Math Pedagogy ctet notes | math pedagogy NCF

Math pedagogy CTET notes HINDI केंद्रीय शिक्षक पात्रता परीक्षा (CTET) दिसम्बर 2023 से  जनवरी 2024 को आयोजित होने वाली है। इस परीक्षा में पेपर वन में पांच खंडों होते हैं। जिसमें अंग्रेजी भाषा, हिंदी भाषा, गणित pedagogy NCF –  pedagogy  से पूछे जाएंगेI CTET  सिलेबस 2023 के अनुसार, इस खंड में बहुविकल्पीय वस्तुनिष्ठ प्रारूप में कुल 15 प्रश्न पूछे जाते हैं। प्रत्येक प्रश्न 1 अंक का है और कोई नकारात्मक अंकन नहीं होता  है।

Math Pedagogy ctet notes

CTET Math Pedagogy CTET notes

/CTET Math Pedagogy Hindi

NCF 2005

:- गणित की शिक्षा का मुख्य उद्देश्य बच्चे की गणितीकरण की क्षमताओं का विकास करना है। स्कूली गणित का सीमित लक्ष्य है ‘लाभप्रद’ क्षमताओं का विकास, विशेषकर अंक ज्ञान-संख्या से जुड़ी क्षमताएँ, सांख्यिक संक्रियाएँ, माप, दशमलव व प्रतिशत। इससे उच्च लक्ष्य है बच्चे के साधनों को विकसित करना ताकि वह गणितीय ढंग से सोच सके व तर्क कर सके, मान्यताओं के तार्किक परिणाम निकाल सके और अमूर्त को समझ सके। इसके अंतर्गत चीजों को करने और समस्याओं को सूत्रबद्ध करने व उनका हल ढूँढ़ने की क्षमता का विकास करना आता है।

इसके लिए से पाठ्यचर्या चाहिए जो महत्वाकांक्षी हो, सुसंगत हो और गणित के महत्वपूर्ण सिद्धांतों को पढ़ाए। उसे महत्वाकांक्षी इस अर्थ में होना चाहिए कि वह उपरोक्त उच्च लक्ष्य की प्राप्ति का प्रयास करे न कि केवल सीमित लक्ष्य की प्राप्ति का । इसे सुसंगत होना चाहिए ताकि टुकड़े-टुकड़े में उपलब्ध विभिन्न प्रणालियाँ व शिक्षा ( अंकगणित, बीजगणित, रेखागणित में) एक ऐसी क्षमता में ढल सकें जो माध्यमिक कक्षाओं में आने वाले विज्ञान व सामाजिक अध्ययन के क्षेत्र की समस्याओं को भी संबोधित कर सके। यह इस अर्थ में महत्वपूर्ण होना चाहिए कि विद्यार्थी दोनों ऐसी समस्याओं को हल करने की आवश्यकता को महसूस करें और शिक्षक व विद्यार्थी दोनों ऐसी समस्याओं को हल करने में जो अपना समय और ऊर्जा लगाएँ उसे सदुपयोग मानें। गणित की पाठ्यचर्या के दो मुख्य सरोकार हैं- गणित शिक्षा प्रत्येक विद्यार्थी के दिमाग को आकर्षित करने के लिए क्या कर सकती है, और यह विद्यार्थी के संसाधनों को कैसे सुदृढ़ की जा  सकती है ?

चूँकि गणित माध्यमिक स्कूल तक एक अनिवार्य विषय है, अतः अच्छी गणित शिक्षा का अधिकार प्रत्येक बच्चे को है। यह शिक्षा सुखकर व सहज होनी चाहिए। शिक्षा के भूमंडलीकरण के संदर्भ में सबसे पहला प्रश्न उठता है, आठ सालों की स्कूली शिक्षा के दौरान बच्चे को कैसा गणित पढ़ाना चाहिए जो उसे केवल उच्च माध्यमिक शिक्षा के लिए ही तैयार न करे बल्कि जीवनभर उसके काम आए। प्राथमिक स्कूल में सिखाए जाने वाले गणित के अधिकतर कौशल उपयोगी होते हैं। बहरहाल, पूर्ववर्णित, ‘उच्चतर लक्ष्यों’ की प्राप्ति के लिए पाठ्यचर्या के पुन: अभिमुखीकरण से बच्चे उस समय का बेहतर उपयोग कर सकेंगे जो वे स्कूल में व्यतीत करते हैं। उनकी समस्या हल करने व विश्लेषण करने का कौशल पुष्ट होगा और जीवन में वे विभिन्न तरह की समस्याओं का बेहतर रूप से सामना कर सकेंगे। साथ ही गणित की पाठ्यचर्या के लंबे-चौड़े आकार (जिसमें एक विषय में दक्षता दूसरे के ज्ञान के लिए आवश्यक होती है) पर दिए जाने वाले जोर को कम करना चाहिए, ताकि एक वृहत्तर पाठ्यचर्या तैयार हो पाए, जिसमें वे विषय ज्यादा हो जो बुनियादी बातों से शुरू होते हैं। यह विभिन्न विद्यार्थियों की जरूरतों को बेहतर ढंग से पूरा कर पाएँगे।

