रक्रियाएँ, क्रियाएँ, तरीके, युक्तियाँ, तकनीकें जैसे—प्रयोग, प्रेक्षण, प्रयत्न एवं भूल, सामान्य ज्ञान, प्राक्कल्पना की जाँच, पुस्तकालय अध्ययन आदि अनेक विधियों जिनसे वैज्ञानिक किसी निष्कर्ष पर पहुँचते हैं वे सभी वैज्ञानिक विधियाँ कहलायेंगी।

 

उक्त तर्क में कुछ सच्चाई हो सकती है परन्तु विज्ञान के शिक्षण में इसका महत्व कम है। यदि हम उस विधि को वैज्ञानिक विधि मानें जिसका उपयोग अधिकतर वैज्ञानिकों द्वारा की जाने वाली खोज में किसी न किसी रूप में किया जाता है तो हम पायेंगे कि उपरोक्त में से बहुत सी प्रक्रियाएँ उस विधि में सम्मिलित हो जायेंगी। इस विधि का अत्यधिक महत्त्व है क्योंकि इसके विभिन्न चरणों का कुशलतापूर्वक उपयोग करने से सफलता की सम्भावना बढ़ती है। कार्ल पियर्सन ने वैज्ञानिक विधि के प्रमुख सोपानों को इस प्रकार रखा है

1. समस्या के प्रति संवेदनशीलता–परिभाषा, क्षेत्र, विश्लेषण ।

2. प्रयोग ।

3. दत्त का एकत्रीकरण, इसका निर्वचन, सर्वोत्तम प्राक्कल्पना की जाँच और अनुमानित समाधान पर पहुँचना ।

4. नियम स्थापन

5. नियम का केन्द्रीकरण– सिद्धान्त ।

6. नई संस्थिति में नियम का उपयोग।

.7. भविष्यवाणी की योग्यता ।

8. आदर्शीकरण और संक्षिप्तीकरण इस सोपान में विज्ञान दर्शन के साथ सम्बन्ध स्थापित करता है।

मिल्स और डीन (1960) के अनुसार व्यावहारिक रूप में वैज्ञानिक विधि समस्या समाधान विधि है। इसके सोपान इस प्रकार दिये गये हैं

1. समस्या का सर्वेक्षण, अध्ययन योग्य मदों की पहचान के लिए सम्भाव्य समस्या का विश्लेषण ।

2. समस्या का विवरण |

3. समस्या पर विमर्श ।

4. समस्या की सीमा ।

5. क्रिया का नियोजन ।

6. प्राक्कल्पनाओं का परीक्षण तथा सर्वाधिक अनुपम समाधान की पहचान ।

विज्ञान के अध्ययन में वैज्ञानिक विधि में व्यावहारिक और उपयोगी सोपान इस प्रकार हैं

1. समस्या को अनुभव करना (Experience of the Problem)–

प्रत्येक वैज्ञानिक सर्वप्रथम अपने क्षेत्र से सम्बन्धित समस्या का अनुभव करता है। अपने नित्य के प्रेक्षणों एवं कार्य-कलापों से उसको किसी कमी का आभास होता है। उसके मन में कोई प्रश्न उठता है। यहीं से चिन्तन की प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाती है। वैज्ञानिक उस प्रश्न का समाधान खोजने के लिए तत्पर हो जाता है।

2. समस्या को परिभाषित करना (Defining the Problem)–

इस चरण में अनुसन्धानकर्ता समस्या के विभिन्न पहलुओं पर विचार करने के उपरान्त उसकी सीमाएँ निश्चित करता है एवं अनुसन्धान योग्य समस्या को परिभाषित करता है।

3. समस्या से सम्बन्धित साहित्य का अध्ययन (Studying the related literature)–

अनुसन्धानकर्ता अपनी समस्या से सम्बन्धित साहित्य का अध्ययन कर यह जानने का प्रयास करता है कि उस समस्या से सम्बन्धित पहले क्या निष्कर्ष निकले ? इनकी सहायता से वह समस्या का सम्भावित हल खोजने का प्रयास करता है।

4. प्राक्कल्पनाओं को सूत्रबद्ध करना (To Formulate the Hypotheses)

– अब अध्येता पूर्व-ज्ञान के आधार पर अनुमान द्वारा सभी सम्भावित समाधानों की सूची बनाता है। इन सभी सम्भावित समाधानों को प्राक्कल्पना कहते हैं।

