MATH Pedagogy notes in hindi | math pedagogy notes Pdf Download

MATH Pedagogy notes in Hindi :- CTET EXAM के Question Paper HINDI में हिंदी से 30 question पूछे जाते है जो पेपर 1 और पेपर 2 दोनों में पूछे जाते है जिसमें 15 question math Content से होतें है तथा 15 question math Pedagogy होतें है CTET सिलेबस के अनुसार कुछ टॉपिक math Pedagogy Notes in Hindi में है जो नीचे बताया गया है 

MATH Pedagogy Notes In Hindi

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गणित का अर्थ

गणित की प्रकृति :-

गणित एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण विषय है। अतः इसकी शिक्षा का आदान-प्रदान या हस्तान्तरण करने से पहले यह जानना आवश्यक तथा महत्त्वपूर्ण है कि ‘गणित क्या है? ‘इसकी शिक्षा क्यों दी जाए? तथा इसकी प्रकृति कैसी है? सामान्यतः गणित की अनेक परिभाषाएँ दृष्टिगोचर होती हैं।

उदाहरण के लिए कोई गणित को गणनाओं का विज्ञान कहता है, कोई संख्याओं तथा स्थान के विज्ञान के रूप में परिभाषित करता है तथा कोई मापन (माप-तौल), मात्रा और दिशा (आकार-प्रकार) को विज्ञान के रूप में स्पष्ट करता है। वास्तव में, गणित का शाब्दिक अर्थ होता है-“वह शास्त्र जिसमें गणनाओं की प्रधानता हो।” इस प्रकार गणित के सम्बन्ध में दो गई मान्यताओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि गणित-“अंक, अक्षर, चिह्न आदि संक्षिप्त संकेतों का वह विज्ञान है जिसकी सहायता से परिमाण, दिशा तथा स्थान का बोध होता है।” गणित विषय का आरम्भ गिनती से ही हुआ है और संख्या पद्धति इसका एक विशेष क्षेत्र है जिसकी सहायता से गणित की अन्य शाखाओं को विकसित किया गया

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MATH Pedagogy notes in hindi कुछ महत्त्वपूर्ण परिभाषाएँ

 

मार्शल, एच. स्टोन के मतानुसार– “गणित ऐसी अमूर्त व्यवस्था का अध्ययन है, जो कि अमूर्त तत्वों से मिलकर बना है। इन तत्वों को मूर्त रूप में परिभाषित किया गया है।”

बटुण्ड रसेल ने गणित को परिभाषित करते हुए लिखा है कि “गणित एक ऐसा विषय है जिसमें हम यह भी नहीं जानते कि हम किसके बारे में बात कर रहे हैं और न ही यह जान पाते हैं कि हम जो कह रहे हैं, वह सत्य है।”

गैलीलियो महोदय ने गणित के महत्व को स्पष्ट करते हुए गणित को इस प्रकार परिभाषित किया है- “गणित वह भाषा है जिसमें परमेश्वर ने सम्पूर्ण जगत या ब्रह्माण्ड को लिख दिया है।”

लॉक के मतानुसार- “गणित वह मार्ग है जिसके द्वारा बच्चों के मन या मस्तिष्क में तर्क करने की आदत स्थापित होती है।” उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर गणित के सम्बन्ध में हम कह सकते हैं कि

  1. गणित स्थान तथा संख्याओं का विज्ञान है।
  2. गणित गणनाओं का विज्ञान है।
  3. गणित माप-तौल (मापन), मात्रा (परिमाण) तथा दिशा का विज्ञान है।
  4. गणित विज्ञान की क्रमबद्ध संगठित तथा यथार्थ शाखा है।
  5. इसमें मात्रात्मक तथ्यों और सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है।
  6. यह विज्ञान का अमूर्त रूप है।
  7. यह तार्किक विचारों का विज्ञान है।
  8. गणित के अध्ययन से मस्तिष्क में तर्क करने की आदत स्थापित होती है।
  9. यह आगमनात्मक तथा प्रायोगिक विज्ञान है।
  10. गणित वह विज्ञान है जिसमें आवश्यक निष्कर्ष निकाले जाते हैं।