स्कूली गणित शिक्षा की कुछ समस्याएँ

  1. बहुत से बच्चे गणित से डरते है और इस विषय में असफलता से भयभीत रहते हैं। वे जल्दी ही गणित को गंभीर पढ़ाई से विमुख हो जाते हैं।
  2. यह पाठ्यचर्या केवल इससे विमुख होने वालों के लिए ही निराशाजनक नहीं है बल्कि यह प्रतिभाशाली बच्चों के लिए भी कोई चुनौती नहीं पेश करती ।
  3. समस्याएँ, अभ्यास व मूल्यांकन पद्धति यांत्रिक है और दुहराग्रस्त हैं। इसमें संगणना पर अत्यधिक जोर दिया गया है। इसमें स्थानिक चिंतन जैसे गणितीय क्षेत्रों को पर्याप्त स्थान नहीं दिया गया है।
  4. अध्यापकों में आत्मविश्वास, व तैयारी की कमी है और उन्हें आवश्यक मदद भी नहीं मिल पाती।

स्कूली गणित का दर्शन

  • बच्चे गणित से भयभीत होने की बजाए उसका आनंद उठाएँ।
  • बच्चे महत्वपूर्ण गणित सीखें; गणित में सूत्रों व यांत्रिक प्रक्रियाओं से आगे भी बहुत कुछ है।
  • बच्चे गणित को ऐसा विषय मानें जिस पर वे बात कर सकते हैं, जिससे संप्रेषण हो सकता है, आपस में जिस पर चर्चा कर सकते हैं और जिस पर साथ-साथ काम कर सकते हैं।
  • बच्चे सार्थक समस्याएँ उठाएँ और उन्हें हल करें।
  • बच्चे अमूर्त का प्रयोग संबंधे को समझने, संरचनाओं को देख पाने और चीजों का विवेचन करने, कथनों की सत्यता या असत्यता को लेकर तर्क करने में कर पाएँ।
  • बच्चे गणित की मूल संरचना को समझें: अंकगणित, बीजगणित, रेखागणित त्रिकोणमिति । स्कूली गणित के सभी मूल तत्व अमूर्त की प्रणाली, संघटन और सामान्यीकरण के लिए पद्धति मुहैया कराते हैं।
  • अध्यापक कक्षा में प्रत्येक बच्चे के साथ इस विश्वास के आधार पर काम करे कि प्रत्येक बच्चा गणित सीख सकता है।

समस्या के समाधान की अनेक सामान्य युक्तियाँ स्कूल की विभिन्न अवस्थाओं में सिखाई जा सकती है: अमूर्तता, परिमाणन, सादृश्यता, स्थिति विश्लेषण, समस्या को सरल रूप  में बदलना, अनुमान लगाना व उसकी पुष्टिी करना ये – अनेक संदर्भों में उपयोगी है।

जब बच्चे ये विभिन्न युवतियाँ सीख लेते हैं तो उनके संसाधन समृद्ध हो जाते हैं और वे यह भी सीखते हैं कि कौन सी युक्ति सर्वश्रेष्ठ है। बच्चों को गणित के अन्वेषणात्मक नियमों से परिचय की भी आवश्यकता होती है न के केवल इस विश्वास की कि गणित सुक ‘सटीक विज्ञान’ है। परिमाण और हलों का अनुमान भी एक आवश्यकता कौशल है। जब एक किसान किसी फसल का अनुमान लगाता है तो अनुमान लगाने के कौशल, जैसे सन्निकटता ओर इष्टीकरण के कौश्लों का उपयोग होता है। स्कूली गणित की इस तरह की उपयोगी बातें सिखाने और उनके परिष्कार में महत्वपूर्ण भूमिका है।

प्रत्यक्षीकरण और निरूपण ऐसे कौशल हैं जिनको विकसित करने में गणित सहायक हो सकता है। परिणाम, आकार व रूपों का प्रयोग करके स्थितियों का प्रतिरूपण करने में गणित का सर्वश्रेष्ठ प्रयोग होता है। गणितीय अवधारणाओं को कई तरीकों से निरूपित किया जा सकत है औश्र ये निरूपण विभिन्न संदर्भों में विविध प्रयोजनों काम करते है – यह सब गणित का सामर्थ्य को बढ़ाता है। उदाहरण के लिए एक भिन्न को बीजगणितीय तौर पर निरूपित किया जा सकता है और एक ग्राफ के रूप में भी। अब अगर अ/ब को एक पूर्ण इकाई के एक अंश के रूप में प्रस्तुत किया गया है तो वह दो अंकों अ तथा ब के भागफल को भी इंगित कर सकता है। भिन्न खण्डों के बारे में यह सीखना भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि भिन्न अंशों के गणित को सीखना।

