pragmatism | प्रयोजनवाद किया है ?

प्रयोजनवाद / pragmatism को मोटे तौर पर कहा जा सकता है किया एक सिद्धांत है जिसमें समस्त विचार प्रक्रिया मैं सत्य की जांच व्यवहारिक परिणामों से करता है। इसे उपयोगितावाद व्यवहारवाद फलवाद प्रयोगवाद आदि नामों से भी जाना जाता है। शैक्षणिक दर्शन के रूप में प्रयोजन बाद एक नई आधुनिक विचारधारा है जिसमें बालकों का सामाजिक प्राणी के साथ-साथ एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण दिया जाता है।

शिक्षा में प्रयोजनवाद

प्रयोजनवाद

प्रयोजनवाद व उद्देश्य

1. बालक अपने मूल्यों का आदर्शों का निर्माता

:- प्रयोजनवाद के अनुसार बालक स्वयं अपने मूल्यों और उद्देश्यो एवं आदर्शों का निर्माता है। प्रयोजनवाद शिक्षा का अर्थ यह है कि बालक स्वयं अपना निर्माण करें।

2. गतिशील व लचीले मस्तिष्क का विकास

:- प्रयोजनवादी बालक की आवश्यकताओं इच्छाओं और रूचियों को महत्व देता है। शिक्षा का यह कार्य है कि बालक को ऐसी स्वतंत्र वातावरण दिया जाए कि उसमें वह अपनी मूल योग्यताओं का विकास कर सके।

3. छात्र का विकास

:- प्रयोजनवादियों के अनुसार शिक्षा का उद्देश्य छात्रों का विकास करना है । जिसमें उसकी मस्तिष्क उसके लक्षण दिशा निर्धारण का कार्य होना चाहिए।

4. गतिशील निर्देशन

:- प्रयोजनवादियों के अनुसार शिक्षा का एक उद्देश्य छात्रों का गतिशील निर्देशन है। इसका अर्थ है कि आज के आधुनिक युग में बालकों के लिए आवश्यक है कि उसके लिए गतिशील निर्देशन की व्याख्या की जाए

5. सामाजिक कुशलता

:- प्रयोजनवाद शिक्षा के सामाजिक कार्यों पर बल देते हैं। इस दृष्टिकोण से शिक्षा का उद्देश्य है कि बालकों में सामाजिक कुशलता के गुणों का निर्माण किया जाए।

प्रयोजनवाद व शिक्षण विधियां

1. सीखने का उद्देश्य पूर्ण प्रक्रिया का सिद्धांत

:- प्रयोजनवाद यह चाहता है कि दूसरों को दिए गए ज्ञान को सफलतापूर्वक ग्रहण करें और भावी समस्याओं के लिए तैयार रहें। जिसमें सीखने की प्रक्रिया को उद्देश्य पूर्ण बताया है। जैसे बालक की इच्छाएं रुचियां रुझान इत्यादि उद्देश होने चाहिए।

2. क्रिया या अनुभव द्वारा सीखने का सिद्धांत

:- प्रयोजनवाद विचार करने के बजाए कार्य पर बल देता है। जिसमें यह कहता है कि शिक्षा से पढ़ाया नहीं जाए बल्कि सामान्य ज्ञान से संबंधित हो इस प्रकार प्रत्येक बालक की शिक्षा का सर्वोत्तम भाग वह है जो बालक स्वयं कार्य करके प्राप्त करता है जिसको कहते हैं करके सीखो। सभी विषयों को उन परिस्थितियों में रखा जाए जिसमें बालक का अनुभव एवं स्वयं के द्वारा सीखता है।

3. सीखने की प्रक्रिया के एकीकरण का सिद्धांत

:- प्रयोजन वादियों के अनुसार सीखना निरंतर होना चाहिए। उनका कहना है कि ज्ञान के अनेक पहलू हैं। ज्ञान के सभी पहलुओं में एकीकरण का गुण होता है। जिसे बालक बांट बांट कर सकते हैं या टुकड़ों मैं विषयों की सूचनाओं को प्राप्त करते हैं। इसी सीखने की प्रक्रिया को एकीकरण का सिद्धांत कहते हैं। जिसमें बालक सभी विषयों रुचियां में समन्वय स्थापित करना सीखता है।

4. सिद्धांतों का व्यवहारिक रूप

:- प्रयोजन प्राचीन विधियों का निष्क्रिय और असंतुष्ट मानता है। उनका कहना है कि बालक को स्वतंत्र छोड़कर सभी विषयों का व्यवहारिक ज्ञान देना चाहिए जिसमें वह भाग लेकर शिक्षा दौरा समस्या समाधान विधियों का प्रयोग करें।