MATH Pedagogy notes in hindi गणित का पाठ्यक्रम में स्थान

शिक्षा में किसी भी विषय का महत्व एवं स्थान इस बात पर निर्भर करता है कि यह विषय शिक्षा के उद्देश्यों को प्राप्त करने में किस सीमा तक सहायक हो रहा है। यदि कोई विषय शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति में अधिक सहायक सिद्ध होता है तो उस विषय की महत्ता अधिक हो जाती है। प्राचीन काल से ही गणित अन्य विषयों की अपेक्षा शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति में अधिक सहायक सिद्ध हुआ है। वर्तमान समय विज्ञान तथा तकनीकी का युग है। इस युग में जो भी भौतिक एवं तकनीको प्रगति विज्ञान के कारण हुई है। उसका श्रेय गणित को ही दिया जाना चाहिए। इतना महत्त्वपूर्ण विषय होते हुए भी पाठ्यक्रम गणित को क्या स्थान दिया जाना चाहिए इस पर अधिक विचार-विमर्श की आवश्यकता नहीं हैं विद्यालय पाठ्यक्रम में गणित की शिक्षा दसवीं कक्षा (माध्यमिक स्तर) तक अनिवार्य विषय बनाने के सम्बन्ध में कोठारी कमीशन ने स्पष्ट किया कि “गणित को सामान्य शिक्षा क अन्तर्गत सभी विद्यार्थियों के लिए पहली कक्षा से लेकर दसवीं कक्षा तक एक अनिवार्य विषय बना देना चाहिए।” परन्तु कुछ लोग अभी भी गणित को आठवीं कक्षा तक अनिवार्य तथा इसके बाद ऐच्छिक (Optional) विषय बनाने पर जोर देते हैं। गणित को माध्यमिक स्तर तक अनिवार्य विषय न बनाए जाने के लिए विरोधी पक्ष द्वारा निम्न कारण स्पष्ट किए गए

  1. यह बहुत हो जटिल विषय है जिसके सीखने के लिये एक विशेष प्रकार की बुद्धि और मस्तिष्क की आवश्यकता है। अतः सभी बच्चों को गणित की शिक्षा ग्रहण करने में कठिनाई होगी।
  2. गणित के अध्ययन से सभी मानसिक शक्तियों, अनुशासन, सांस्कृतिक, सामाजिक तथा नैतिक विकास होने की बात कल्पना मात्र ही है।
  3. अन्य विषयों की अपेक्षा हाई स्कूल परीक्षा में अनुत्तीर्ण होने वाले छात्रों की संख्या गणित विषय में सर्वाधिक होती हैं।
  4. उच्च कक्षाओं में भी गणित का ज्ञान उन्हीं छात्रों के लिए उपयोगी रहता है जो कि भौतिकशास्त्र, रसायनशास्त्र अथवा गणित को ही अपने अध्ययन का विषय रखना चाहते हैं। इसीलिए शेष छात्रों के लिए गणित के ज्ञान की कोई आवश्यकता नहीं रहती।
  5. प्रत्येक विद्यार्थी न तो इंजीनियर ही बन पाता है और न ही मिस्त्री, फिर सभी के लिए गणित की अनिवार्यता का क्या लाभ है? इस प्रकार गणित को माध्यमिक स्तर (कक्षा दस) तक अनिवार्य विषय न बनाए जाने के समर्थन में विरोधी पक्ष द्वारा दिए गए उपरोक्त मत वास्तव में निराधार ही प्रतीत होते हैं। गणित के महत्व पर प्रकाश डालते हुये महान् गणितज्ञ श्री महावीराचार्य जी ने अपनी ‘गणित-सार संग्रह’ नामक पुस्तक में लिखा है कि “लौकिक, वैदिक तथा सामाजिक जो भी व्यापार हैं, उन सभी में गणित का प्रयोग है। अर्थशास्त्र, नाट्यशास्त्र, पाकशास्त्र, कामशास्त्र, छन्द, अलंकार, व्याकरण तथा कलाओं के समस्त गुणों में गणित अत्यन्त उपयोगी है। सूर्य, आदि अन्य ग्रहों को गति, दिशा तथा समय ज्ञात करने गणित का काम पड़ता है। गुण, मात्रा संहिता तथा संख्या आदि से सम्बन्धित सभी विषय गणित पर ही निर्भर हैं।”

