Mental Development in Later Childhood या उत्तर बाल्यावस्था (later childhood) की अवस्था 6 साल से प्रारंभ होकर 12-13 साल तक की होती है। इस अवस्था में बालकों का किसी स्कूल में दाखिला हो जाता है। उनके साथियों का एक अपना समूह (peer group) होता है। उनका सामाजिक विकास अधिक मजबूत हो जाता है जिससे उनका मानसिक विकास भी अत्यधिक प्रभावित होता है।
Mental Development in Later Childhood | उत्तर वाल्यावस्था में मानसिक विकास
Mental Development in Later Childhood के प्रमुख पहलू इस प्रकार हैं
1. ठोस एवं संक्रियात्मक चिंतन (Concrete and operational thinking)
– इस अवस्था में बालक एवं बालिकाओं के मानसिक विकास पर शिक्षकों, पुस्तकों एवं साथियों का प्रभाव अधिक पड़ने लगता है। फलस्वरूप उनका चिंतन पहले से अधिक तर्कसंगत (logical) एवं ठोस (concrete) हो जाता है। इनके चिंतन में पलटावी गुण (reversibility) उत्पन्न हो जाता है। वे अब समझने लगते हैं कि 12 इंच = 1 फीट होता है और 1 फीट में 12 इंच होते हैं। इनमें दी गई वस्तुओं का वर्गीकरण (classification) तथा उनके क्रमसूचक संबंधों (ordinal relationship) को भी समझने की क्षमता विकसित हो जाती है। फिर इस अवस्था में बालकों के चिंतन में क्रमबद्धता (systematisation) नहीं पाई जाती है। किसी समस्या के समाधान पर वह सभी तरह संभावित तार्किक समाधान (logical solutions) पर चिंतन नहीं कर पाता है।
2. जीवन-मृत्यु का संप्रत्यय (Concept of life and death)
– इस अवस्था में बालकों में जीवन-मृत्यु का संप्रत्यय पहले से अधिक तीक्ष्ण (sharpen) एवं यथार्थ हो जाता है। अब बालक मात्र गति (movement) के आधार पर किसी चीज को जीवित कहना ठीक नहीं समझते हैं। वे अब जीवित एवं अजीवित में सार्थक रूप में अंतर करने में समर्थ होते हैं। मृत्यु की अंतिमता (finality) को भी अब वे समझने लगते हैं तथा उसके साथ होनेवाले संवेगात्मक अनुभूति (emotional (experiences) से वे पूर्णतः अवगत हो जाते हैं।
3. मृत्यु के बाद जीवन का संप्रत्यय (Concept of life after death)
– इस अवस्था में बालकों के मानसिक विकास की एक विशेषता यह भी है कि बालक अब समझते हैं कि मृत्यु के बाद व्यक्ति या जीव का फिर एक दूसरी जिंदगी प्रारंभ होती है। मनोवैज्ञानिक अध्ययनों से यह पता चला है कि यह मूलतः उन बालकों में विकसित होता है जिसके माता-पिता धार्मिक उपदेश अपने बच्चों को अधिक देते हैं।
4. मुद्रा संबंधी संप्रत्यय (Concept of money)
– इस अवस्था में बालक मुद्रा संबंधी संप्रत्यय भी विकसित कर लेते हैं। बालकों को माता-पिता स्कूल जाते समय कुछ रुपया-पैसा अकसर दे दिया। करते हैं जिनका महत्त्व समझकर वे मुद्रा संबंधी संप्रत्यय विकसित कर लेते हैं। मनोवैज्ञानिक अध्ययनों से यह साबित हो गया है कि इस ढंग का संप्रत्यय उन बालकों में तेजी से विकसित होता है जो निम्न सामाजिक आर्थिक स्तर के होते हैं।
मनोवैज्ञानिक अध्ययनों से पता चलता है कि इस अवस्था में बालकों के मानसिक विकास का स्तर इस ऊँचाई तक पहुँच जाता है कि वे स्पष्ट रूप से इंच, फौट, वर्ग फौट, मौल, मीटर तथा किलोमीटर का अर्थ समझने लगते हैं। 9-10 साल की अवस्था तक बालक 1,000 तक की संख्या का अर्थ भी समझने लगते हैं। उनमें अब दिन, तारीख, मास, और वर्ष ठीक-ठीक बता सकने की क्षमता विकसित हो जाती है। 11 साल की उम्र होने पर उनका मानसिक विकास इस स्तर तक हो जाता है कि उन्हें काल्पनिक कथाओं एवं बेमेल चीजों में विश्वास कम होने लगता है। तथा 12-13 साल की उम्र होते-होते उनमें योजना (planning) बनाकर काम करने की प्रवृत्ति अधिक होती है। अपने रोजमर्रे की चीजों को सही-सलामत ढंग से रखने विकसित हो जाती है। इतना होते हुए भी रोजेन्बर्ग (Rosenberg. 1988) ने अपने अध्ययन में तीव्र प्रवृत्ति उनमें पाया कि इस अवस्था में लड़कों एवं लड़कियों में दूरदर्शिता (foresightedness) का सर्वथा अभाव पाया जाता है।
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