5. प्राक्कल्पनाओं का परीक्षण (Testing of hypotheses)

– प्राक्कल्पनाओं के चयन के पश्चात अनुसन्धानकर्त्ता परिकल्पनाओं की जाँच करता है। अर्थात् वह यह जानने का प्रयास करता है कि उसके द्वारा अनुमानित समाधान का वास्तविक एवं विश्वसनीय हल है। इस कार्य हेतु वह अग्र चरणों से गुजरता है

(क) प्रयोग की योजना बनाना (Planning for Experiment)

– यहाँ अनुसन्धानकर्त्ता प्रयोग की रूपरेखा निश्चित करता है। उसके लिये आवश्यक उपकरण एवं साधन जुटाता है तथा परिस्थितियों (चरों) को नियन्त्रित करता है ताकि समस्या एवं समाधान है के बीच के सम्बन्ध का अवलोकन कर सके।

(ख) प्रयोग करना (Experiments)

– इस चरण में खोजकर्ता प्रयोग करता है। सर्वाधिक सुग्राही उपकरणों से मापन करता है, वस्तुनिष्ठ प्रेक्षण लेता है, आवश्यकतानुसार उनके अभिलेख तैयार करता है एवं परिस्थितियों को बदलकर पुनः प्रेक्षण करता है। इस प्रकार वह दत्तों का संकलन करता है।

(ग) दत्तों का संगठन एवं विश्लेषण (Organization & Analysis of data)

– प्राप्त दत्तों का सारणीकरण एवं विश्लेषण करके अनुसन्धानकर्त्ता उनसे महत्त्वपूर्ण निष्कर्ष निकालता है। वह यह जानने का प्रयास करता है कि विभिन्न परिस्थितियों में उसके द्वारा अनुमानित हल समस्या का सही समाधान है अथवा नहीं। अर्थात् प्राक्कल्पना प्रयोगों द्वारा सत्यापित होती है या नहीं। यदि उसकी प्राक्कल्पना सत्य होती है तो वह आगे लिखे चरणों के अनुरूप कार्य करता है अन्यथा दूसरी प्राक्कल्पना का चयन करता है तथा उसे जाँचने हेतु उपयुक्त क्रियाएँ दोहराता है।

6. सामान्यीकरण एवं निर्वचन ( Interpretation & Generalization)

– प्राक्कल्पनाओं की जाँच के बाद यदि वह सत्य सिद्ध होती है तो अनुसन्धानकर्त्ता इससे सन्तोष नहीं कर लेता। वह नई परिस्थितियों में अपने प्रयोग को एकाधिक बार दोहराता है। यदि फिर भी परिकल्पना सत्य सिद्ध होती है तो वह समस्या के समाधान का सामान्य सिद्धान्त प्रतिपादित करता है। जिन परिस्थितियों में सिद्धान्त सही नहीं होता उनकी कारणों सहित व्याख्या करता है।

7. प्रतिवेदन (Reporting)–

अनुसन्धानकर्त्ता द्वारा किसी समस्या से प्राप्त समाधान का उपयोग एवं जाँच अन्य व्यक्तियों द्वारा की जा सके; इस हेतु वह अपने प्रयोग का प्रतिवेदन लिखता हे एवं उसे प्रकाशित कराता है। परिणामस्वरूप दूसरे अनुसन्धानकर्त्ता उस प्रयोग की पुरावृत्ति नवीन परिस्थितियों करके उसके सिद्धान्त या तो पुष्टि करते हैं उसमें करते इस प्रकार नवीन का सृजन एवं शोधन होता है।

वैज्ञानिक विधि अभिलाक्षणिक (Characteristics Scientific Method)

—वैसे वैज्ञानिक विधि अनेक विशेषताएँ परन्तु कुछ महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ हैं

