What is motivation ? | अभिप्रेरणा किया है ? | प्रेरणा किया है ?

प्रस्तावना 

:- (What is motivation ? ) प्रेरणा जिसको के अन्य नाम अभिप्रेरणा ( motivation ) से भी जाना जाता है। यह एक प्रकार की शक्ति अथवा बल अर्थात ऊर्जा है जब मानव व्यवहार को क्रियाशील बनाती है। प्रेरणा ही व्यक्ति को ड्राइव की स्थिति में लाती है। प्रेरणा ही व्यक्ति के व्यक्तित्व शैक्षिक एवं सामाजिक व्यवहार को सुनिश्चित करती है। 

What is motivation

 

What is motivation ? | अभिप्रेरणा किया है ? | प्रेरणा किया है ?

प्रेरणा का अर्थ

:- प्रेरणा व्यक्ति को क्रियाशील बनाती है तथा नवीन के लिए हों अथवा कार्यों को सीखने की प्रेरणा देते हैं। किसी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को निरंतर क्रियाशील बनाए रखते हैं तथा व्यवहार पर नियंत्रण रखते हैं।

प्रेरणा की परिभाषा

Good  महोदय के अनुसार

“ क्रिया  को उत्तेजित करने निरंतर जारी रखने और नियंत्रण में रखने की प्रक्रिया ही प्रेरणा है। ”

Woodworth  महोदय के अनुसार

“ प्रेरणा व्यक्ति के वह दशा है जो उसे निश्चित व्यवहार करने तथा निश्चित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए उत्तेजित करते हैं।”

प्रेरणा की विशेषता

1. व्यवहार का संचालन प्रेरणा के कारण ही होता है।

2. प्रेरणा व्यक्ति के व्यवहार को जागृत या उत्तेजित करती है।

3. प्रेरणा व्यवहार में क्रियाशीलता की स्रोत है।

4. प्रेरणा साधन है साध्य नहीं। 

5. प्रेरणा व्यक्ति के अंदर ऊर्जा का संचालन करती है।

प्रेरणा के प्रकार

प्रेरणा के प्रकार

प्रेरणा दो प्रकार की होती है।

आंतरिक प्रेरणा

:- आंतरिक प्रेरणा से अभिप्राय जीव अथवा मानव की वह आंतरिक शक्ति अथवा ऊर्जा जो उसके व्यवहार को जागृत करती है अथवा उत्तेजित करती है। आंतरिक प्रेरणा का मुख्य स्रोत है आवश्यकता चालक प्रलोभन प्रणोदन तथा प्रेरक।

बाह्य प्रेरणा

:-वह बाह्य शक्ति अथवा ऊर्जा अथवा वह बल जो जी बता व्यक्ति को व्यवहार करने के लिए उत्तेजित करती है अथवा प्रोत्साहित करती है तथा लक्ष्य प्राप्ति में सहायक होती है। बाह्य प्रेरणा के मुख्य स्रोत है प्रशंसा पुरस्कार निंदा प्रताड़ना प्रोत्साहित आदि

प्राय: औपचारिक शिक्षा के संदर्भ में वह प्रेरणा का अत्याधिक महत्त्व है। किंतु अधिगम के संदर्भ में आंतरिक प्रेरणा है अत्यधिक महत्वपूर्ण है। बाह्य प्रेरणा तो मात्र आंतरिक प्रेरणा को जागृत करने का एक साधन है।

प्रेरणा के प्रमुख स्रोत या घटक

अभिप्रेरणा के चार घटक अथवा कारक होते हैं जो निम्नलिखित हैं:-

1. आवश्यकता

:- जैवकीय दृष्टि से आवश्यकता एक प्रकार की दैहिक असंतुलन अथवा कमी की ओर संकेत करती है जो जीव में तनाव की स्थिति उत्पन्न करती है। प्रत्येक जीव अथवा प्राणी को स्वयं को जीवित रखने के लिए दो प्रकार की आवश्यकताएं होती है।

1. जैवकीय आवश्यकता

:- भोजन , जल , वायु , निंद्रा , यौन , क्रिया तथा मल मूत्र त्याग यह 6 मूलभूत आवश्यकता ही है।

2. मनोसामाजिक आवश्यकता

:- सुरक्षा ,  स्नेह ,  प्यार , सम्मान अभिव्यक्ति तथा सामाजिक स्वीकृति।

2. चालना /चालक/प्रणोद/ अंतरनोद ( Drive )

:- शब्द चालना के संदर्भ में अन्य शब्द भी हैं। जैसे चालक प्रणोद अंतरनोद आदि का भी प्रयोग किया जाता है।चालना यार ड्राइवर आवश्यकता पर निर्भर कारक है क्योंकि आवश्यकता हीं प्राणी को चालना अर्थात क्रियाशीलता की अवस्था में ले जाती है। अन्य शब्दों में चालना किसी आवश्यकता को पूरी करने अथवा दूर करने के लिए व्यवहार को क्रियाशील बनाती है। आवश्यकता शारीरिक होती है जबकि चालना व्यवहार से संबंधित होती है। जैसे भोजन भूखे प्राणी की शारीरिक आवश्यकता है। भोजन को प्राप्त करने के लिए प्राणी द्वारा की गई गतिविधियां अर्थात भोजन की खोज करना चालना है।

3. प्रलोभन या प्रणोदक ( Insentive )

:- जिस वस्तु के फल स्वरुप आवश्यकता तथा चालना की समाप्ति होती है वह प्रलोभन प्रोत्साहन अथवा प्रणोदक कहलाता है। पर लोग अनेक प्रकार की उद्दीपक है जो चालना या चालक को संतुष्टि प्रदान करता है तथा प्रेरक के रूप में कार्य करता है। प्रलोभन एक प्रकार की लक्ष वस्तु है जिसे प्राप्त करने के लिए जीव  प्रेरित होता है। स्पष्ट है कि आवश्यकता चालना प्रलोभन तीनों ही परस्पर क्रमिक रूप से संबंधित है। आवश्यकता चालना को जन्म देती है और चालना प्रलोभन को।

आवश्यकता→ चालना→ प्रलोभन

4. प्रेरक ( Motives )

प्रेरक या प्रणोदक या अभीप्रेरक कार्य करने की एक प्रवृत्ति है जो की आवश्यकता अथवा चालना से प्राप्त होती है। तथा प्रलोभन प्राप्त होने के उपरांत सामान्य स्थिति अथवा समायोजन की स्थिति आने तक समाप्त हो जाती है। प्रेरक क्या है ? इस संदर्भ में मनोवैज्ञानिक एकमत नहीं है। कुछ इन्हें शारीरिक तथा मानसिक दशाएं मानते हैं तो कुछ अन्य शारीरिक आवश्यकता मानते हैं परंतु सभी मनोवैज्ञानिक इस तथ्य पर सहमत है कि प्रेरक प्रणाली को विशिष्ट प्रकार के व्यवहार अथवा क्रिया को करने के लिए उत्तेजित अथवा प्रोत्साहित करते हैं। प्रेरक मुख्यतः तीन प्रमुख कार्य करते हैं। पहला क्रिया को प्रारंभ करता है दूसरा क्रियाओं को गति प्रदान करते हैं और तीसरा उद्देश्य प्राप्ति तक गति को बनाए रखते हैं।

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