गणित व अन्य विषयों के अध्ययन के बीच संबंध बनाने की भी आवश्यकता है। जब बच्चे ग्राफ बनाना सीखते हैं तो उन्हें भू-विज्ञान सहित विभिन्न विज्ञानों के कार्यात्मक संबंधों के बारे में सोचने के लिए भी प्रोत्साहित करना चाहिए। हमारे बच्चे इस तथ्य के मूल्य को पहचान पाएँ कि गणित, विज्ञान के अध्ययन का एक प्रभावी उपकरण है।

गणित में व्यवस्थित तार्किकता के महत्व पर और प्रबलता से जोर नहीं दिया जा सकता। यह गणितज्ञों की सौष्ठव और सौंदर्य-बोध जैसी अत्यंत प्रिय धारणाओं से गहरे रूप में जुड़ा हुआ है। प्रमाण महत्वपूर्ण है, लेकिन निगमनात्मक (निगमन-आधारित) प्रमाण के साथ बच्चों को यह भी जानना चाहिए कि चित्र व निर्मिति प्रमाण कब प्रदान सकते हैं। प्रमाण देना एक ऐसी प्रक्रिया है जो संशय करने वाले विरोधी पक्ष को आश्वस्त करने के लिए आवश्यक है; स्कूली गणित के माध्यम से प्रमाण व्यवस्थित तर्क-वितर्क के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। तर्क विकसित करने, उसका मूल्यांकन करने की क्षमताओं का विकास स्कूली गणित का लक्ष्य होना चाहिए तथा यह समझ भी होनी चाहिए कि तर्क करने के विभिन्न तरीके होते हैं ।

गणितीय संप्रेषण, जो सटीक होता है उसमें सुस्पष्ट भाषा का प्रयोग एवं सख्त संरूपण होता है। ये गणित के महत्वपूर्ण  लक्षण हैं। गणित में पारिभाषिक शब्दावली का प्रयोग सुचिंतित, सचेत और विशिष्ट शैली में होता है। गणितज्ञ इस पर विचवार करते हैं कि कौन सी अंकन पद्धति उपयुक्त है क्योंकि अच्छी अंकन पद्धति को विचारों का सहायक माना जाता है। जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते हैं उन्हें इन प्रथाओं की महत्ता को समझना व उनका प्रयोग करना भी सिखाना चाहिए। उदाहरण के लिए, समस्या प्रतिपादन

  • अगर आप जानते हैं कि 235 367 602, तो 234 + 369 कितने होंगे? आपने उत्तर कैसे ढूँढ़ा? समीकरण बनाने को भी उतना ही महत्व मिलना चाहिए जितना उन्हें ‘हल करने को दिया जाता है।

पाठ्यचर्या

पूर्व प्राथमिक सतर पर सरा अधिगम खेल के जरिए होता है, उपदेशात्मक संप्रेषण के जरिए नहीं। गिनती को क्रम में रटने की बजाय बच्चों को यह सीखने और समझने की जरूरत है कि छोटे समुच्चयों के संदर्भ में नाम के खेल और संख्या में और गिनती एवं मात्रा में क्या जुड़ाव है। एक वक्त में एक आयाम में सरल तुलनाएँ और वर्गीकरण करना और आकार व सममितियाँ पहचानना ऐसे कौशल हैं जो इस स्तर पर सीखे जाने चाहिए। इस स्तर पर, और आगे के स्तरों पर भी बच्चों को अपने विचार व भावनाएँ खुल कर व्यक्त करने के लिए भाषा का इस्तेमाल करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए न कि पूर्वनिर्धारित तरीकों से व्यक्त करने के लिए।

प्राथमिक स्तर पर बच्चों में गणित के लिए सकारात्मक रूझान और रूचि विकसित करना भी उतना ही जरूरी है जितना कि ज्ञानात्मक कौशल और अवधारणाएँ सीखना। गणितीय खेल, पहेलियाँ और कहानियाँ सकारात्मक रूझान पैदा करने और गणित को रोजमर्रा की जिंदगी से संबंध जोड़ने में मददगार हो सकती है। यह ख्याल रखना जरूरी है कि गणित सिर्फ अंकगणित नहीं है। संख्याओं और उनके उपयोग के अलावा अकारों, शैक्षिक समझ, प्रतिरूपों, मापों और आंकड़ों की समझ को भी महत्व देना चाहिए। पाठ्यचर्या में स्पष्टतः सीखने वाले की प्रगति की क्रमिकता को शामिल किया जाना चाहिए जो अवधारणाओं को समझ कर मूर्त से अमूर्त की ओर ले जाती है। गणनात्मक कौशल के अलावा पैटर्न्स को पहचानने, ५ अभिव्यक्त करने और समझाने पर, या समस्याओं के हल में आकलन करने और अनुमान का इस्तेमाल करने संबंध पहचानने और संप्रेषण व तर्क की दृष्टि से भाषागत कौशल का विकास करे पर जोर दिया जाए।