सभी महान् शिक्षाविदों, जैसे-हर्बर्ट, पेस्टालॉजी आदि ने भी गणित को मानव विकास का प्रतीक माना है। गणित विषय को बौद्धिक और सांस्कृतिक (Intellectual and Cultural) विकास का सर्वश्रेष्ठ साधन मानते हुए सभी शिक्षाविदों ने गणित को पाठ्यक्रम में सर्वोच्च स्थान प्रदान किया है। इस प्रकार गणित को अनिवार्य विषय बनाने के सम्बन्ध में हम कुछ तर्क दे सकते हैं, जो निम्नलिखित है

  1. यदि गणित विषय को पाठ्यक्रम में उचित स्थान न दिया गया तो बच्चों को मानसिक प्रशिक्षण (Mental Training) के अवसर नहीं मिल सकेंगे जिसके अभाव में उनका बौद्धिक विकास प्रभावित हो सकता है।

गणित की भाषा

गणित शिक्षण में अध्यापक गणितीय संकल्पनाओं की जनकारी देने के लिए और विचारों को स्पष्ट करने के लिए सामान्य बोलचाल की भाषा प्रयोग करता है। भाषा अनुभव को यथाक्रम अन्तस्थ करने में सहायक होती है जिससे अन्ततोगत्वा साकार अनुभव की पुनरावृत्ति किए बिना कल्पना शक्ति से क्रिया करने की क्षमता उत्पन्न होती है। गणित की संकल्पनाओं की शिक्षा देने के लिए प्रथम चरण में बालकों को प्रत्यक्ष साकार वस्तुओं के साथ क्रिया-कलाप के लिए प्रेरित किया जाता हैं फिर साकार वस्तुएँ हटा ली जाती हैं और उन्हें निहित अनुभव का स्पष्ट उपयुक्त वर्णन करने को प्रोत्साहित करते हैं जब तक की उनमें संकल्पना को मौखिक रूप से यथाक्रम अन्तस्थ करने की क्षमता न आ जाए। इस प्रकार भाषा अनुभव (या संकल्पना को संग्रहण करने और समस्या समाधान में सहायक एक साधन है।

गणितीय संकल्पनाओं में प्रभावशाली अधिगम केवल क्रिया-कलापों में दक्षता पा लेने से ही प्राप्त नहीं होता है। यह निर्भर करता है की कहाँ तक अध्यापक भाषा में अभिव्यक्ति और सांकेतिक निरूपण में प्रवीणता उत्पन्न करने में सफल है, जिससे पूर्व अनुभवों पर आधारित संगत अमूर्त नियम या तथ्य प्रस्थापित किए जा सकें। साकार (प्रत्यक्ष) अनुभवों से अमूर्त विचार प्रस्थापित होने तक गणितीय भाषा में व्यक्त वर्णन पर निर्भर है। आज के युग में कोई भी भौतिकशास्त्री (या अन्य कोई वैज्ञानिक) अपने विषय का अध्ययन बिना गणितीय भाषा के व्यापक प्रयोग के नहीं कर सकता। जीव विज्ञान, मनोविज्ञान आदि विषय भी जिनका मूल वर्णन प्रधान हुआ करता था आज गणितीय संकल्पनाओं का अत्यधिक प्रयोग करने लगे हैं। भाषाविद् जो भाषा के स्वरूप और का अध्ययन करते हैं आज इसका अध्ययन करने के लिए गणित का प्रयोग करने लगे हैं।

रोजर वेकन Roger Bacon का कथन है “गणित विज्ञान का प्रवेश द्वार और कुंजी है। गणित को अवहेलना ज्ञान संग्रहमा छक्ति पहुंचाती है क्योंकि जो व्यक्ति गणित ज्ञान से अनभिज्ञ है वह अन्य वैज्ञानिक विषयों और संसार की वस्तुओं का मानसिक पर्यवेक्षण नहीं कर सकता। इससे भी अधिक बुरी बात तो यह है कि यह अज्ञानी व्यक्ति अपनी ही अज्ञानता तक को नहीं पहचानते और न ही उसका कोई उपचार करने का प्रयत्न करते हैं।”

इस प्रकार यह स्पष्ट है कि गणित सम्प्रेषण का एक साधन या माध्यम है। गणित शिक्षा में बालकों द्वारा अनुभव को छ भाषा की कठिनाइयों पर अनेक महत्त्वपूर्ण अध्ययन हुए हैं। गणितीय भाषा के कुछ पक्ष (या गुण) प्रस्तुत करना आवश्यक है।

