Mental Development during Early Childhood |  प्रारंभिक वाल्यावस्था में मानसिक विकास

Mental Development during Early Childhood |  प्रारंभिक वाल्यावस्था में मानसिक विकास

Mental Development during Early Childhood ya प्रारंभिक बाल्यावस्था 2 साल से प्रारंभ होकर 6 साल तक चलती है। इस अवस्था में बालकों का मानसिक विकास अधिक तीव्र गति से होता है। बालकों की बौद्धिक क्षमताएँ (intellectual abilities) बढ़ जाती हैं। उनमें वस्तुओं एवं घटनाओं के बीच संबंध को समझने तथा परखने की क्षमता तीव्र हो जाती है तथा वातावरण की वस्तुओं एवं घटनाओं के बारे में छानबीन करने की क्षमता बढ़ जाती है क्योंकि इस अवस्था में बालकों में क्रियात्मक संगठन (motor coordination) की क्षमता भी बढ़ जाती है। इस अवस्था में बालकों में शब्दों एवं वाक्यों के प्रयोग की क्षमता चूँकि बढ़ जाती है, इसलिए उनमें वस्तुओं, लोगों एवं परिस्थितियों को समझने की भी क्षमता बढ़ जाती है। इस अवस्था में होनेवाले मानसिक विकास के बारे की इस प्रकार से व्याख्या की जा सकती है

Mental Development during Early Childhood

Mental Development during Early Childhood  निम्न प्रकार है

1. अन्वेषणात्मक प्रवृत्ति का विकास (Development of exploratory tendency)

– इस अवस्था में बालकों में मानसिक विकास का स्तर कुछ ऊँचा हो जाने से उत्सुकता अभिप्रेरण (curiosity motive) अधिक प्रबल हो जाता है फलस्वरूप वह क्या ?’, ‘कहाँ 2’, ‘कैसे ?’ एवं ‘क्यूँ?’ से प्रारंभ होनेवाले प्रश्नों का ताँता लगाए रखता है। जब उसे कोई उद्दीपन (stimulus) थोड़ा अजूबा लगता है, वह पूछ बैठता है- “वह क्या है?”, “वह कहाँ से आया है?” “उसे कैसे बनाया गया है?”. “उसे क्यों बनाया गया है?” आदि-आदि। मनोवैज्ञानिक अध्ययनों से यह भी स्पष्ट हो गया है कि लड़कियाँ लड़कों की अपेक्षा ऐसे प्रश्न अधिक करती हैं तथा उच्च सामाजिक आर्थिक स्तर के परिवार के बालकों द्वारा निम्न सामाजिक-आर्थिक स्तर के परिवार के बालकों की अपेक्षा इस ढंग के अन्वेषणात्मक प्रश्न (exploratory questions) अधिक पूछे जाते हैं।

2. जीवन-मृत्यु के संप्रत्यय (Concept of life and death)

– इस अवस्था में बालकों में जीवन एवं मृत्यु के संप्रत्यय का विकास हो जाता है। कुछ मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि बालकों में मानसिक विकास हो जाने से उनमें जीवन एवं मृत्यु का कुछ अस्पष्ट संप्रत्यय विकसित हो जाता है। इस उम्र में बालक कुछ निर्जीव वस्तुओं को जीवित समझता है। खासकर गुड्डा, गुड़िया, चलते बादल (moving cloud), चलती कार चल रहे पंखों को जीवित समझता है। इस अवस्था में बालक यह स्पष्ट रूप से समझते हैं कि मृत्यु का मतलब किसी चीज का समाप्त हो जाना होता है परंतु सचमुच मृत्यु की अंतिमता (finality) को वह नहीं समझ पाता है।

3. दिकस्थान संप्रत्यय (Concept of space)

– चार साल की अवस्था में बालकों में छोटी दूरी (small distance) का सही-सही प्रत्यक्षण करने की क्षमता विकसित हो जाती है परंतु लंबी दूरी का सही-सही प्रत्यक्षण 6 साल की उम्र के बाद ही हो पाता है। कुछ उन संकेतों (cues) का प्रयोग करके जिसे वे समझ सकते हैं, बालक बाएँ एवं दाएँ के संप्रत्यय (concept) को भी सीख लेता है।

4. चिंतन एवं तर्क (Thinking and logic)

– इस अवस्था में बालकों में चिंतन एवं तर्क का स्वरूप कुछ अनूठा होता है। पियाजे (Piaget, 1965) ने इस अवस्था बालकों के चिंतन एवं तर्क की प्रक्रिया का अध्ययन कर बताया है कि इस अवस्था में बालकों का मानसिक विकास (mental development) इस स्तर तक का हो जाता है कि वह जोड़, घटाव, गुणा, भाग आदि जैसी प्रक्रियाएँ करता है परंतु इन सबके पीछे छिपे नियमों (principles) को वह नहीं समझ पाता है। इसका मतलब यह हुआ कि बालकों का चिंतन तर्कसंगत (logical) नहीं होता है। इस अवस्था में बालकों का चिंतन द्रष्टव्य (observable) वस्तुओं तक सीमित रहता है। बालकों के चिंतन में पलटावी (reversibility) का गुण नहीं होता है। जैसे वह यह समझता है कि 1 फीट की दूरी क्या होती है परंतु यह नहीं समझता है कि 12 इंच की दूरी 1 फीट की दूरी के बराबर कैसे होती है। इस अवस्था में बालकों के चिंतन में आत्मकेंद्रिता (egocentricity) अधिक होती है क्योंकि उनके चिंतन में उनकी आवश्यकताओं (needs) की भूमिका अधिक प्रधान होती है।

इस तरह स्पष्ट है कि प्रारंभिक बाल्यावस्था (early childhood) में बालकों में मानसिक विकास शैशवावस्था के मानसिक विकास की तुलना में अधिक स्पष्ट एवं तत्त्वपूर्ण होता है।

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