उच्च प्राथमिक स्तर पर विद्यार्थियों को गणित की शक्ति का एहसास तब होता है जब वे उन शक्तिशाली अमूर्त अवधारणाओं का इस्तेमाल करते हैं जो पिछली पढ़ाई और अनुभव को संघटित कर देती है। इससे उन्हें प्राथमिक स्कूल में सीखी हुई बुनियादी अवधारणाओं और कौशल की ओर फर से ध्यान देने और उन्हें मजबूत करने में मदद मिलती है जो कि सार्वजनीन गणितीय साक्षरता की दृष्टि से जरूरी है। विद्यार्थी बीजगणितीय संकेतों से परिचित होते हैं और स्थान और आकारों की समस्याएँ हल करने और सामान्यीकरण में उनका उपयोग करना सीखते हैं और उनका माप संबंधी ज्ञान पुख्ता होता है। एक अत्यावश्यक जीवन कौशल है सामान्य सूचनाओं का उपयोग करना। इसमें आँकड़ों का उपयोग, आँकड़ों में प्रस्तुति व उनकी व्याख्या शामिल है। इस स्तर का अधिगम विद्यार्थियों की द्विआयामी व त्रिआयामी समझ तथा कल्पना कौशलों को समृद्ध बनाने का भी अवसर प्रदान करता है।

माध्यमिक स्तर पर विद्यार्थी गणित की संरचना को एक अनुशासन की तरह देखना प्रारम्भ कर देते हैं। वह गणितीय संप्रेषण की मुख्य विशिष्टताओं से परिचित होते हैं, सावधानीपूर्वक परिभाषित पारिभाषिक शब्द और अवधारणाएँ, उन्हें जताने के लिए प्रयुक्त संकेतों का इस्तेमाल, ठीक रूप से अभिव्यक्त पूर्व सर्ग और उन्हें सिद्ध करने के लिए प्रमाण-खासकर रेखागणित के क्षेत्र में ये पहलू स्पष्ट होते हैं। बीजगणित में विद्यार्थी अपनी कुशलता बढ़ाते हैं जो सिर्फ गणित के प्रयोग के लिए महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि उनसे स्वयं गणित के प्रमाण और औचित्य भी मिलते हैं। इस स्तर पर विद्यार्थी सीखी हुई कई अवधारणाओं और कौशल को समस्या सुलझाने की योग्यता में संजोते हैं। गणितीय मॉडलिंग, आंकड़ों को विश्लेषण आदि जो इस स्तर पर पढ़ाए जाते हैं, एक उच्चस्तरीय गणितीय साक्षरता  में बदल सकते हैं। व्यक्तिगत स्तर पर या समूहों में जुड़ाव, दृश्य रचना, सामान्यीकरण की तलाश, अनुमान लगाना और उन्हें सिद्ध करना आदि इ स्तर पर महत्वपूर्ण है। उचित उपकरणों, जिसमें ठोस मॉडल्स भी आते हैं जैसे कि गणित प्रयोगशालाओं में पाए जाते हैं तथा कंप्यूटरों के जरिए इन्हें प्रोत्साहित किया जा सकता है।

उच्चतर माध्यमिक स्तर पर गणित की पाठ्यचर्या का उद्देश्य विद्यार्थियों में गणित के उपयोग के विस्तृत फलक की पहचान और उन बुनियादी औजारों की समझ विकसित करना है, जो उपयोग को संभव बनाते हैं। यहाँ गहराई और विस्तार की अक्सर परस्पर विरोधी माँगों के बीच सावधानी से चुनाव करना जरूरी है। एक अनुशासन की तरह गणित के तेजी से विस्तार और उसके उपयोगों का फैलता फलक अधिक व्यापकता की माँग करता है। ऐसे विस्तार के लिए विषयों को उनके गणितीय महत्व से आंका जाना चाहिए। जो विषय दूसरे अनुशासनों के ज्यादा स्वाभाविक हिस्से हैं उन्हें गणित की पाठ्यचर्या से बाहर रखा जाए। विषयों के निरूपण का एक उद्देश्य गणितीय अंतदृष्टि और अवधारणाओं को विकसित करना होना चाहिए जिससे विद्यार्थियों में स्वभाविक रूप से रुचि और लगाव जागता है।

इन्हें भी देखें

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