  1. गणितीय भाषा किसी वस्तु (या संकल्पना) और उसके नाम में अन्तर करती है। जैसे संख्या और संख्यांक भिन्न और भिन्नात्मक संख्याएँ (या परिमेय संख्याएँ) ।
  2. कुछ साधारण भाषा के शब्दों का प्रयोग परिभाषित पदों के रूप में कई बार भिन्न सन्दर्भ में किया जाता है। उदाहरण लिए ‘चर’ का प्रयोग संज्ञा और विशेषण दोनों ही रूप में होता है। शब्द ‘मूल’ का प्रयोग समीकरण के मूल और वर्गमूल घनमूल आदि में होता है।
  3. किसी एक विचार को अनेक प्रकार से नामांकित या व्यक्त कर सकते हैं जैसे कि योग को ‘जोडिए’, ‘मान ज्ञात कीजिए’, ‘कुल कितने’ आदि वाक्यांश से सम्बोधित कर सकते हैं।

4.संक्षेपण (या नामांकन) का प्रयोग करते हैं। यह प्रमाणित चिन्तन में सहायता करते हैं परन्तु कभी-कभी वे मानक रूप में नहीं होते हैं और केवल संगणना की क्रिया विधि में किसी चरण को बचाने के लिए प्रयोग किए जाते हैं। उदाहरण के लिये ग्राम के लिए gm का प्रयोग सही नहीं है। इसी प्रकार cms का प्रयोग भी सही नहीं है।

. EVALUATION IN MATHEMATICS मूल्यांकन का अर्थ

मूल्यांकन Evaluation एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा हम यह जानने का प्रयास करते हैं कि कक्षा अध्यापन द्वारा उद्देश्यों की प्राप्ति किस सीमा तक हुई है, अर्थात् अध्यापक यह देखना चाहता है कि उसके विद्यार्थियों ने प्राप्त ज्ञान को किस सीमा तक समझा हैं, उनकी रुचि तथा व्यवहार में कहाँ तक परिवर्तन हुआ है, उनकी गणित के प्रति अभिरुचि आदि आदि। यह सब मिलाकर ही मूल्यांकन की प्रक्रिया पूर्ण समझी जाती है। बुद्धि का स्तर क्या है इस प्रकार शिक्षा में मूल्यांकन से तात्पर्य उस प्रक्रिया से है जिसमें अध्यापक एक छात्र की शैक्षिक उपलब्धि (Educational Achievement) का पता लगाता है।

इस प्रकार मूल्यांकन का आशय मापन के साथ-साथ मूल्य निर्धारण से है अर्थात् अधिगम-अनुभवों द्वारा विद्यार्थी में अपेक्षित व्यवहारगत परिवर्तन किस सीमा तक हुए? इसका मूल्य निर्धारण (मूल्यांकन) करके निर्णय देना है। अतः मापन मूल्यांकन का ही भाग है तथा सदैव उसमें निहित रहता है। कोठारी आयोग ने अपने प्रतिवेदन में स्पष्ट किया है कि- “मूल्यांकन एक सतत् प्रक्रिया है तथा शिक्षा की सम्पूर्ण प्रक्रिया का अभिन्न अंग है। यह शिक्षा के उद्देश्यों से पूर्णरूप से सम्बन्धित है। मूल्यांकन के द्वारा शैक्षिक उपलब्धि की ही जाँच नहीं की जाती बल्कि उसके सुधार में भी सहायता मिलती है।”

मूल्यांकन से सम्बन्धित कुछ प्रमुख परिभाषाएँ निम्नवत् हैं

 

क्विलेन व हन्ना के मतानुसार

विद्यालय द्वारा बालक के व्यवहार में लाए गए परिवर्तनों के सम्बन्ध में प्रमाणों के संकलन और उनकी व्याख्या करने की प्रक्रिया को मूल्यांकन कहते है।

खन्डेकर के मतानुसार

“मूल्यांकन एक ऐसी क्रमबद्ध प्रक्रिया है जो हमें यह बताती है कि बालक ने किस सीमा तक किन उद्देश्यों को प्राप्त किया है।”

सहस के मतानुसार

“ मूल्यांकन एक ऐसी प्रक्रिया है जिससे सही ढंग से किसी वस्तु का मापन किया जा सकता है। ”

सूवरात के मतानुसार

मूल्यांकन एक सतत् प्रक्रिया है तथा यह बालकों की औपचारिक शैक्षिक उपलब्धि की उपेक्षा करता है। यह व्यक्ति के विकास में अधिक रुचि रखता है। यह व्यक्ति के विकास को उसकी भावनाओं, विचारों तथा क्रियाओं से सम्बन्धित वांछित व्यवहार परिवर्तनों के रूप में व्यक्त करता है।