  • प्रत्यक्ष अनुभव (जैसे—अवलोकन, प्रेक्षण, स्पर्श, आदि) आधारित होती
  •  विश्लेषण का विशेष महत्व किसी समस्या छोटे-छोटे अवयवों विभक्त करके समझने एवं हल ढूँढ़ने प्रयास विश्लेषण कहलाता
  • प्राक्कल्पना का विशेष स्थान जब कभी किन्हीं घटनाओं को एक देखते हैं तो तुरन्त उनके बीच किसी सम्बन्ध कल्पना लेते हैं। यही प्रक्रिया हमें समस्या के काल्पनिक समाधान या प्राक्कल्पना निर्माण सहायक होती है।
  • इसमें वस्तुनिष्ठ मापन का अत्यधिक महत्त्व है। अनुसंधानकर्त्ता प्रयास रहता है कि उसके द्वारा किया गया मापन अत्यधिक विश्सनीय वस्तुनिष्ठ है 
  • यह विधि पूर्वाग्रहों के मुक्ति एवं वस्तुनिष्ठता को महत्त्व देती है। में निष्कर्ष किसी व्यक्ति की अपनी धारणाओं के आधार होते, इसमें व्यक्ति की संवेगात्मक आसक्ति या पक्षपातपूर्ण तर्क के लिये कोई स्थान नहीं होता है। • वैज्ञानिक विधि निष्कर्षों तक पहुँचने की सतत् एवं धैर्यपूर्ण प्रक्रिया है।
  •  वैज्ञानिक विधि कार्य-कारण सम्बन्धों पर आधारित घटना का कारण होता है। इसी धारणा के आधार पर इस विधि द्वारा सर्वमान्य कारणों की खोज की जाती है।
  • यह आगमन-निगमन का ही एक है। पहले प्रेक्षणों नियमों की खोज होती है। उसके बाद उन नियमों का उपयोग विशिष्ट घटनाओं की व्याख्या में किया जाता

वैज्ञानिक विधि में प्रशिक्षण

छात्रों को  वैज्ञानिक विधि प्रशिक्षण देना क्यों आवश्यक है यह उपरोक्त विवरण चुके हैं। अब हम यह देखेंगे वैज्ञानिक में को प्रशिक्षण हेतु अध्यापक क्या करें अध्यापक इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए निम्नांकित अपेक्षित हैं

  1. शिक्षक हमेशा कि उसका उद्देश्य विज्ञान विषय-वस्तु पढ़ाना मात्र ही नहीं उसके द्वारा वैज्ञानिक विधि प्रशिक्षण देना है।
  2.  शिक्षक ऐसी परिस्थितियों का सृजन शिक्षक के साथ वैज्ञानिक विधि सतत् उपयोग करते हुए विज्ञान अध्ययन करें।
  3. अध्यापक का व्यवहार जनतान्त्रिक एवं बालक द्वारा करने यदि बालक प्रयोग की रूपरेखा निर्माण एवं क्रियान्वयन की स्वतन्त्रता नहीं होगी तो वैज्ञानिक विधि का प्रशिक्षण सम्भव नहीं होगा।
  4.  विज्ञान शिक्षण की विभिन्न विधियों जैसे—प्रयोग, प्रदर्शन विधि, प्रयोगशाला विधि, खोज विधि, समस्या समाधान विधि एवं प्रोजेक्ट विधि का उचित उपयोग करके वैज्ञानिक विधि का प्रशिक्षण दिया जा सकता है। प्रयोग प्रदर्शन विधि में अध्यापक छात्रों के सम्मुख समस्या रखकर विचार-विमर्श द्वारा उसे परिभाषित करता है, प्राक्कल्पना निर्माण करता है, उपयुक्त प्रयोग की रूपरेखा बनाता है, प्रयोग प्रदर्शित करता है, प्रेक्षणों की व्याख्या करता है एवं समस्या का हल निकालता है। इसी प्रकार अन्य विधियों में बालक स्वयं ये क्रियाएँ करते हैं एवं अध्यापक उन्हें सहायता पहुँचाता है। उदाहरणार्थ, प्रयोगशाला विधि में यदि शिक्षक प्रयोग का उद्देश्य समस्या के रूप में प्रस्तुत करे तो वैज्ञानिक विधि के चरणों का उपयोग करते हुये ओम के नियमों का प्रतिपादन कर सकेंगे ।
  5. शिक्षक विषय-वस्तु के शिक्षण में धैर्यपूर्वक सतत् प्रयास करें एवं जब भी सम्भव हो बालकों को बार-बार ऐसी परिस्थितियों में रखें कि वे वैज्ञानिक विधि के चरणों से गुजरते हुए वांछित कौशल विकसित कर सकें।

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