Factors Influencing Social Development में शिक्षा मनोवैज्ञानिकों ने कुछ ऐसे कारकों पर भी अपना ध्यान डाला है जिनसे बालकों के सामाजिक विकास पर स्पष्ट एवं विशिष्ट प्रभाव पड़ता है। ऐसे कारकों में निम्नांकित प्रमुख हैं
Factors Influencing Social Development | सामाजिक विकास को प्रभावित करनेवाले कारक
(1) स्कूली वातावरण –
बालकों के स्कूली वातावरण का प्रभाव उनके सामाजिक विकास पर सीधा पड़ता है। यदि स्कूल का वातावरण ऐसा है जिसमें शिक्षक प्रजातंत्रात्मक ढंग से बालकों के साथ पेश आते हैं तथा बालकों में पाठ्येतर कार्यक्रमों पर भी आवश्यकतानुसार बल डालते हैं तो इससे बालकों का सामाजिक विकास तेजी से होता है क्योंकि उनमें सामाजिक शीलगुणों का उचित विकास हो जाता है।
(2) बालकों की पालन-पोषण प्रणाली
– बालकों में सामाजिक विकास उनके पालन-पोषण द्वारा अधिक प्रभावित होता है। विभिन्न समाज एवं संस्कृति में बालकों के पालन-पोषण की प्रणाली अलग-अलग होती है। कुछ मनोवैज्ञानिकों का विचार है कि जिन बालकों की देखरेख उनके माता-पिता द्वारा स्वयं की जाती है, उनमें सामाजिक नियमों को सीखने तथा उनके अनुरूप व्यवहार करने की तीव्र प्रेरणा होती है। फलस्वरूप, ऐसे बालकों का सामाजिक विकास तीव्र एवं संतोषजनक होता है। दूसरी तरफ जिन बालकों के पालन-पोषण में माता-पिता द्वारा उचित दुलार प्यार नहीं दिया जाता है तथा जिनकी देखरेख स्वयं माता-पिता द्वारा न होकर किसी दूसरे व्यक्ति द्वारा की जाती है, तो उनमें सामाजिक विकास धीमी एवं मंद गति से होती दिखाई पड़ती है। ऐसे बालकों एवं किशोरों में अधिक उम्र हो जाने के बाद भी सामाजिक विकास का लक्षण बहुत अधिक स्पष्ट रूप से नहीं दिखाई पड़ता है।
(3) भाषा (Language)
– सामाजिक विकास पर भाषा का भी उचित प्रभाव पड़ता है। भाषा द्वारा बालक अपनी इच्छाओं, आवश्यकताओं आदि को दूसरों तक पहुंचाता है तथा दूसरे की इच्छाओं एवं आवश्यकताओं को समझने की कोशिश करता है। हरलॉक (Hurlock, 1978) ने यह बताया है कि भाषा बालकों को उपयुक्त सामाजिक व्यवहार उपयुक्त सामाजिक परिस्थिति में करने में मदद करती है। स्कूल में बालकों को शिक्षक भिन्न-भिन्न प्रकार के शिष्टाचार की बातें भाषा के माध्यम से बतलाते हैं। किस परिस्थिति में किस प्रकार का सामाजिक व्यवहार करना चाहिए, को शिक्षा बालकों को घर में माता-पिता भाषा के ही माध्यम से देते हैं। स्पष्ट है कि भाषा के माध्यम से सामाजिक विकास की प्रक्रिया तेजी से सम्पन्न होती है।
(4) प्रचार के माध्यम (Means of propaganda)
– बालकों के सामाजिक विकास (social development) पर प्रचार के भिन्न-भिन्न माध्यमो, जैसे रेडियो, टेलीविजन, सिनेमा, अखबार, मैगजीन आदि का भी प्रभाव पड़ता है। इन माध्यमों द्वारा भिन्न-भिन्न सामाजिक पहलुओं पर अपने-अपने ढंग से जोर डाला जाता है। बालकों को इन माध्यमों से तरह-तरह की बातें बताई जाती हैं। इन सभी बातों का वे तुलनात्मक अध्ययन एवं विश्लेषण करते हैं जिससे उनमें सामाजिक सुझ (social insight) भी विकसित हो जाती है जो विभिन्न तरह के सामाजिक व्यवहार सीखने में मदद करती है। इतना ही नहीं, प्रचार के कुछ माध्यमों, विशेषकर टेलीविजन तथा सिनेमा के माध्यम से बालक तथा किशोर जो देखते है, उसका अनुकरण कर वैसा ही व्यवहार अपने जीवन में करना प्रारंभ कर देते हैं। ऐसा करते-करते वे कई नए-नए सामाजिक व्यवहारों को सीख लेते हैं और इस तरह उनका सामाजिक विकास तीव्रता से होने लगता है।