  • गणित शिक्षण में मूल्यांकन के उद्देश्य

गणित शिक्षण में मूल्यांकन के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं

पाठ्यक्रमक्रम में आवश्यक संशोधन करना।

शिक्षण की समस्याएँ

आजकल अधिकांश विद्यार्थी गणित विषय में उतने निपुण नहीं हैं जितनी कि उनसे आशा की जाती है जिसके मुख्य कारण निम्नलिखित हैं

  1. प्राथमिक स्तर पर छात्रों की गणितीय नींव का कमजोर होना माध्यमिक स्तर पर गणित शिक्षण की एक समस्या यह भी है कि छात्रों का प्राथमिक स्तर पर गणित शिक्षण बहुत कमजोर रूप में होता है। जिस कारण माध्यमिक स्तर पर छात्र गणित को ठीक से नहीं समझ पाते तथा इसी कारण से गणित शिक्षण के प्रति उनकी रुचि कम हो जाती है। जिस कारण माध्यमिक स्तर पर गणित शिक्षण का कार्य सुचारु से नहीं हो पाता। जो माध्यमिक स्तर पर गणित की एक प्रमुख समस्या बन जाती है।

 

  1. छात्रों का शारीरिक स्वास्थ्य एवं मानसिक स्वास्थ्य गणित शिक्षण के अन्तर्गत छात्रों का शारीरिक तथा मानसिक रूप से स्वस्थ्य होना नितान्त आवश्यक है। क्योंकि बालक के ध्यान, रुचि व एकाग्रता पर इसका प्रभाव पड़ता है। किसी भी प्रकार की मानसिक विकृति, शारीरिक रुग्णता तथा मानसिक तनाव का प्रत्यक्ष प्रभाव बालकों के शिक्षण पर प्रतिकूल पड़ता है। शारीरिक एवं मानसिक रूप से अस्वस्थ बालक शीघ्र ही थक जाते हैं।

 

  1. गणित शिक्षण का समय एवं अवधि यदि छात्र अधिक देर तक किसी क्रिया को करता रहता है तो वह थकान का अनुभव करने लगता है और थकान अनुभव होने से सीखने की प्रक्रिया में शिथिलता उत्पन्न हो जाती है। विद्यार्थियों को समय-चक्र बनाते समय इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि गणित जैसे कठिन विषयों को पहले तथा सरल विषयों को समय-चक्र में बाद में पढ़ाने की व्यवस्था बनाई जाए साथ ही मध्यान्तर की व्यवस्था भी आवश्यक रूप से की जानी चाहिए। समय चक्र में इस बात का भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि एक कक्षा की समय अवधि कितनी है।
  2. अध्यापक का विषय के प्रति सही ज्ञान न होना अध्यापक का किसी विषय से सम्बन्धित ज्ञान, अनुभव एवं योग्यता न होना छात्रों को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं। यदि अध्यापक को अपने विषय की गहन जानकारी नहीं है तो वह छात्रों को बहुत कुछ नहीं दे पाएगा। इसके विपरीत, यदि अध्यापक को अपने विषय का पूर्ण ज्ञान है तो वह आत्म-विश्वास के साथ छात्रों को नवीन ज्ञान देने में सक्षम होगा तथा उसका शिक्षण प्रभावी होगा। आजकल गणित शिक्षण से जुड़ी यह एक प्रमुख समस्या है।

 