प्रयोजनवाद और पाठ्यक्रम

1. उपयोगितावाद व सिद्धांत

:- प्रयोजनवादी मनुष्यों के उद्देश्य और इच्छाओं के पूर्ति पर बल देता है। इसलिए वह कहता है कि पाठ्यक्रम में वैसे विषय होना चाहिए जो बालक को वर्तमान और भावी जीवन के लिए तैयार करता हो। उसके अनुसार पाठ्यक्रम में भाषा स्वास्थ्य विज्ञान शारीरिक प्रशिक्षण गणित भूगोल विज्ञान आदि बालकों के लिए यह सभी विषय होने चाहिए। वही प्रयोजनवाद में बालिकाओं के लिए गृह विज्ञान इत्यादि विषयों को पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है। इसका स्थान पर बालकों के लिए एक और विषय जोड़ा गया है जिसमें उन्हें कृषि प्रशिक्षण दिया जा सके जो उसके लिए उपयोगी हो जिसे हम उपयोगितावाद का सिद्धांत कहते हैं।

2. बालक की रूचि का सिद्धांत

:- प्रयोजनवादियों ने पाठ्यक्रम के रचना करते समय इस बात का ध्यान रखा प्रारंभिक विद्यालय के छात्रों की खोज रचना कला प्रदर्शन और बातचीत में रुचि होती है। उसके आधार पर पाठ्यक्रम में विषयों को रखना चाहिए। लिखना गिनना ड्राइंग करना पेंटिंग करना डांसिंग करना इत्यादि विषय

3. बालक के अनुभव का सिद्धांत

:- प्रयोजनवादियों का कहना है कि पाठ्यक्रम बालकों के अनुभव भावी व्यवसायो और क्रियाओं के साथ घनिष्ठ संबंध होने चाहिए। बालक अपनी इच्छाओं के द्वारा सीखने के लिए प्रेरित हो साथ ही साथ विद्यालय में पढ़ाए जाने वाले सामान्य विषयों को को भी शामिल किया जाए जो सामाजिक विषयों का भी अध्ययन करें।

प्रयोजनवाद व शिक्षक

:- प्रयोजनवादी अपनी शिक्षा में बालक और उसकी क्रियाएं रुचियों रुझान वादे को प्रमुख स्थान देते हैं इसके बावजूद शिक्षा का भी स्थान कम नहीं देते हैं। उनकी शिक्षा योजना में शिक्षा का स्थान पथ प्रदर्शक सलाहकार का है जो उसके सामाजिक परिस्थितियों में बालक के व्यक्तिगत सामंजस का कार्य करेंगे। उनके अनुसार शिक्षक बालक के उचित समस्याओं का उचित समय पर समाधान करेंगे।                                                                                                                                                                                                     बालक के रुचियों को प्रेरित करते हुए उसके समस्याओं का कुशलतापूर्वक बुद्धिमानी से बालक का सहयोग करेंगे और एक सही दिशा निर्देशक का काम करेंगे

प्रयोजनवाद व विद्यालय

प्रयोजनवादी शिक्षा को सामाजिक प्रक्रिया मानते हैं। उनका मत है कि शिक्षाएं समाज की नई रूपरेखा है। अतः वह शिक्षा संस्थान को सामाजिक संस्थान मानते हैं। उनका कहना है कि विद्यालय समाज का छोटा रूप है लघु रूप जॉन डेवी उनका कहना है कि विद्यालय ऐसे होने चाहिए जिसमें अनुशासन सरलता शुद्धता एवं विभिन्न तत्वों के बीच आपसी संतुलन स्थापित होने चाहिए। जब विद्यालय ऐसा होगा तभी बालकों को समाज में रहना कार्य करना और आधुनिक विषमताओं के बीच अपनी क्षमताओं का उपयोग करना सीखेंगे।

प्रयोजनवाद व मूल्यांकन

  1. प्रयोजनवाद बालकों को व्यवहारिक जीवन के लिए तैयार करता है।
  2. यह सामाजिक और लोकतांत्रिक शिक्षा है क्योंकि यह स्वतंत्रता समानता आदि गुणों को विकास करता है।
  3. इसमें विचार क्यों अपेक्षा क्रिया को प्रधानता दी गई है
  4. विचार व्यवहार के अधीन बनता है इसलिए इसमें क्रिया पर बल दिया गया है।
  5. प्रयोजनवाद (Project Method) योजना विधि इत्यादि विधियों पर बल देता है।
  6. प्रयोजनवाद शिक्षा दर्शन को कई नई बातें दी है। जैसे क्रिया प्रधान पाठ्यक्रम प्रगतिशील शिक्षा नवीन शिक्षा ( New Education ) संगठित इकाई इत्यादि

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