(5) सामाजिक मनोवृत्ति (Social attitude)
– बालकों के सामाजिक विकास पर सामाजिक मनोवृत्ति का भी प्रभाव पड़ता है। जिन बालको की सामाजिक मनोवृत्ति भिन्न-भिन्न तरह की सामाजिक घटनाओं एवं समस्याओं के अनुकूल होती है, उनकी सामाजिक मान्यता अधिक बढ़ जाती है। फलस्वरूप, उन्हें सामाजिक अभियोजन (social adjustment) करने में काफी मदद मिलती है। इस तरह का समायोजन करने में वे अनेक तरह के सामाजिक व्यवहार करना सीख लेते हैं जिससे उनमें सामाजिक विकास तीव्रता से होता है। बालकों की सामाजिक मनोवृत्ति अनुकूल नहीं रहने पर उसकी सामाजिक मान्यता कम हो जाती है। फलस्वरूप वह किसी नए सामाजिक व्यवहार को सीखने में कोई तत्परता नहीं दिखाता। इससे उसका सामाजिक विकास मंद हो जाता है।
(6) सामाजिक वंचन (Social deprivation)
– जब बालक को अन्य साथियों एवं व्यक्तियों से मिलने-जुलने का अवसर नहीं दिया जाता है तो इससे उनका सामाजिक विकास पर बुरा प्रभाव पड़ता है तथा इस स्थिति को सामाजिक वंचन (social deprivation) कहा जाता है। बालकों में सामाजिक वंचन का सबसे प्रमुख कारण माता-पिता द्वारा अपने बालकों को समाज के अन्य बालको के साथ न मिलने-जुलने देना होता है। सामाजिक वंचन सामान्यतः दो प्रकार का होता है – लघु सामाजिक वचन तथा दीर्घ सामाजिक वंचन लघु सामाजिक वंचन में बालकों को कुछ दिनों के लिए अन्य साथियों या लोगों से मिलने-जुलने नहीं दिया जाता जबकि दीर्घ सामाजिक वंचन में बालकों को वर्षों तक अन्य लोगों से मिलने-जुलने नहीं दिया जाता। लघु सामाजिक वंचन तो बालकों के सामाजिक विकास पर उतना बुरा प्रभाव नहीं डालता है परंतु दीर्घ सामाजिक वंचन से बालकों का सामाजिक विकास बुरी तरह से प्रभावित होता है तथा बालकों में असामाजिक शीलगुण विकसित होने की संभावना बढ़ जाती है।
(7) अति निर्भरता (Overdependency)
– 5 साल की उम्र से नीचे के बालक तो अपने अधिकतर काम के लिए दूसरे बालकों या माता-पिता पर निर्भर रहते ही हैं। परंतु, जैसे-जैसे उनकी उम्र बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे उनमें स्वयं काम करने की क्षमता परिपक्व (mature) होती जाती है और वे आत्मनिर्भर होते जाते हैं। जैसे 8 साल का बालक, विलियम तथा बेस्ट (William & Best, 1980) के अध्ययन के अनुसार, 80% काम के लिए आत्मनिर्भर रहता है परंतु यदि इस उम्र में ही बालक अपने अधिकतर काम के लिए दूसरे बालकों या माता-पिता पर ही बिलकुल छोटे बालक के समान निर्भर रहता है, तो इसे अति निर्भरता कहा जाता है। प्रयोगात्मक अध्ययनों से यह पता चला है कि ऐसे अति निर्भर बालक अत्यधिक परामर्शग्राही हो जाते हैं और इन्हें अपनी टोली (gang) के अन्य सदस्यों द्वारा अधिक सामाजिक मान्यता (social (acceptance) नहीं मिल पाती है। ऐसे बालकों का सामाजिक विकास बुरी तरह प्रभावित हो जाता है। स्पष्ट है कि बालकों का सामाजिक विकास कई कारकों पर निर्भर करता है। इन कारकों पर उचित ध्यान देकर शिक्षक तथा माता-पिता बालकों के सामाजिक विकास (social development) को सही दिशा दे सकते हैं।
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