  1. शिक्षक का व्यवहार शिक्षक का व्यवहार छात्रों के सीखने को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है। शिक्षक में एक आदर्श शिक्षक के सभी गुण होने चाहिए। उसके व्यवहार में सहानुभूति, सहयोग, समानता, शिक्षण कला में निपुणता, मृदुभाषी, संयम आदि गुण हैं तो छात्र कक्षा वातावरण में सहज रूप से सब कुछ सीख सकेंगे। लेकिन यदि शिक्षक का व्यवहार अत्यन्त कठोर है तो छात्र उसकी कक्षा से पलायन करने लगते हैं, जो शिक्षण के दौरान एक प्रमुख समस्या है।।
  2. गणित शिक्षक की शिक्षण विधि शिक्षण विधि का सीधा सम्बन्ध अधिगम प्रक्रिया से होता है। साथ ही, प्रत्येक शिक्षक का पढ़ाने का तरीका भी भिन्न होता है तथा सभी छात्र एक ही विधि से नहीं सीख पाते शिक्षण की विधि जितनी अधिक वैज्ञानिक एवं प्रभावशाली होगी उतनी ही सीखने की प्रक्रिया सरल एवं लाभप्रद होगी। बच्चों के सन्दर्भ में खेल विधि द्वारा सीखना, करके सीखना, निरीक्षण द्वारा सीखना योजना विधि द्वारा सीखना, खोज विधि द्वारा सीखना आदि का अपना अलग-अलग महत्त्व है। लेकिन शिक्षक छात्रों की रुचि के अनुरूप उन्हें शिक्षा न देकर पुरानी विधियों पर ही निर्भर रहते हैं।

ERROR ANALYSIS IN TEACHING OF MATHEMATICS

 

गणित का अध्ययन करने के लिए शुद्धता का होना अनिवार्य है। शुद्धता के अभाव में बालक गणित का ज्ञान यथार्थ रूप में ग्रहण नहीं कर सकते तथा उनमें विभिन्न गणितीय योग्यताओं का विकास भी नहीं हो पाता है। गणित शिक्षण में बच्चों में बहुत सी त्रुटियाँ पाई जाती हैं जो निम्नवत् है

  • गणित शिक्षण के अन्तर्गत कार्य का निर्धारण करते समय छात्रों की रुचियों, आवश्यकताओं तथा मानसिक विकास पर ध्यान न देना।
  • गणित शिक्षण में बालकों में तत्परता तथा एकाग्रता का अभाव होना।
  • बालकों का गणित के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण का होना।
  • शिक्षण कार्यों के दौरान शीघ्र निर्णय लेने की क्षमता का अभाव।
  • बालकों में कल्पना तथा स्मरण शक्ति का अभाव।
  • बालकों में गणित शिक्षण की समस्या का विश्लेषण तथा संश्लेषण करने की योग्यता की कमी। बालकों में गणित के प्रति जागरूकता का अभाव।
  • दिए गए कार्य को समय पर पूरा न करने की समस्या । बालकों में गणितीय गणना सम्बन्धी कुशलताओं का अभाव।
  • गणित शिक्षण में बालकों में आत्मविश्वास तथा आत्म निर्भरता का अभाव होता।
  • भिन्न-भिन्न गणित के तथ्यों में समानता तथा अन्तर का प्रयोग गलत करना। भाग देने में तथा गुणा करने में हासिल का गलत प्रयोग सही न कर पाना।
  • भिन्नों में हर तथा अंश का गलत प्रयोग करना।
  • दो या अधिक प्रत्ययों में अन्तर सही न निकाल पाना। समीकरण गलत बनाना ज्ञात तथा अज्ञात राशियों का स्पष्ट ज्ञान न होना।
  • गणित में प्रयोग होने वाले चिन्हों का गलत प्रयोग करना।
  • बालकों द्वारा गणित शिक्षण के दौरान श्यामपट्ट अथवा अभ्यास पुस्तिकाओं में सही-सही अंक तथा संख्याएँ न लिख पाना।
  • अध्यापकों द्वारा छात्रों की गलतियों को सुधारने हेतु पर्याप्त अवसर न देना। अर्थात् उपचारात्मक शिक्षण की करना।
  • गणित में गणना कार्य करते समय अधिक काट-पीट तथा लिप्त लेखन करना।
गणित शिक्षण में शुद्धता विकसित करने के उपाय

बालकों का गणित के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करने तथा गणित को रुचिकर बनाने के लिए गणित शिक्षण में शुद्धता का होना अत्यन्त आवश्यक है। गणित शिक्षण के दौरान अध्यापक को बालकों में शुद्धता से कार्य करने की आदत का विकास करने के लिए कुछ महत्त्वपूर्ण उपायों को ध्यान में रखना आवश्यक होता है।

गणित शिक्षण में शुद्धता विकसित करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण उपाय निम्नवत्

1. छात्रों । गणित में सही गणना कार्य करने पर प्रोत्साहित करना चाहिए।

महत्वपूर्ण लिंक

Concept of Health | स्वास्थ्य की अवधारणा

Principles of Motor Development | क्रियात्मक विकास के नियम

Social Development in Early Childhood

Factors Influencing Social Development

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